कन्नौज: बाबा गौरी शंकर प्राचीन सिद्धपीठ मंदिर है, जो 1600 वर्ष पुराना है. छठवीं सदी में इस मंदिर का निर्माण हुआ था. उस समय कन्नौज को कान्यकुब्ज के नाम से जाना जाता था. यह गौरी मुखी शिवलिंग जमीन से निकला था. राजा हर्षवर्धन ने इस शिवलिंग की पूजा-अर्चना के लिए एक हजार पुजारी लगा रखे थे. मंदिर के मुख्य द्वार से गंगा बहती थीं. बताया जाता है कि इस शिवलिंग का न तो आदि है और न ही अंत.
दर्शन करने भक्तों की उमड़ती है भीड़-
- कन्नौज शहर के बीचोंबीच विराजमान सिद्धपीठ बाबा गौरी शंकर मंदिर के शिवलिंग के दर्शन के लिए 10 जिलों के कांवड़िया जल लेकर जलाभिषेक करने आते हैं.
- सोमवार को भक्तों की खास भीड़ रहती है.
- अमेरिका तक से भक्त बाबा के दरबार में माथा टेकने आ चुके हैं.
- यहां सावन भर मेला लगता है.
- भाद्रपद में तीन दिन बाबा का भव्य श्रृंगार एवं झांकी सजती है.
- प्रत्येक सोमवार का अलग-अलग महत्व है.
- बाबा गौरी शंकर मंदिर में शिवलिंग के साथ मां गौरी और सूर्य की प्रतिमा विराजमान है.
- मां गौरी 7वीं शताब्दी और सूर्य प्रतिमा 9वीं शताब्दी में विराजमान हुई थी.
यहां गिरे थे मां सती के अंग-
- मां सती के अंग गिरने से इत्र नगरी का यह स्थान शक्तिपीठों में शुमार किया जाता है.
- शहर के पूर्वी छोर में स्थित बाबा गौरी शंकर मंदिर को पौराणिक भाषा में गौरी पीठ भी कहा जाता है.
- पुराणों के अनुसार जहां-जहां माता सती के शव के अंग गिरे थे, वहां-वहां शक्ति पीठों की स्थापना हुई थी.
- श्रद्धालु गौरी और शंकर दोनों को अर्धनारीश्वर के रूप में देखते हैं.
- शिव का आधा अंग पुरुष रूप में है जबकि आधा पार्वती स्वरूप में.
- रामचरितमानस में भी इसका उल्लेख मिलता है.
बाबा गौरी शंकर मंदिर का गौरवशाली इतिहास काफी पुराना है. इस ऐतिहासिक सिद्धपीठ के बारे में कुछ स्थानों पर उल्लेख मिलता है कि छठवीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन ने इस मंदिर की देखरेख के लिए एक हजार पुजारी नियुक्त थे
यह मंदिर 16 सौ वर्ष पुराना है. पतित पावनी गंगा की धार इस मंदिर को छूकर निकलती थी, लेकिन कालांतर में गंगा की धार इस मंदिर से करीब 4 किलोमीटर दूर चली गई है और आज भी गंगा जी में बाढ़ आने पर गंगा का जल इस शिवलिंग को छूकर वापस चला जाता है. गौरी शंकर मंदिर में सावन के सोमवार को अद्भुत श्रंगार किया जाता है, जिसे देखने के लिए शहर के ही नहीं बल्कि दूर-दूर के जनपदों के लोग भी यहां आते हैं.
-मथुरा प्रसाद त्रिवेदी, मुख्य पुजारी