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सिर्फ स्वतंत्रता दिवस पर याद की जाती है इन 16 शहीदों की कुर्बानी

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Published : Aug 15, 2019, 2:07 AM IST

देश को आजादी दिलाने के लिए अंग्रेजों से लोहा लेने वाले शहीदों की उपेक्षा की गई है. उनके परिवार के लोगों में जबरदस्त नाराजगी भी देखने को मुिल रही है. आज भी 15 अगस्त के दिन गांव में बने शहीद स्मारक पर शहीदों के नाम पर मेला लगता है. बस इस मेले में ही परिवार के शहीद क्रांतिकारी सदस्यों को याद किया जाता है.

क्या याद है 16 शहीदों की कुर्बानी.

जौनपुर: आजाद भारत के लिए 15 अगस्त सिर्फ एक तारीख ही नहीं बल्कि उस आजादी का जश्न है, जिसके लिए कितने ही वीर जवानों ने अपनी जान की बाजी लगाई, कितने ही महान नायकों ने जेल में यातनाएं सही. वहीं जिले के वीर नायकों ने भी आजादी के आंदोलन में अपनी अग्रणी भूमिका निभाई थी.

क्या याद है 16 शहीदों की कुर्बानी.


जिले का हौज गांव क्रांतिकारियों के गांव के रूप में जाना जाता है. इस गांव के 16 क्रांतिकारियों ने 5 जून 1857 को अंग्रेजों की एक टोली की गोली मारकर हत्या कर दी. इन क्रांतिकारियों ने उनके शवों को जमीन में दफना दिया. इस घटना के बाद एक ही परिवार के 15 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई. वही एक व्यक्ति को काला पानी की सजा दी गई.

गांव में शहीदों के नाम पर मेले का आयोजन होता है-
इस घटना से पूर्वांचल में आजादी के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 की क्रांति फैल गई. आजादी के पर्व 15 अगस्त के करीब आते ही लोगों के जेहन में शहीदों की यादें फिर से ताजा हो जाती है. आज भी स्वतंत्रता दिवस के नजदीक आने से गांव के शहीद स्मारक पर शहीदों के नाम पर मेले का आयोजन किया जाता हैं. शहीद क्रांतिकारियों के इस परिवार की पांचवी पीढ़ी आज भी गांव में रह रही है, जिनके पास अपने वीर शहीदों की कुछ यादें सहेजी हुई रखी हैं. उन यादों वह याद करके वह गर्व की अनुभूति करते हैं.


कैसे हुई हौज गांव से क्रांति की शुरुआत-
जिले का हौज गांव को 16 शहीद क्रांन्तिकारीयों के चलते जाना जाता है. ये सभी क्रन्तिकारी चौहान राजपूत थे. इस परिवार की पांचवी पीढ़ी चल रही है. परिवार के वरिष्ठ नागरिक चिंताहरन सिंह जीवित है, जो उस दौर की पूरी घटना का जीवन्त वृतांत को आज भी कुछ कागजों में सहेजे है. वह बताते हैं उनका गांव आजादी के पहले से ही बनारस नेशनल हाईवे पर स्थित है. यह गांव चौहान राजपूतों का गांव बोला जाता है. गांव के पास ही अंग्रेजों की एक टुकड़ी रहती थी, जिसमें सार्जेंट वुड नाम का अंग्रेज था.

क्रांतिकारीयों ने अंग्रेजों को खत्म करने की बनाई थी योजना-
उन दिनों प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन की क्रांति के चलते अंग्रेज बिग वुड के नेतृत्व में अंग्रेजों की टुकड़ी हाईवे के रास्ते बनारस जा रही थी. इस सूचना पर उनकी ही परिवार के बाल दत्त सिंह ने इन अंग्रेजों को खत्म करने की योजना बनाई. परिवार के बड़े होने के नाते बाल दत्त सिंह के साथ और भी युवक आ गए. 5 जून 1857 को गांव के बाहर पुलिया के समीप अंग्रेजों की पूरी टोली को घेरकर मार दिया गया, जिसमें सार्जेंट बिग वुड भी शामिल था. इस घटना की सूचना पूरे पूर्वांचल में आग की तरह फैल गई. फिर अंग्रेज की कोर्ट में इसका मुकदमा चला जिसके बाद उनके परिवार के 15 लोगों को तीन बार में फांसी दी गई. जबकि बाल दत्त सिंह जो फरार हो चुके थे उनको बाद में पकड़कर काला पानी की सजा दी गई.

