कन्नौजः ठठिया थाना क्षेत्र के दन्नापुरवा गांव के रहने वाले मुनेश कुमार की सोमवार को कश्मीर के शोपियां जिला के हरमन गांव में आतंकी हमले में मौत हो गई है. मृतक मुनेश कुमार की आर्थिक स्थिति बेहद दयनीय है. झोपड़ी डालकर परिवार गुजर बसर कर रहा था. बच्चों को सिर पर पक्की छत देने के लिए कश्मीर में मजदूरी करने गया था. वहां पर उसको सेब की पेटी ट्रक में लोड करने के लिए प्रति पेटी 12 रुपये मिलते थे. मृतक के पिता को करीब साल 1985 में आवास का लाभ मिला था. इसके बाद परिवार को कोई सरकारी लाभ नहीं मिला है. घटना के बाद प्रशासन आवास व अन्य सुविधाएं मुहैया कराने की बात कह रहा है.
ठठिया थाना क्षेत्र के दन्नापुरवा गांव के रहने वाले मुनेश कुमार गांव के ही रहने वाले राम सागर के साथ कश्मीर के शोपियां जिला के हरमन गांव सेब पैकिंग का काम कर परिवार का भरण भोषण करता था. सोमवार रात आंतकी हमले में मुनेश व राम सागर की मौत हो गई. मृतक मुनेश कुमार की आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय है. मुकेश के पास सिर्फ करीब डेढ़ बीघा खेती है, जिससे परिवार के खाने के लिए भी पर्याप्त राशन नहीं मिल पाता था. तीन बच्चों और पत्नी पुष्पा के साथ झोपड़ी में रहना मुनेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती बच्चों को पक्की छत मुहैया कराने की थी, जिस कारण वह मजदूरी करने के लिए कश्मीर चला गया. कश्मीर के हरमन गांव में वह सेब पैकिंग व लोडिंग का काम करता था. सेब के बागों में मजदूरी करने के एवज में उन्हें मेहनताना मिल जाता था.
मुनेश के भतीजे शिवा ने बताया कि उनके पिता रामबाबू भी चाचा मुनेश के साथ कश्मीर में ही रहकर मजदूरी कर रहे थे. अब वह अपने भाई के शव के साथ ही गांव वापस लौट रहे हैं. बताया कि कश्मीर में सेब की पेटियां पैक कर ट्रक में लोड करने के एवज मेें 12 रुपये प्रति पेटी का मेहनताना मिलता था. एक ट्रक पर करीब 800 पेटी लोड होती हैं. इस काम में एक साथ 15 लोग लगते हैं. इस लिहाज से जब एक ट्रक लोड हो जाता है, तब प्रति व्यक्ति 640 रुपया मजदूरी उन्हें मिल पाती है. बच्चों के सिर पर पक्की छत का सपना लेकर ही वह कश्मीर में मजदूरी करने गया था.
साल 1985 में मिला था आवास योजना का लाभ
बताया जा रहा है कि मृतक मुकेश के पिता राम औतार को सन 1985 में आवास योजना का लाभ मिला था. इसके बाद से उसके परिवार को कोई सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला. परिवार के पास योजना के नाम पर सिर्फ राशन कार्ड ही है. मुनेश के भाई राम बाबू, संदीप, जितेंद्र, सर्वेश है, जिसमें जितेंद्र दिल्ली में रहकर मजदूरी करता है. वह बाहर मजदूरी कर पक्का मकान का निर्माण करवा रहा है, जिसकी सिर्फ अभी दीवारें व पिलर खड़े हो पाए. भाई को देखकर ही उसके मन में बाहर जाकर मजदूरी कर पक्का मकान बनवाने का सपना संजोया था.
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