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झांसी: बारिश से किसानों की फसलें हुईं बर्बाद, कब मिलेगा PMFBY का लाभ

यूपी के झांसी जिले में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों के लिए मददगार साबित नहीं हो पा रही है. वर्ष 2019 के अगस्त और सितम्बर महीने में हुई बारिश से किसानों की फसल बर्बाद हो गई थी, लेकिन अभी तक मुआवजा न मिलने से किसान परेशान हैं.

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किसानों को नहीं मिला PMFBY का लाभ.
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Published : Feb 10, 2020, 5:37 AM IST

Updated : Feb 11, 2020, 9:20 PM IST

झांसी: सिंचाई के साधनों की कमी और पथरीली जमीन के कारण बुन्देलखण्ड के किसान परेशान हैं. किसान किसी तरह फसल उगा भी ले तो प्राकृतिक आपदाएं खेतों में खड़ी उसकी फसल खराब कर देती हैं. कभी सूखा, कभी बेमौसम बारिश और कभी ओलावृष्टि के कारण यहां किसान हर साल, फसलों की बर्बादी का दंश झेलता है. आपको बता दें कि कुदरत के कहर से फसल बर्बाद होने पर किसानों को राहत देने के उद्देश्य से मोदी सरकार ने 13 जनवरी 2016 को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का शुभारंभ किया था, लेकिन बुन्देलखण्ड के झांसी जिले के किसानों के लिए यह योजना मददगार साबित नहीं हो पा रही है.

किसानों को नहीं मिला PMFBY का लाभ.

आंदोलन की राह पर किसान
जनपद में पिछले वर्ष अगस्त और सितम्बर महीने में अधिक बारिश के कारण किसानों की खेतों में खड़ी खरीफ की फसल बर्बाद हो गई थी. जनपद के किसानों ने मुआवजे और बीमा क्लेम को लेकर बड़े पैमाने पर हल्लाबोल कर प्रशासन को चेतावनी दी, लेकिन तमाम आश्वासनों के बावजूद भी अभी तक किसानों को किसी भी तरह का मुआवजा नहीं मिल सका है.

सर्वे में हुआ नुकसान का आंकलन
जनपद में किसान हर साल बड़े पैमाने पर उर्द, मूंग, तिल और मूंगफली की बुवाई करते हैं. सितम्बर महीने में जब अधिक बारिश से फसलें खराब हुईं तो बर्बाद फसलों के आंकलन के लिए सर्वे कराया गया. अलग-अलग फसलों के 35 से 85 प्रतिशत तक नुकसान का आंकलन किया गया.

नहीं मिली किसानों को राहत
नियमों के मुताबिक तो फसल बर्बाद होने के बाद तत्काल बीमा कम्पनी द्वारा प्रारम्भिक रूप से मदद की एक किश्त किसानों को देनी चाहिए थी, लेकिन बीमा कंपनियां अभी तक किसानों को किसी भी तरह की राहत और क्लेम देने में नाकाम साबित हुई हैं.

पलायन और खुदकुशी को मजबूर किसान
किसानों को समय से मुआवजा न मिलने के कारण उनके सामने सबसे बड़ा संकट पेट भरने का होता है. फसल बर्बादी और कर्ज के बोझ तले दबे किसान, बड़ी संख्या में अपना गांव छोड़कर पलायन को मजबूर होते हैं. बुन्देलखण्ड में उपेक्षा के कारण बड़ी संख्या में किसान खुदकुशी भी करते रहे हैं. तमाम दावों और वादों के बावजूद बुन्देलखण्ड के किसानों की स्थिति जस की तस बनी हुई है.

नाउम्मीद हो चुके हैं किसान
कुदरत की मार झेल रहा किसान सरकारी सिस्टम और बीमा कम्पनी की कार्यशैली से भी बुरी तरह निराश हो चुके हैं. सेमरी गांव के रहने वाले किसान बलवीर बताते हैं कि उनकी मूंगफली, उर्द की फसल खराब हो गई थी. सर्वे वाले कुछ दिन पहले आये थे, लेकिन कोई क्लेम नहीं मिला. सेमरी गांव के ही घनश्याम बताते हैं कि तिल, मूंगफली और उर्द बोई थी सब नष्ट हो गई, लेकिन उसका भी कोई क्लेम नहीं मिला. लेखपाल आए थे, दो महीने पहले सर्वे कर ले गए थे.