पहले चरण की फांसी पाने वाले
7 जून 1858

  • मुखी
  • रमेशर
  • भान
  • परसन
  • शिवपाल

दूसरे चरण की फांसी पाने वाले

8 जून 1858

  • रामदीन
  • शुखलाल
  • इन्द्रमन
  • शिवदीन
  • बरन

तीसरे चरण में फांसी पाने वाले

17 सितंबर 1858

  • गोवर्धन
  • ठकुरी
  • बावर
  • सुख्खू
  • माता दीन
  • बाल दत्त सिंह को अंग्रेजों ने काला पानी की सजा दी थी.

उस समय इस घटना के बाद परिवार में केवल महिलाएं ही बच पाई थी. फांसी पाने वाले ज्यादातर युवक थे, जो 20 से 25 साल के थे. इस सजा की बात परिवार के कई लोग दूसरे जिलो को चले गए.
-चिंता हरण सिंह, क्रांतिकारी परिवार के सदस्य


परिवार के 16 लोगों ने अपने प्राण की आहुति देश की आजादी के लिए दी थी. आज उसका परिवार पहचान के संकट से जूझ रहा है. सरकार के द्वारा कोई भी सुविधा नहीं दी गई है. वहीं नहीं स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा भी नहीं दिया गया. अगर कोई भी सम्मान दिया जाता, तो उनका परिवार आज उसके सहारे निश्चित रूप से बड़ी पहचान का हकदार होता.
-जटाधारी सिंह, शहीद परिवार की पांचवी पीढ़ी के सदस्य

जौनपुर: आजाद भारत के लिए 15 अगस्त सिर्फ एक तारीख ही नहीं बल्कि उस आजादी का जश्न है, जिसके लिए कितने ही वीर जवानों ने अपनी जान की बाजी लगाई, कितने ही महान नायकों ने जेल में यातनाएं सही. वहीं जिले के वीर नायकों ने भी आजादी के आंदोलन में अपनी अग्रणी भूमिका निभाई थी.

क्या याद है 16 शहीदों की कुर्बानी.


जिले का हौज गांव क्रांतिकारियों के गांव के रूप में जाना जाता है. इस गांव के 16 क्रांतिकारियों ने 5 जून 1857 को अंग्रेजों की एक टोली की गोली मारकर हत्या कर दी. इन क्रांतिकारियों ने उनके शवों को जमीन में दफना दिया. इस घटना के बाद एक ही परिवार के 15 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई. वही एक व्यक्ति को काला पानी की सजा दी गई.

गांव में शहीदों के नाम पर मेले का आयोजन होता है-
इस घटना से पूर्वांचल में आजादी के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 की क्रांति फैल गई. आजादी के पर्व 15 अगस्त के करीब आते ही लोगों के जेहन में शहीदों की यादें फिर से ताजा हो जाती है. आज भी स्वतंत्रता दिवस के नजदीक आने से गांव के शहीद स्मारक पर शहीदों के नाम पर मेले का आयोजन किया जाता हैं. शहीद क्रांतिकारियों के इस परिवार की पांचवी पीढ़ी आज भी गांव में रह रही है, जिनके पास अपने वीर शहीदों की कुछ यादें सहेजी हुई रखी हैं. उन यादों वह याद करके वह गर्व की अनुभूति करते हैं.


कैसे हुई हौज गांव से क्रांति की शुरुआत-
जिले का हौज गांव को 16 शहीद क्रांन्तिकारीयों के चलते जाना जाता है. ये सभी क्रन्तिकारी चौहान राजपूत थे. इस परिवार की पांचवी पीढ़ी चल रही है. परिवार के वरिष्ठ नागरिक चिंताहरन सिंह जीवित है, जो उस दौर की पूरी घटना का जीवन्त वृतांत को आज भी कुछ कागजों में सहेजे है. वह बताते हैं उनका गांव आजादी के पहले से ही बनारस नेशनल हाईवे पर स्थित है. यह गांव चौहान राजपूतों का गांव बोला जाता है. गांव के पास ही अंग्रेजों की एक टुकड़ी रहती थी, जिसमें सार्जेंट वुड नाम का अंग्रेज था.

