कन्नौज: महाशिवरात्रि को लेकर शहर के सिद्धपीठ बाबा गौरीशंकर धाम में बाबा भोलेनाथ के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ी है. जिला प्रशासन की ओर से भक्तों के दर्शन के लिए चाक-चौबंद व्यवस्था के साथ-साथ सुरक्षा के लिए भारी पुलिस बल भी तैनात किया गया है. इस ऐतिहासिक गौरीशंकर मंदिर धाम समेत प्रमुख शिवालयों को पुष्प मालाओं के साथ इलेक्ट्रॉनिक लाइटों से सजाया गया है.
इत्रनगरी कन्नौज शहर के ऐतिहासिक सिद्धपीठ बाबा गौरीशंकर मंदिर में शिवरात्रि पर्व पर दर्शन के लिए हजारों भक्तों की भीड़ उमड़ी है. यह शहर के पूर्वी छोर पर स्थित बाबा गौरीशंकर मंदिर को पौराणिक भाषा में गौरी पीठ भी कहा जाता है. बताया जाता है कि जहां-जहां माता सती के अंग गिरे थे, वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई थी. कन्नौज में मां गौरी के अंग गिरने से यह स्थान भी शक्तिपीठ में शुमार किया जाता है.
रामचरित मानस में मिलता है उल्लेख
श्रद्धालु गौरी और शंकर दोनों को अर्धनारीश्वर रूप में भी देखते हैं, अर्थात शिव का आधा अंग पुरुष रूप में है और दूसरे रूप में पार्वती स्वरूप हैं. रामचरित मानस में भी इसका उल्लेख मिलता है. बाबा गौरीशंकर मंदिर का गौरवशाली इतिहास काफी पुराना है. भारी भीड़ होने के कारण भक्तों को दिक्कतों का सामना करना न करने पड़े, इसके लिए जिला प्रशासन की ओर से बेरीकेडिंग से लेकर सुरक्षा-व्यवस्था के लिहाज से सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं.
शिवलिंग के बारे में कई तरह की हैं मान्यताएं
बताया जाता है कि इस शिवलिंग के बारे में जानने के लिए सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने हंस का रूप धारण किया और उसके ऊपरी भाग तक जाने की कोशिश करने लगे, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. वहीं, सृष्टि के पालनहार विष्णु ने भी वराह रूप धारण कर उस शिवलिंग का आधार ढूंढना शुरू किया, लेकिन वो भी असफल रहे.
एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही विभन्नि 64 जगहों पर शिवलिंग उत्पन्न हुए थे, हालांकि 64 में से केवल 12 ज्योर्तिलिंगों के बारे में जानकारी उपलब्ध. इन्हें 12 ज्योर्तिलिंग के नाम से भी जाना जाता है और तीसरी मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि की रात को ही भगवान शिव शंकर और माता शक्ति का विवाह संपन्न हुआ था, इस कारण हम आज भगवान सिद्धपीठ गौरीशंकर की महाशिवरात्रि मना रहे हैं. स्वयंभू शिवलिंग हुआ था.
इत्रनगरी में प्रकट सिद्धपीठ बाबा गौरीशंकर प्राचीन मंदिर है. छठवीं सदी में मंदिर का निर्माण हुआ था. उस समय कन्नौज को कान्यकुब्ज के नाम से जाना जाता था. गौरी मुखी शिवलिंग जमीन से निकला था. राजा हर्षवर्धन ने इस शिवलिंग की पूजा-अर्चना के लिए एक हजार पुजारी लगा रखे थे. मंदिर के मुख्य द्वार से गंगा बहती थी. शिवलिंग के साथ मां गौरी व सूर्य की प्रतिमा विराजमान है. मां गौरी सातवीं व सूर्य प्रतिमा नवीं शताब्दी में विराजमान हुईं थीं. यहां दूर-दराज से बाबा के दर्शन करने को भक्त आते हैं.
इस ऐतिहासिक सिद्धपीठ के बारे में कुछ स्थानों पर उल्लेख मिलता है कि सम्राट हर्षवर्धन के समय में यहां 1001 हजार पुजारी शिव अर्चना करते थे. लोगों का कहना है कि कभी पतित पावनी गंगा की धार इस मंदिर को छूकर निकलती थी, लेकिन कालांतर में गंगा की धार इस मंदिर से करीब चार किलोमीटर दूर चली गईं. इस मंदिर में सावन की शुरुआत होते ही श्रद्धालु सुबह से शाम तक बाबा के दर्शन करने आते हैं.