प्रशासन को नहीं नियमों की जानकारी
किसान रक्षा पार्टी के अध्यक्ष गौरी शंकर विदुआ बताते हैं कि झांसी जनपद में 2 लाख 95 हजार किसानों का बीमा है. जितना झांसी जनपद के किसानों का हेक्टेयर है, उसके हिसाब से झांसी जनपद को कम से कम 450 करोड़ रुपये चाहिए. खबर मिली है कि 135 करोड़ रुपये स्वीकृत हुए हैं. इनका कोई नियम कानून नहीं है कि किसान को कितने नुकसान पर कितना मुआवजा मिलना चाहिए. यह बात अधिकारियों को भी पता नहीं है.

अफसर बीमा कम्पनी को ठहरा रहे जिम्मेदार
झांसी के मुख्य विकास अधिकारी निखिल टीकाराम फुण्डे का कहना है कि जनपद में कुल 2 लाख 5 हजार किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ मिलना है. कुल 140 करोड़ की मुआवजे की धनराशि मुआवजे की वितरित की जाएगी. इसमें बीमा कम्पनी की ओर से देरी हुई है. यह धनराशि अब तक किसानों को मिलना शुरू हो जानी चाहिए थी.

झांसी: सिंचाई के साधनों की कमी और पथरीली जमीन के कारण बुन्देलखण्ड के किसान परेशान हैं. किसान किसी तरह फसल उगा भी ले तो प्राकृतिक आपदाएं खेतों में खड़ी उसकी फसल खराब कर देती हैं. कभी सूखा, कभी बेमौसम बारिश और कभी ओलावृष्टि के कारण यहां किसान हर साल, फसलों की बर्बादी का दंश झेलता है. आपको बता दें कि कुदरत के कहर से फसल बर्बाद होने पर किसानों को राहत देने के उद्देश्य से मोदी सरकार ने 13 जनवरी 2016 को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का शुभारंभ किया था, लेकिन बुन्देलखण्ड के झांसी जिले के किसानों के लिए यह योजना मददगार साबित नहीं हो पा रही है.

किसानों को नहीं मिला PMFBY का लाभ.

आंदोलन की राह पर किसान
जनपद में पिछले वर्ष अगस्त और सितम्बर महीने में अधिक बारिश के कारण किसानों की खेतों में खड़ी खरीफ की फसल बर्बाद हो गई थी. जनपद के किसानों ने मुआवजे और बीमा क्लेम को लेकर बड़े पैमाने पर हल्लाबोल कर प्रशासन को चेतावनी दी, लेकिन तमाम आश्वासनों के बावजूद भी अभी तक किसानों को किसी भी तरह का मुआवजा नहीं मिल सका है.

सर्वे में हुआ नुकसान का आंकलन
जनपद में किसान हर साल बड़े पैमाने पर उर्द, मूंग, तिल और मूंगफली की बुवाई करते हैं. सितम्बर महीने में जब अधिक बारिश से फसलें खराब हुईं तो बर्बाद फसलों के आंकलन के लिए सर्वे कराया गया. अलग-अलग फसलों के 35 से 85 प्रतिशत तक नुकसान का आंकलन किया गया.

नहीं मिली किसानों को राहत
नियमों के मुताबिक तो फसल बर्बाद होने के बाद तत्काल बीमा कम्पनी द्वारा प्रारम्भिक रूप से मदद की एक किश्त किसानों को देनी चाहिए थी, लेकिन बीमा कंपनियां अभी तक किसानों को किसी भी तरह की राहत और क्लेम देने में नाकाम साबित हुई हैं.

