झांसी: देश में कई प्रकार की छूट के साथ लॉकडाउन 4 की शुरुआत हो गई है. देश में प्रवासी मजदूरों का आवागमन बंद नहीं हो रहा है. कोरोना संक्रमण की दहशत में सफर कर रहे हर प्रवासी मजदूर की अपनी एक कहानी है. सोमवार को झांसी से अपने 12 वर्षीय दिव्यांग बेटे के साथ एक परिवार गुजर रहा था. परिवार ने ईटीवी भारत को अपनी दुख भरी दास्तां सुनाई. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के दौरान हरियाणा में आधे पेट भूखे रहने को मजबूर थे. भूख सहन नहीं हुई तो 500 किलोमीटर दूर अपने घर के लिए पैदल ही निकल पड़े.
मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जा रहा है परिवार
मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले के रहने वाले मातादीन अहिरवार अपनी आपबीती सुनाते हुए कहते हैं कि गांव में हमारे पास थोड़ी बहुत जमीन है, लेकिन वह बंजर है. मेरे दो बेटे और एक बेटी है और मेरा भाई भी शादीशुदा है. परिवार बड़ा हो गया था, लेकिन गांव में हमारे पास उचित रोजगार नहीं था. हमें राजमिस्त्री का काम आता था. इसलिए हम परिवार समेत बड़े शहर आ गए. मेरा बेटा विशाल दिव्यांग है उसके इलाज के लिए भी मुझे पैसे जोड़ने थे.
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लॉकडाउन के चलते बंद हुआ काम
मातादीन कहते हैं कि 6 महीने पहले ही हम अपने गांव को छोड़कर पत्नी, तीनों बच्चों सहित भाई और उसकी पत्नी के साथ हरियाणा चले गए. हरियाणा में कुछ दिन बीतने के बाद हमें मकान बनाने का काम मिलने लगा. तकरीबन 4 महीने हमने हरियाणा में काम किया और कुछ पैसे भी कमा लिए. अचानक से हुए लॉकडाउन में कमाए हुए सारे पैसे खर्च हो गए. इस वजह से राशन की दुकान से हमें उधार सामान लेने पड़े. पैसे न चुका पाने की वजह से दुकानदार ने हमें राशन देना बंद कर दिया. हमें मजबूरी में अपने विकलांग बच्चे को लेकर हरियाणा से अपने घर के लिए आना पड़ रहा.
पैसे खत्म होने के बाद खाने को पड़े लाले
मातादीन अहिरवार की पत्नी रजनी का कहना है कि मेरे पति हरियाणा में राजमिस्त्री का काम करते थे. जिस साइट पर पति का काम चलता था मैं, मेरा देवर और देवरानी वहां मजदूरी का काम करते थे. कोरोना संक्रमण के चलते अचानक लॉकडाउन की घोषणा हो गई और हमारा काम पूरी तरह से बंद हो गया. काम के दौरान हमने कुछ पैसे इकट्ठे किए थे, उन पैसों से कुछ दिन खर्चा चला. इसके बाद हमें खाने के लाले पड़ गए. रजनी बताती हैं कि हरियाणा की सरकार ने उनकी कोई मदद नहीं की. साथ ही मकान मालिक किराए को लेकर परेशान कर रहा था. कई दिन भूखे रहने के बाद भी लॉकडाउन खुलने के आसार नहीं दिखे तो हम पूरे परिवार के साथ वहां से पैदल ही घर के लिए चल दिए.