कन्नौज: जिले में राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया गया, जिला जज मुशीर अहमद अब्बासी ने मां सरस्वती की प्रतिमा पर द्वीप प्रज्जवलन किया. साथ ही प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर अदालत के कार्यक्रम का शुभारम्भ किया. उन्होंने मामले निस्तारण को लेकर लगे काउंटरों पर पहुंचकर अधिक से अधिक मामले निस्तारण करने को कहा. इससे मुकदमों की संख्या भी कम होगी. इस दौरान फैमिली कोर्ट के माध्यम से घरेलु हिंसा के मामलों को निपटाकर पीड़ित महिलाओं को न्याय दिलाया गया.
राष्ट्रीय लोक अदालत का किया गया आयोजन
आयोजित की गई राष्ट्रीय लोक अदालत में कानपुर के बिल्हौर के धौरहरा निवासी सीमा देवी को पति के न रहने पर उसकी ससुराल से उसको निकाल दिया गया था. इसके बाद पीड़िता ने न्याय की गुहार लगाईं, जिस पर उसको राष्ट्रीय लोक अदालत में न्याय मिला. वह अब कन्नौज के तेरारागी के सहतेपुर्वा स्थित अपनी ससुराल में गुजर-बसर करके अपनी जिंदगी गुजार सकेंगी.
कई मामलों का किया गया निस्तारण
जिला कचहरी में सीमा देवी जैसी अन्य कई महिलाओं और पीड़ितों को इस लोक अदालत से तत्काल न्याय मिला. जो वर्षों से न्याय की आस में कोर्ट के चक्कर लगा रहीं थीं. लेकिन लोक अदालत उनके लिए राहत बनकर आई. इसी तरह कामिनी-सोनेलाल, अमरजीत-अर्चना अपने दो बच्चों के साथ, योगिता-सुनील, विनय-सोनी, सुनील-रेखा अपने दो बच्चों के साथ खुशहाल जिंदगी जीने को राजी हो गए.
कार्यक्रम में कई वरिष्ठ अधिकारी रहे मौजूद
इस मौके पर नोडल अधिकारी रामबरन सरोज, विशेष न्यायाधीश सतेंद्र कुमार, एडीजे रोहित सिन्हा, अजय श्रीवास्तव, सत्यजीत पाठक, शिवकुमार यादव, सीजेएम गीतांजलि गर्ग, एसीजेएम शिल्पी चौहान, सिविल जज सीनियर डिवीजन शांभवी यादव, सिविल जज एफटीसी सीनियर डिवीजन सचिन दीक्षित, जूनियर डिवीजन नितिका राजन, जेएम अंकित वर्मा, सिविल जज जूनियर डिवीजन एफटीसी शालिनी विधेय, रोहित सोनी, अपर सिविल जज ऋषभ चतुर्वेदी, अरुणा सिंह आदि न्यायिक अधिकारी और अधिवक्ता मौजूद रहे.
मेरी कोर्ट में तलाक से संबंधित मामले ज्यादातर आते हैं. इसके अलावा बच्चो के कस्टडी से सम्बंधित केस भी आते हैं. जो लोक अदालत में नियत किए थे. कुल 85 वाद संदर्भित मामले जिसमे से 44 मामलों में सुलह-समझौता हो गया. 17 जोड़े साथ रहने को राजी हुए.
आदेश नैन, प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्टराष्ट्रीय लोक अदालत से जनता का समय बचता होता है. पक्षकारों में सौहार्द कायम रहता है. अपील से आदमी बच जाता है. न्यायालय में छोटे-छोटे मुकदमों की सुनवाई में कीमती समय व्यर्थ में जाता है. राष्ट्रीय लोक अदालत में ऐसे मामले सुलह-समझौते से निपट जाते हैं, इससे न्यायालयों पर मुकदमों का बोझ भी कम होता है.
मुशीर अहमद अब्बासी, जिला न्यायाधीश