जौनपुर: वैश्विक महामारी कोरोना के चलते पूरा विश्व परेशान है. देश में लगातार मरीजों की संख्या बढ़ने से सरकार भी परेशान है. लॉकडाउन खत्म होने के बाद अब अनलॉक 1 चल रहा है. इसके साथ ही बाजारों को भी खोल दिया गया है. जिससे कि लोगों को रोजगार मिल सके और वे अपने परिवार को भुखमरी से बचा सकें.
इन सबके बीच जौनपुर में ईंट-भट्ठे पर काम करने वाले मुसहर जाति के लोग भट्ठे बंद होने से परेशान हैं. रोजगार नहीं मिलने से उन्हें अपने परिवार का पेट पालना भी अब मुश्किल हो रहा है. ऐसी स्थिति में वो अब खेतों में चूहों के बिलों से अनाज ढूंढते हुए अक्सर दिख जा रहे हैं.
कौन हैं मुसहर जाति के लोग
बता दें की मुसहर जाति के लोग वो होते हैं, जो पहले के समय में चूहों को पकड़कर खाया करते थे. धीरे-धीरे चूहों के बिलों में जब उन्हें अनाज मिलना शुरू हुआ तो आज के समय वे अब अनाज पर आश्रित हैं. अगर बात जौनपुर जिले की करें तो यहां करीब 400 से 500 तक मुसहर जाति के लोग रहते हैं. इन लोगों के पास लॉकडाउन के कारण कोई काम नहीं है. वहीं बारिश के कारण ईंट-भट्टा बंद होने के कारण उन्हें और दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
खाने के लिए नहीं है अनाज
लॉकडाउन के कारण मुसहर जाति के लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. हाल ऐसा है कि वे दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने में सक्षम नहीं हैं. उनके पास इस समय अनाज खरीदने तक के लिए पैसे नहीं हैं. इसी वजह से वह इस तपती दुपहरी में दिन भर खेतों में चूहों के बिलों से अनाज ढूंढते हैं, तब जाकर पूरे दिन में उन्हें खाने भर का अनाज मिल पाता है. इसी से उनके परिवार का पेट इस संकट काल में भर रहा है. इन लोगों को सरकार से कोई मदद भी नहीं मिल पा रही है. लोगों का कहना है कि अगर वो चूहों के बिलों से अनाज निकालकर न खाएं तो भूख से मर जाएंगे.
चूहे के बिल से निकालते हैं अनाज
एक तरफ सरकार रोजगार देने के लिए लॉकडाउन को रियायतों के साथ खोल दी है. इसके बावजूद कई ऐसे परिवार हैं, जिन्हें रोजगार नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में अपने परिवार का पेट पालना इन मजदूरों के लिए काफी परेशानी का सबब बनता जा रहा है. हाल ऐसा है कि ये मजदूर अपना पेट भरने के लिए चूहों का बिल खोजते हैं और उससे अनाज निकालकर अपना और अपने परिवार का पेट भरते हैं.
बिल से अनाज निकालकर भरते हैं पेट
चूहे गेहूं की बालियों को काटकर अपने बिलों में इकट्ठा करते हैं. इसी अनाज से वह बारिश के दिनों में अपना पेट भरते हैं. लेकिन चूहों के इस इकट्ठा किए गए अनाज पर इस कोरोना काल में दूसरे लोग भी आश्रित हो गए हैं. मुसहर समाज के लोग रोजगार नहीं मिलने से इन बिलों से अनाज निकालते हैं फिर इन्हें धूप में सुखाकर खाते हैं. इन लोगों के पास और कोई दूसरा रास्ता नहीं है, जिससे वे अपना और अपने परिवार का पेट पाल सकें.
मजदूरों के पास न पैसा है, न सरकार की तरफ से मदद
भट्टे पर काम करने वाले रामधनी बताते हैं की भट्ठे बंद हो गए हैं, जिसके कारण उनके पास कोई काम नहीं है. ऐसी स्थिति में उन्हें परिवार का पेट पालना मुश्किल हो रहा है. इसलिए वह चूहों के बिलों से गेहूं की बालियां इकट्ठा कर रहे हैं. फिर उन्हें सुखाकर पीटते हैं, तब जाकर वह परिवार का पेट पालते हैं. उन्हें सरकार से भी कोई मदद नहीं मिल रही है. वहीं मुन्नी देवी बताती है कि इस कोरोना वायरस से काम-धंधा नहीं मिल रहा है, इसलिए बच्चों का पेट भरने के लिए वह बिलों से गेहूं निकालती हैं. तब जाकर उनका पेट भरता है.
ईंट-भट्टे पर काम करने वाले मजदूर अमरजीत बताते हैं कि भट्ठे इन दिनों बंद हो गए हैं. कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन में उन्हें रोजगार की समस्या हो गई है. इस समय अपने परिवार का पेट पालने के लिए वह दिन भर खेतों में चूहों की बिलों को ढूंढते हैं और फिर उनसे अनाज निकालते हैं. बड़ी मुश्किल से उनके परिवार का पेट भर पाता है. वहीं महिला मजदूर जीरा देवी बताती है कि इन दिनों काम न मिलने के कारण वे लोग बहुत परेशान हैं. पैसे भी नहीं है और न ही सरकार की तरफ से कोई मदद मिल पा रही है. ऐसी स्थिति में वह खेतों में चूहे के बिलों से अनाज निकालती हैं तब जाकर उनके बच्चे खा पाते हैं.