झांसी: जिले में स्थित मढिया महाकालेश्वर मंदिर बुन्देलखण्ड में गुसाइयों के प्रभाव का जीवंत प्रमाण माना जाता है. यह मंदिर चौदहवीं से सोलहवीं सदी के बीच का निर्मित माना जाता है. कालांतर में जब झांसी में मराठों का शासन स्थापित हुआ और लक्ष्मीबाई झांसी की रानी बनीं, तो यह मंदिर कई ऐतिहासिक घटनाक्रमों का गवाह बना.
मंदिर के निर्माण की शैली को देखने पर पता चलता है कि यह दक्षिण की स्थापत्य शैली से प्रभावित है. मंदिर का स्थापत्य बेहद आकर्षक है और इससे बुन्देलखण्ड में गुसाइयों के प्रभाव को समझने में काफी मदद मिलती है. जानकार मानते हैं कि बुन्देलखण्ड में नवीं सदी से ही गुसाइयों के प्रभाव का प्रमाण मिला है, जिन्होंने इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में मठ और मन्दिरों का निर्माण करवाया था. यह मंदिर भी उन्हीं में से एक है.
कोरोना के चलते रद्द हुए कार्यक्रम
मढिया महाकालेश्वर मंदिर पर हर साल भक्तों की काफी भीड़ उमड़ती है. इससे पहले सावन के महीने में भव्य जलाभिषेक कार्यक्रम आयोजित किया जाता था. इस बार कोरोना संक्रमण के कारण मंदिर में भक्तों की संख्या न के बराबर पहुंच रही है. मंदिर के पुजारी सजावट और पूजा-अर्चना कर मंदिर के परंपरा को कायम किए हुए हैं. हर साल आयोजित होने वाले सभी खास और भव्य कार्यक्रम को इस बार रद्द किया गया है.
रानी लक्ष्मीबाई करती थीं पूजा
मंदिर के पुजारी पंडित रामेश्वर प्रसाद उपाध्याय बताते हैं कि टीकमगढ़ के राजा के समझौते के अनुसार यहां गुसाइयों का शासन था. उन्होंने सेना बनाने के लिए नागा साधुओं का सहयोग लिया था. झांसी में विकास के लिए नागा साधुओं ने मंदिर, कुएं और बावड़ी बनाने का काम प्रमुखता से करवाया, उसी निर्माण की उत्पत्ति यह मंदिर भी है.
पुजारी पंडित रामेश्वर प्रसाद उपाध्याय ने बताया कि रानी लक्ष्मीबाई यहां हर सोमवार को पूजा करने आती थीं. एक बार अंग्रेजों ने यह योजना बनाई कि रानी इस मंदिर में बिना सैनिकों के आती हैं तो क्यों न उन्हें यहां से गिरफ्तार कर लिया जाए. रानी को इस बात की जानकारी मिली, तो उन्होंने यहां आना बंद कर दिया. इसके बाद झांसी में अंग्रेजों और रानी साहब के बीच युद्ध हुआ, जिसमें रानी लक्ष्मीबाई शहीद हो गईं. इसके बाद से इस मंदिर की स्थिति खराब होने लगी, लेकिन अब पिछले कई वर्षों से मंदिर के संरक्षण की कोशिश हो रही है.
बाहर से आते हैं साधक और श्रद्धालु
वृंदावन से आए साधक मनीष चतुर्वेदी बताते हैं कि हर साल वह मढिया महाकालेश्वर मंदिर पर एक महीने रहकर सेवा करते हैं. सावन में यहां मंदिर पर लाखों भक्त आते हैं, लेकिन इस बार महामारी के चलते भगवान का मंदिर सूना है. भक्त कभी भगवान के दर्शन के लिए तरसते थे, लेकिन आज स्थिति ऐसी हो गई है कि भगवान भक्त के दर्शन के लिए तरस रहे हैं.
मुख्य मंदिर के पास छोटे-छोटे मंदिर
इतिहास के जानकार डॉ चित्रगुप्त बताते हैं कि ऐतिहासिक मढिया महादेव मंदिर स्थापत्य शैली का एक शानदार उदाहरण माना जाता है. मंदिर परिसर में एक मुख्य मंदिर है, जिसमें शिवलिंग स्थापित है. इसके आसपास छोटे-छोटे 12 मंदिर बने हुए हैं. इन छोटे मंदिरों को गुसाईं साधुओं की समाधि भी माना जाता है. बताया जाता है कि गुसाईं साधु की मृत्यु हो जाने पर या उनके समाधि लेने के बाद उनके शरीर को इसी मंदिर में स्थापित करने के बाद उस पर शिवलिंग स्थापित किया जाता था.
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