झांसी : हिंदी दिवस के मौके पर रविवार को बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय सम्मलेन का आयोजन हुआ. कार्यक्रम में दुनिया के कई देशों से जुड़े हिंदी भाषा के शिक्षकों, साहित्यकारों और भाषा विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया और दुनिया भर में हिंदी भाषा के प्रसार और प्रभाव पर चर्चा हुई.
सिनेमा के योगदान पर चर्चा
भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद एवं भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद भारत सरकार के सदस्य सचिव प्रो कुमार रत्नम ने कहा कि हिन्दी सिनेमा ने हिन्दी भाषा को वैश्विक फलक पर उड़ने के लिए पंख दिए हैं. दुनिया के 150 से अधिक देशों में हिन्दी का शिक्षण कार्य किया जा रहा है.
हिंदी का विदेशों पर प्रभाव
यूक्रेन से जुड़े राकेश शंकर भारती ने बताया कि रूस तथा यूक्रेन एवं यूरोप की सभी भाषाओं पर संस्कृत एवं हिन्दी का प्रभाव स्पष्ट दिखता है. उन्होंने बताया कि रूसी और यूक्रेनी भाषा में दो को दू, चार को चितीर, आठ को अट्ठ कहा जाता है. इसी तरह भारत का चोखा आलू रूस, यूक्रेन, पुर्तगाल आदि देशों में थोड़े बहुत फेरबदल के साथ बोला जाता है.
हिंदी के शब्दों का विदेशों में प्रचलन
कंबोडिया से जुड़े वहां के क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष मनीष शर्मा ने बताया कि कम्बोडिया मूलतः हिन्दू देश रहा है और यहां की भाषा में हिन्दी इस तरह घुली मिली है कि यहां आकर लोगों को भ्रम हो जाता है कि वे किसी हिन्दी पट्टी के इलाके में घूम रहे हैं. कंबोडिया में दिन को दिवस, हवा को वायु आदि हिन्दी के शब्दों से ही उच्चारित किया जाता है और राम, विष्णु, शिव आदि देव यहां भी पूजे जाते हैं. अंकोरवाट मन्दिर विश्व को कम्बोडिया की अनुपम देन है.
हिंदी पट्टी की उदासीनता पर चिंता
दिल्ली से जुड़े डॉ. साकेत सहाय ने कहा कि हिन्दी विश्व की चहेती भाषा है, किन्तु इसे सर्वाधिक खतरा हिन्दी पट्टी के लोगों की उदासीनता से है. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो देवेश निगम ने बताया कि बुल्गारिया और तुर्की में हिन्दी फिल्में समान रूप से मशहूर हैं और उनके दिलों में आज भी राज कपूर जिंदा हैं. कार्यक्रम संयोजक डॉ पुनीत बिसारिया ने कहा कि यदि उर्दू को बोलने वालों को भी जोड़ दिया जाए तो हिन्दी विश्व की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है और भाषा वैज्ञानिकों का अनुमान है कि आने वाले पचास वर्षों में हिन्दी अंग्रेजी को पछाड़कर विश्व की सम्पर्क भाषा बन जाएगी.
बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय में हिंदी दिवस पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, ऑनलाइन जुड़े विशेषज्ञ - क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष मनीष शर्मा
हिंदी दिवस के मौके पर बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया. इसमें दुनिया भर के विशेषज्ञ ऑनलाइन जुड़े.
झांसी : हिंदी दिवस के मौके पर रविवार को बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय सम्मलेन का आयोजन हुआ. कार्यक्रम में दुनिया के कई देशों से जुड़े हिंदी भाषा के शिक्षकों, साहित्यकारों और भाषा विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया और दुनिया भर में हिंदी भाषा के प्रसार और प्रभाव पर चर्चा हुई.
सिनेमा के योगदान पर चर्चा
भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद एवं भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद भारत सरकार के सदस्य सचिव प्रो कुमार रत्नम ने कहा कि हिन्दी सिनेमा ने हिन्दी भाषा को वैश्विक फलक पर उड़ने के लिए पंख दिए हैं. दुनिया के 150 से अधिक देशों में हिन्दी का शिक्षण कार्य किया जा रहा है.
हिंदी का विदेशों पर प्रभाव
यूक्रेन से जुड़े राकेश शंकर भारती ने बताया कि रूस तथा यूक्रेन एवं यूरोप की सभी भाषाओं पर संस्कृत एवं हिन्दी का प्रभाव स्पष्ट दिखता है. उन्होंने बताया कि रूसी और यूक्रेनी भाषा में दो को दू, चार को चितीर, आठ को अट्ठ कहा जाता है. इसी तरह भारत का चोखा आलू रूस, यूक्रेन, पुर्तगाल आदि देशों में थोड़े बहुत फेरबदल के साथ बोला जाता है.
हिंदी के शब्दों का विदेशों में प्रचलन
कंबोडिया से जुड़े वहां के क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष मनीष शर्मा ने बताया कि कम्बोडिया मूलतः हिन्दू देश रहा है और यहां की भाषा में हिन्दी इस तरह घुली मिली है कि यहां आकर लोगों को भ्रम हो जाता है कि वे किसी हिन्दी पट्टी के इलाके में घूम रहे हैं. कंबोडिया में दिन को दिवस, हवा को वायु आदि हिन्दी के शब्दों से ही उच्चारित किया जाता है और राम, विष्णु, शिव आदि देव यहां भी पूजे जाते हैं. अंकोरवाट मन्दिर विश्व को कम्बोडिया की अनुपम देन है.
हिंदी पट्टी की उदासीनता पर चिंता
दिल्ली से जुड़े डॉ. साकेत सहाय ने कहा कि हिन्दी विश्व की चहेती भाषा है, किन्तु इसे सर्वाधिक खतरा हिन्दी पट्टी के लोगों की उदासीनता से है. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो देवेश निगम ने बताया कि बुल्गारिया और तुर्की में हिन्दी फिल्में समान रूप से मशहूर हैं और उनके दिलों में आज भी राज कपूर जिंदा हैं. कार्यक्रम संयोजक डॉ पुनीत बिसारिया ने कहा कि यदि उर्दू को बोलने वालों को भी जोड़ दिया जाए तो हिन्दी विश्व की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है और भाषा वैज्ञानिकों का अनुमान है कि आने वाले पचास वर्षों में हिन्दी अंग्रेजी को पछाड़कर विश्व की सम्पर्क भाषा बन जाएगी.