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जयंती विशेष: यहां जर्रे-जर्रे में समाई है रानी लक्ष्मीबाई के शौर्य की गाथा - झांसी समाचार

19 नवंबर को महानायिका रानी लक्ष्मीबाई की जयंती है. रानी लक्ष्मीबाई उस वीरता शौर्य साहस और पराक्रम का नाम है, जिसने अपने छोटे से जीवन काल में वो मुकाम हासिल किया, जिसकी मिसाल आज भी दुर्लभ है, यहां जानिए रानी लक्ष्मीबाई के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें-

रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति देखने आए दर्शक.
रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति देखने आए दर्शक.
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Published : Nov 19, 2020, 9:40 AM IST

झांसी: अंग्रेजों के विरुद्ध रणयज्ञ में अपने प्राणों की आहुति देने वाले योद्धाओं में वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई का नाम सर्वोपरी माना जाता है. आजादी की पहली लड़ाई की महानायिका झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की जयंती 19 नवंबर को मनाई जाती है. अपने तलवार के दम पर मात्र तेईस साल की उम्र में उन्होंने शौर्य की जो इबारत लिखी, वैसा दूसरा उदाहरण पूरी दुनिया में कहीं भी देखने को नहीं मिलता. आज भी झांसी के जर्रे-जर्रे में रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की कहानियां जीवंत रूप में मौजूद हैं और हमें रानी के शौर्य और बलिदान की याद दिलाती हैं.

लक्ष्मीबाई की आकृति बनाता कलाकार.
लक्ष्मीबाई की आकृति बनाता कलाकार.
काशी में जन्मीं और झांसी में विवाह
19 नवंबर 1835 को काशी में जन्मी छबीली मनु का विवाह 1848 में झांसी के राजा गंगाधर राव से हुआ. इसके बाद वे झांसी की रानी बनीं और उनका नाम लक्ष्मीबाई पड़ा. पति गंगाधर राव की असामयिक मौत और फिर बेटे की मौत के बाद झांसी राज पर नजर जमाये ब्रिटिश हुकूमत ने झांसी राज्य को हड़पने के लिए कई साजिशें रचीं. अंग्रेजों से लोहा लेते हुए 18 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर में बलिदान हो गईं.
रानी लक्ष्मीबाई के शौर्य की गाथा
रानी ने बनाई थी महिला सैनिकों की टुकड़ी
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से युद्ध करने के लिए महिलाओं का एक दस्ता तैयार किया था और अपनी सेविकाओं को इसकी कमान दी थी. इस दस्ते की महिला सिपाहियों को घुड़सवारी, युद्ध कौशल, तोप चलाने तक का प्रशिक्षण दिया गया. रानी की सेना की महिला सिपाहियों ने अंग्रेजी सेना को युद्ध के मैदान में कड़ी चुनौती देने का काम किया था. आज भी झांसी की रानी की कहानी लोगों को रोमांचित करती है और हर साल उन्हें जयंती पर लोग गौरव और श्रद्धा के साथ याद करते हैं.
रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति.
रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति.
आज भी महिलाओं की हैं प्रेरणास्रोत
सामाजिक कार्यकर्ता ममता जैन कहती हैं कि आज भी बड़ी संख्या में महिलाएं ऐसी हैं, जिन्हें सामाजिक रूप से उपेक्षा झेलनी पड़ रह रही है. पढ़े-लिखे परिवारों में भी बहुत सारी महिलाएं हैं, जिन्होंने अपने गांव का चौराहा और सड़क नहीं देखा. दूसरी ओर रानी ने जब 1857 में अंग्रेजों से युद्ध किया, तब इसी झांसी की तेरह से चौदह साल की लड़कियों को अपनी दुर्गा वाहिनी में रखा. यह सेना उन्होंने अंग्रेजों से संघर्ष करने के लिए बनाई जो बेहद क्रूर थे, भाषा में अलग थे, बोलचाल में अलग थे और जिनका यहां से कोई भावनात्मक सम्बन्ध नहीं था. उनसे युद्ध करने के लिए रानी ने महिलाओं पर अटूट विश्वास किया कि ये लड़ सकती हैं और इन्हें सेना में लेना चाहिए.

झांसी: अंग्रेजों के विरुद्ध रणयज्ञ में अपने प्राणों की आहुति देने वाले योद्धाओं में वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई का नाम सर्वोपरी माना जाता है. आजादी की पहली लड़ाई की महानायिका झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की जयंती 19 नवंबर को मनाई जाती है. अपने तलवार के दम पर मात्र तेईस साल की उम्र में उन्होंने शौर्य की जो इबारत लिखी, वैसा दूसरा उदाहरण पूरी दुनिया में कहीं भी देखने को नहीं मिलता. आज भी झांसी के जर्रे-जर्रे में रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की कहानियां जीवंत रूप में मौजूद हैं और हमें रानी के शौर्य और बलिदान की याद दिलाती हैं.

लक्ष्मीबाई की आकृति बनाता कलाकार.
लक्ष्मीबाई की आकृति बनाता कलाकार.
काशी में जन्मीं और झांसी में विवाह
19 नवंबर 1835 को काशी में जन्मी छबीली मनु का विवाह 1848 में झांसी के राजा गंगाधर राव से हुआ. इसके बाद वे झांसी की रानी बनीं और उनका नाम लक्ष्मीबाई पड़ा. पति गंगाधर राव की असामयिक मौत और फिर बेटे की मौत के बाद झांसी राज पर नजर जमाये ब्रिटिश हुकूमत ने झांसी राज्य को हड़पने के लिए कई साजिशें रचीं. अंग्रेजों से लोहा लेते हुए 18 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर में बलिदान हो गईं.
रानी लक्ष्मीबाई के शौर्य की गाथा
रानी ने बनाई थी महिला सैनिकों की टुकड़ी
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से युद्ध करने के लिए महिलाओं का एक दस्ता तैयार किया था और अपनी सेविकाओं को इसकी कमान दी थी. इस दस्ते की महिला सिपाहियों को घुड़सवारी, युद्ध कौशल, तोप चलाने तक का प्रशिक्षण दिया गया. रानी की सेना की महिला सिपाहियों ने अंग्रेजी सेना को युद्ध के मैदान में कड़ी चुनौती देने का काम किया था. आज भी झांसी की रानी की कहानी लोगों को रोमांचित करती है और हर साल उन्हें जयंती पर लोग गौरव और श्रद्धा के साथ याद करते हैं.
रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति.
रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति.
आज भी महिलाओं की हैं प्रेरणास्रोत
सामाजिक कार्यकर्ता ममता जैन कहती हैं कि आज भी बड़ी संख्या में महिलाएं ऐसी हैं, जिन्हें सामाजिक रूप से उपेक्षा झेलनी पड़ रह रही है. पढ़े-लिखे परिवारों में भी बहुत सारी महिलाएं हैं, जिन्होंने अपने गांव का चौराहा और सड़क नहीं देखा. दूसरी ओर रानी ने जब 1857 में अंग्रेजों से युद्ध किया, तब इसी झांसी की तेरह से चौदह साल की लड़कियों को अपनी दुर्गा वाहिनी में रखा. यह सेना उन्होंने अंग्रेजों से संघर्ष करने के लिए बनाई जो बेहद क्रूर थे, भाषा में अलग थे, बोलचाल में अलग थे और जिनका यहां से कोई भावनात्मक सम्बन्ध नहीं था. उनसे युद्ध करने के लिए रानी ने महिलाओं पर अटूट विश्वास किया कि ये लड़ सकती हैं और इन्हें सेना में लेना चाहिए.
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