क्रांतिकारीयों ने अंग्रेजों को खत्म करने की बनाई थी योजना-
उन दिनों प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन की क्रांति के चलते अंग्रेज बिग वुड के नेतृत्व में अंग्रेजों की टुकड़ी हाईवे के रास्ते बनारस जा रही थी. इस सूचना पर उनकी ही परिवार के बाल दत्त सिंह ने इन अंग्रेजों को खत्म करने की योजना बनाई. परिवार के बड़े होने के नाते बाल दत्त सिंह के साथ और भी युवक आ गए. 5 जून 1857 को गांव के बाहर पुलिया के समीप अंग्रेजों की पूरी टोली को घेरकर मार दिया गया, जिसमें सार्जेंट बिग वुड भी शामिल था. इस घटना की सूचना पूरे पूर्वांचल में आग की तरह फैल गई. फिर अंग्रेज की कोर्ट में इसका मुकदमा चला जिसके बाद उनके परिवार के 15 लोगों को तीन बार में फांसी दी गई. जबकि बाल दत्त सिंह जो फरार हो चुके थे उनको बाद में पकड़कर काला पानी की सजा दी गई.

पहले चरण की फांसी पाने वाले
7 जून 1858

  • मुखी
  • रमेशर
  • भान
  • परसन
  • शिवपाल

दूसरे चरण की फांसी पाने वाले

8 जून 1858

  • रामदीन
  • शुखलाल
  • इन्द्रमन
  • शिवदीन
  • बरन

तीसरे चरण में फांसी पाने वाले

17 सितंबर 1858

  • गोवर्धन
  • ठकुरी
  • बावर
  • सुख्खू
  • माता दीन
  • बाल दत्त सिंह को अंग्रेजों ने काला पानी की सजा दी थी.

उस समय इस घटना के बाद परिवार में केवल महिलाएं ही बच पाई थी. फांसी पाने वाले ज्यादातर युवक थे, जो 20 से 25 साल के थे. इस सजा की बात परिवार के कई लोग दूसरे जिलो को चले गए.
-चिंता हरण सिंह, क्रांतिकारी परिवार के सदस्य


परिवार के 16 लोगों ने अपने प्राण की आहुति देश की आजादी के लिए दी थी. आज उसका परिवार पहचान के संकट से जूझ रहा है. सरकार के द्वारा कोई भी सुविधा नहीं दी गई है. वहीं नहीं स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा भी नहीं दिया गया. अगर कोई भी सम्मान दिया जाता, तो उनका परिवार आज उसके सहारे निश्चित रूप से बड़ी पहचान का हकदार होता.
-जटाधारी सिंह, शहीद परिवार की पांचवी पीढ़ी के सदस्य

Intro:जौनपुर।। आजाद भारत के लिए 15 अगस्त सिर्फ 1 तारीख ही नहीं बल्कि उस आजादी के जश्न का दिन है, जिसके लिए कितने ही वीर जवानों ने अपनी जान की बाजी लगाई और कितने महान नायकों ने जेल में यातनाएं सही। जौनपुर की वीर नायकों ने भी आजादी के आंदोलन में अपनी अग्रणी भूमिका निभाई। जनपद का हौज गांव को तो क्रांतिकारियों का गांव के रूप में जाना जाता है । इस गांव के 16 क्रांतिकारियों ने 5 जून 1957 को अंग्रेजों की एक टोली को गोली मारकर हत्या कर दी और उनके शवों को जमीन में दफना दिया। जिसके बाद एक ही परिवार के 15 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई। वही एक व्यक्ति को काला पानी की सजा भी दी गई । इस घटना से पूर्वांचल में आजादी के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 क्रांति फैल गई। आजादी के पर्व 15 अगस्त के करीब आते ही लोगो के जेहन में शहीदों की यादें फिर से ताज़ा हो जाती है। आज भी स्वतंत्रता दिवस के नजदीक आने ही गांव के शहीद स्मारक पर शहीदों के नाम पर मेले का आयोजन किया जाता हैं। शहीद क्रांतिकारियों के इस परिवार की पांचवी पीढ़ी आज भी गांव में रह रही है जिनके पास अपने वीर शहीदों की कुछ यादें तो सहेजी हुई हैं जिन्हें याद करके वह गर्व की अनुभूति भी करते हैं।


Body:वीओ।। जौनपुर की धरती वीर क्रांतिकारियों की धरती कहीं जाए तो यह कहीं से भी अनुचित न होगा। क्योंकि आजादी मिलने में यहां के वीर सपूतों का बहुत बड़ा योगदान है । आजादी के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की क्रांति की शुरुआत इसी जनपद के हौज गांव से हुई थी जिसको आज पूरा देश जानता है।