पलायन और खुदकुशी को मजबूर किसान
किसानों को समय से मुआवजा न मिलने के कारण उनके सामने सबसे बड़ा संकट पेट भरने का होता है. फसल बर्बादी और कर्ज के बोझ तले दबे किसान, बड़ी संख्या में अपना गांव छोड़कर पलायन को मजबूर होते हैं. बुन्देलखण्ड में उपेक्षा के कारण बड़ी संख्या में किसान खुदकुशी भी करते रहे हैं. तमाम दावों और वादों के बावजूद बुन्देलखण्ड के किसानों की स्थिति जस की तस बनी हुई है.

नाउम्मीद हो चुके हैं किसान
कुदरत की मार झेल रहा किसान सरकारी सिस्टम और बीमा कम्पनी की कार्यशैली से भी बुरी तरह निराश हो चुके हैं. सेमरी गांव के रहने वाले किसान बलवीर बताते हैं कि उनकी मूंगफली, उर्द की फसल खराब हो गई थी. सर्वे वाले कुछ दिन पहले आये थे, लेकिन कोई क्लेम नहीं मिला. सेमरी गांव के ही घनश्याम बताते हैं कि तिल, मूंगफली और उर्द बोई थी सब नष्ट हो गई, लेकिन उसका भी कोई क्लेम नहीं मिला. लेखपाल आए थे, दो महीने पहले सर्वे कर ले गए थे.

प्रशासन को नहीं नियमों की जानकारी
किसान रक्षा पार्टी के अध्यक्ष गौरी शंकर विदुआ बताते हैं कि झांसी जनपद में 2 लाख 95 हजार किसानों का बीमा है. जितना झांसी जनपद के किसानों का हेक्टेयर है, उसके हिसाब से झांसी जनपद को कम से कम 450 करोड़ रुपये चाहिए. खबर मिली है कि 135 करोड़ रुपये स्वीकृत हुए हैं. इनका कोई नियम कानून नहीं है कि किसान को कितने नुकसान पर कितना मुआवजा मिलना चाहिए. यह बात अधिकारियों को भी पता नहीं है.

अफसर बीमा कम्पनी को ठहरा रहे जिम्मेदार
झांसी के मुख्य विकास अधिकारी निखिल टीकाराम फुण्डे का कहना है कि जनपद में कुल 2 लाख 5 हजार किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ मिलना है. कुल 140 करोड़ की मुआवजे की धनराशि मुआवजे की वितरित की जाएगी. इसमें बीमा कम्पनी की ओर से देरी हुई है. यह धनराशि अब तक किसानों को मिलना शुरू हो जानी चाहिए थी.

Intro:@attn नितिन जी।

इस खबर से सम्बंधित कुछ फाइल फुटेज रैप से भेजे गए हैं। फसल बर्बाद होने के बाद किसानों के प्रदर्शन के विजुअल हैं। उनका प्रमुखता से उपयोग किया जाए।

झांसी. सिचाई के साधनों की कमी और पथरीली जमीन के बीच बुन्देलखण्ड का किसान किसी तरह फसल उगा भी ले तो प्राकृतिक आपदाएं खेतों में खड़ी उसकी फसल खराब कर देती हैं। कभी सूखा तो कभी बेमौसम की ओलावृष्टि के कारण यहां किसान हर साल फसलों की बर्बादी का दंश झेलता है। फसल बर्बाद होने से हुए नुकसान की भरपाई के लिए बनी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना बुन्देलखण्ड के किसानों के लिए मददगार साबित नहीं हो पा रही है। झांसी में खरीफ फसल में उर्द, मूंग और तिल अधिक बारिश के कारण बर्बाद हो गई थी लेकिन किसानों को अभी तक न तो किसी तरह का मुआवजा मिला है न ही बीमा का क्लेम।


Body:आंदोलन की राह पर किसान

जनपद में पिछले वर्ष अगस्त और सितम्बर महीने में अधिक बारिश के कारण किसानों की खेतों में खड़ी खरीफ की फसल बर्बाद हो गई थी। जनपद के किसानों ने मुआवजे और बीमा क्लेम को लेकर बड़े पैमाने पर हल्लाबोल कर प्रशासन को चेतावनी दी लेकिन तमाम आश्वासनों के बावजूद अभी तक किसानों को किसी भी तरह का मुआवजा और क्लेम नहीं मिल सका है।

