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अंग्रेजों ने लिखा था 1857 का इतिहास, सावरकर ने किया बदलाव: राज्यपाल राम नाईक

बुन्देलखंड विश्वविद्यालय सभागार में पुस्तक विमोचन कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस आयोजन के मुख्य अतिथि के रुप में राज्यपाल राम नाईक थे. पुस्तक विमोचन के दौरान सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुरेंद्र दुबे मौजूद रहे.

बुन्देलखंड विश्वविद्यालय सभागार में पुस्तक विमोचन में पहुंचे राज्यपाल राम नाईक
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Published : Jun 20, 2019, 9:02 PM IST

झांसी: बुन्देलखंड विश्वविद्यालय सभागार में पुस्तक विमोचन कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. इस आयोजन में राज्यपाल राम नाईक के साथ सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुरेंद्र दुबे अतिथि के रूप में मौजूद रहे. इस पुस्तक के संपादक प्रोफेसर सुरेंद्र दुबे, सह संपादक प्रोफेसर श्रीराम अग्रवाल और डॉ. पुनीत बिसारिया है. वहीं पुस्तक में झांसी के इतिहास, संस्कृति, लोककला, साहित्य, संस्कृति सहित अन्य विषयों पर विभिन्न लेखकों के आलेख शामिल है.

बुन्देलखंड विश्वविद्यालय सभागार में पुस्तक विमोचन कार्यक्रम का हुआ आयोजन

झांसी की रानी कहने के बाद 1857 की याद आ जाती है. 1857 का जो भी इतिहास पढ़ाया गया, उसे अंग्रेजों ने लिखा था. यही इतिहास बदलने का काम वीर सावरकर ने किया. तथ्यों को सामने रखकर उन्होंने बताया कि यह बगावत नहीं थी, बल्कि देश का पहला स्वातंत्र्य समर था. ऐसे में जिन्होंने बलिदान दिया है, उनमें सबसे आगे नाम रानी लक्ष्मीबाई का आता है.
राम नाईक, राज्यपाल, उत्तर प्रदेश


झांसी: बुन्देलखंड विश्वविद्यालय सभागार में पुस्तक विमोचन कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. इस आयोजन में राज्यपाल राम नाईक के साथ सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुरेंद्र दुबे अतिथि के रूप में मौजूद रहे. इस पुस्तक के संपादक प्रोफेसर सुरेंद्र दुबे, सह संपादक प्रोफेसर श्रीराम अग्रवाल और डॉ. पुनीत बिसारिया है. वहीं पुस्तक में झांसी के इतिहास, संस्कृति, लोककला, साहित्य, संस्कृति सहित अन्य विषयों पर विभिन्न लेखकों के आलेख शामिल है.

बुन्देलखंड विश्वविद्यालय सभागार में पुस्तक विमोचन कार्यक्रम का हुआ आयोजन

झांसी की रानी कहने के बाद 1857 की याद आ जाती है. 1857 का जो भी इतिहास पढ़ाया गया, उसे अंग्रेजों ने लिखा था. यही इतिहास बदलने का काम वीर सावरकर ने किया. तथ्यों को सामने रखकर उन्होंने बताया कि यह बगावत नहीं थी, बल्कि देश का पहला स्वातंत्र्य समर था. ऐसे में जिन्होंने बलिदान दिया है, उनमें सबसे आगे नाम रानी लक्ष्मीबाई का आता है.
राम नाईक, राज्यपाल, उत्तर प्रदेश


Intro:झांसी. उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने झांसी में एक कार्यक्रम में कहा कि 1857 का जो भी इतिहास पढ़ाया गया, उसे अंग्रेजों ने लिखा था। इसे बदलने का काम वीर सावरकर ने किया। राज्यपाल राम नाईक ने बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के गांधी सभागार में मेरी झांसी - एक परिचयात्मक वृत्त के विमोचन समारोह में हिस्सा लेते हुए यह बात कही।


Body:बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय सभागार में पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में राज्यपाल राम नाईक के साथ सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुरेंद्र दुबे अतिथि के रूप में मौजूद रहे। इस पुस्तक का के संपादक प्रोफेसर सुरेंद्र दुबे और सह संपादक प्रोफेसर श्रीराम अग्रवाल व डॉ पुनीत बिसारिया हैं। पुस्तक में झांसी के इतिहास, संस्कृति, लोककला, साहित्य, संस्कृति सहित अन्य विषयों पर विभिन्न लेखकों के आलेख शामिल हैं।


Conclusion:इस दौरान कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राज्यपाल ने कहा कि झांसी की रानी कहने के बाद याद आ जाती है 1857 की और 1857 का जो भी इतिहास पढ़ाया गया, उसे अंग्रेजों ने लिखा था। यही इतिहास बदलने का काम वीर सावरकर ने किया। तथ्यों को सामने रखकर उन्होंने बताया कि यह बगावत नहीं थी, बल्कि देश का पहला स्वातंत्र्य समर था। ऐसे में जिन्होंने बलिदान दिया है, उनमें सबसे आगे नाम रानी लक्ष्मीबाई का आता है।

बाइट - राम नाईक - राज्यपाल

लक्ष्मी नारायण शर्मा
झांसी
9454013045
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