झांसी : रंगों के त्योहार होली की शुरुआत झांसी के एरच कस्बे से मानी जाती है. बताते हैं कि एरच का नाम किसी समय में एरिकच्छ था और यह हिरण्यकश्यप की राजधानी थी. आज भी यहां कई ऐसे अवशेष मौजूद हैं, जिन्हें हिरण्यकश्यप के समय का बताया जाता है. झांसी जिले के गजेटियर में भी इस बात का उल्लेख मिलता है कि होली की शुरुआत झांसी के एरच कस्बे से हुई थी.
पौराणिक कथा है कि हिरण्यकश्यप का बेटा प्रह्लाद विष्णुका उपासक था जबकि हिरण्यकश्यप दुनिया में अपने से शक्तिशाली किसी को नहीं मानता था. जब प्रह्लाद ने भगवान की उपासना बंद नहीं की तो हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मृत्यदंड देने का निर्णय लिया. एरच के पास स्थित डिकौली गांव के डेकांचल पर्वत से प्रह्लाद को नदी में फेंका गया, जिससे उनकी मौत हो जाए. स्थानीय निवासी लाला राम यादव बताते हैं कि प्रह्लाद भगवान का नाम लेता था, इसलिए हिरण्यकश्यप उससे नफरत करता था. उसको यहां फिकवाया तो भगवान विष्णु ने उसे बचा लिया. जिस स्थान पर प्रह्लादको फेंका गया था, उस स्थान को आज प्रह्लाद कुंड के नाम से जाना जाता है. इस स्थान पर धार्मिक अवसरों पर लोग पूजा-पाठ करने आते हैं.
एरच कस्बे के रहने वाले और स्थानीय इतिहास के जानकार सुनील दत्त गोस्वामी बताते हैं कि जब प्रह्लाद को मारने की सारी योजनाएं नाकाम हो गईं तोहिरण्यकश्यप के आदेश पर उसकी बहन होलिका भक्त प्रह्लाद को अग्नि में जलाने के लिए अग्निकुंड में उसे अपनी गोद में चुनरी ओढ़कर बैठ गई थी. उसे यह वरदान था, जब वह चुनरी ओढ़ लेगी तो उसे अग्नि उसे जला नहीं सकती हालांकि होलिका अग्नि में जल गई और भक्त प्रह्लाद बच गए. तभी से अन्याय की हार और न्याय की जीत का त्योहार मनाया जाता है.
एरच कस्बे में ही भगवान नरसिंह का मंदिर स्थित है. बताते हैं कि जब प्रह्लाद की हत्या के सभी प्रयास नाकाम हो गए तोहिरण्यकश्यप ने खुद प्रहलाद की हत्या करने की कोशिश की. इस पर भगवान ने नरसिंह का रूप धारण कर प्रह्लाद की रक्षा की थी और हिरण्यकश्यप का वध कर दिया था. इसी के बाद लोगों ने एक-दूसरे पर रंग-अबीर डालकर खुशी मनाई और यहीं से होली की शुरुआत हुई. एरच कस्बे में होली के अवसर पर विभिन्न तरह के आयोजन होते हैं और होली के मौसम में यहां के लोगों पर अलग ही तरह की मस्ती दिखाई देती है.