फसल का हुआ था 80 प्रतिशत तक नुकसान

जनपद में किसान उर्द, मूंग, तिल और मूंगफली की बुवाई हर साल बड़े पैमाने पर करते हैं। सितम्बर महीने में जब अधिक बारिश से फसलें खराब हुईं तो बर्बाद फसलों के आंकलन के लिए सर्वे कराया गया। अलग-अलग फसलों के 35 प्रतिशत से लेकर 85 प्रतिशत तक नुकसान का आंकलन किया गया। नियम के मुताबिक तो फसल बर्बाद होने के बाद तत्काल बीमा कम्पनी द्वारा प्रारम्भिक रूप से मदद की एक किश्त किसानों को देनी चाहिए थी लेकिन बीमा कंपनियां अभी तक किसानों को किसी भी तरह की राहत और क्लेम दे सकने में नाकाम साबित हुई हैं।

पलायन और खुदकुशी को मज़बूर किसान

किसानों को समय से मुआवजा और क्लेम न मिलने के कारण उनके सामने सबसे बड़ा संकट पेट भरने का होता है। फसल बर्बादी और कर्ज के बोझ तले दबे किसान बड़ी संख्या में अपना गांव छोड़कर पलायन को मजबूर होते हैं। बुन्देलखण्ड में उपेक्षा के कारण बड़ी संख्या में किसान खुदकुशी भी करते रहे हैं। तमाम दावों और वादों के बावजूद बुन्देलखण्ड के किसानों की स्थिति जस की तस बनी हुई है।


Conclusion:नाउम्मीद हो चुके हैं किसान

कुदरत की मार झेल रहे किसान सरकारी सिस्टम और बीमा कम्पनी की कार्यशैली से भी बुरी तरह निराश हो चुके हैं। सेमरी गांव के रहने वाले किसान बलवीर बताते हैं कि उनकी मूंगफली, उर्द की फसल खराब हो गई थी। सर्वे वाले कुछ दिन पहले आये थे लेकिन कोई क्लेम नहीं मिला। सेमरी गांव के ही घनश्याम बताते हैं कि तिल, मूंगफली और उर्द बोई थी। सब नष्ट हो गई। कोई क्लेम नहीं मिला। लेखपाल आये थे। दो महीने पहले सर्वे कर ले गए थे।

प्रशासन को भी नहीं है नियम की जानकारी

किसान रक्षा पार्टी के अध्यक्ष गौरी शंकर विदुआ बताते हैं कि झांसी जनपद में 2 लाख 95 हज़ार किसानों का बीमा है। जितना झांसी जनपद के किसानों का हेक्टेयर है, उसके हिसाब से झांसी जनपद को कम से कम 450 करोड़ रुपये चाहिए। अभी खबर मिली है कि 135 करोड़ रुपये स्वीकृत हुए हैं। इनका कोई नियम कानून नहीं है कि किसान को कितने नुकसान पर कितना मुआवजा मिलना चाहिए। यह बात अधिकारियों को भी पता नहीं है।

बीमा कम्पनी को अफसर ठहरा रहे जिम्मेदार

झांसी के मुख्य विकास अधिकारी निखिल टीकाराम फुण्डे बताते हैं कि जनपद में कुल 2 लाख 5 हज़ार किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ मिलना है। कुल 140 करोड़ की मुआवजे की धनराशि मुआवजे की वितरित की जाएगी। इसमें बीमा कम्पनी की ओर से देरी हुई है। यह धनराशि अब तक किसानों को मिलना शुरू हो जानी चाहिए थी।

बाइट 1- बलवीर -किसान
बाइट 2 - घनश्याम - किसान
बाइट 3 - गौरी शंकर विदुआ - अध्यक्ष, किसान रक्षा पार्टी
बाइट 4 - निखिल टीकाराम फुण्डे - मुख्य विकास अधिकारी
- पीटीसी

लक्ष्मी नारायण शर्मा
झांसी
9454013045
Last Updated : Feb 11, 2020, 9:20 PM IST
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