कैसे हुई हौज गांव से क्रांति की शुरुआत-

जौनपुर जनपद का हौज गांव को 16 शहीद क्रन्तिकारी के चलते जाना जाता है। ये सभी क्रन्तिकारी चौहान राजपूत थे । आज इस परिवार की पांचवी पीढ़ी चल रही है ।परिवार के वरिष्ठ नागरिक चिंताहरन सिंह जीवित है जो उस दौर की पूरी घटना का जीवन्त वृतांत को आज भी कुछ कागजो में सहेजे है। वे बताते है उनका गांव आजादी के पहले से ही बनारस नेशनल हाईवे पर स्थित है। यह गांव चौहान राजपूतों का गांव बोला जाता है । गांव के पास है अंग्रेजों की एक टुकड़ी रहती थी, जिसका सार्जेंट वुड नाम का अंग्रेज था । उन दिनों प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन की क्रांति के चलते अंग्रेज बिग वुड के नेतृत्व में अंग्रेजों की टुकड़ी हाईवे के रास्ते बनारस जा रही थी। इस सूचना पर उनकी ही परिवार के बाल दत्त सिंह ने इन अंग्रेजों को खत्म करने की योजना बनाई। परिवार के बड़े होने के नाते बाल दत्त सिंह के साथ और भी युवकों ने साथ दिया। 5 जून 1857 को गांव के बाहर पुलिया के समीप अंग्रेजों की पूरी टोली को घेरकर मार दिया गया, जिसमें सार्जेंट बिग वुड भी शामिल था। इस घटना की सूचना पूरे पूर्वांचल में आग की तरह फैल गई। फिर अंग्रेज की कोर्ट में इसका मुकदमा चला जिसके बाद उनके परिवार के 15 लोगों को तीन बार में फांसी दी गई। जबकि बाल दत्त सिंह जो फरार हो चुके थे उनको बाद में पकड़कर काला पानी की सजा दी गई।

पहले चरण की फांसी पाने वाले
7जून 1858

1-मुखी
2-रमेशर
3-भान
4-परसन
5-शिवपाल

दूसरे चरण की फांसी पाने वाले

8 जून 1858

6-रामदीन
7-शुखलाल
8-इन्द्रमन
9-शिवदीन
10-बरन

तीसरे चरण में फांसी पाने वाले

17/09/1858

11- गोवर्धन
12-ठकुरी
13-बावर
14-सुख्खू
15- माता दीन

16- बाल दत्त सिंह को अंग्रेजों ने काला पानी की सजा दी थी।


परिवार के चिंता हरण सिंह ने बताया कि उस समय इस घटना के बाद परिवार में केवल महिलाएं ही बच पाई थी। फांसी पाने वाले ज्यादातर युवक थे जो 20 से 25 साल के थे। इस सजा की बात परिवार की कई लोग दूसरे जनपदों को चले गए। आज भी उस दौर के कुछ उर्दू दस्तावेजों को उन्होंने हिंदी में अनुवाद करके अपने पास सहेज कर रखा हुआ है जिनकी यादों के सहारे वह अपने परिवार के उन वीर क्रांतिकारियों पर गर्व का अनुभव करते हैं।


बाइट- चिंता हरण सिंह- क्रांतिकारी परिवार के सदस्य


क्रांतिकारी चौहान परिवार के पांचवी पीढ़ी के जटाधारी सिंह को इस बात का दुख है कि जिस परिवार के 16 लोगों ने अपने प्राण की आहुति देश की आजादी के लिए थी। आज उसका परिवार पहचान के संकट से जूझ रहा है। सरकार के द्वारा उनको कोई भी सुविधा नहीं दी गई है। वहीं नहीं स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा भी दिया गया । अगर कोई भी सम्मान दिया जाता तो उनका परिवार आज उसके सहारे निश्चित रूप से बड़ी पहचान का हकदार भी होता।


बाइट- जटाधारी सिंह- शहीद परिवार की पांचवी पीढ़ी के सदस्य







Conclusion:देश को आजादी दिलाने के लिए अंग्रेजों से लोहा लेने वाले शहीदों की उपेक्षा की गई है। उनके परिवार के लोगों में जबरदस्त नाराजगी भी है। आज भी 15 अगस्त के दिन गांव में बने शहीद स्मारक पर शहीदों के नाम पर मेला जरूर लगता है । इस मेले में ही परिवार के शहीद क्रांतिकारी सदस्यों को याद किया जाता है ।


पीटीसी


नोट- इस खबर की विजुअल और बाइट की एडिटिंग डेट्स द्वारा की जानी है। आज्ञा से शैलेंद्र कंठ सर


Dharmendra singh
jaunpur
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