जौनपुर: सई और गोमती नदी के संगम पर स्थित रामेश्वर मंदिर राजा दशरथ के गुरु अष्टावक्र ऋषि की तपोभूमि है, जो बदहाल है. अष्टावक्र की स्थापित मूर्ति भी अष्टावक्र ऋषि की तरह टूटी-फूटी है. अष्टावक्र की प्रतिमा खुले आसमान के नीचे है, जिससे श्रद्धालुओं को काफी निराशा होती है.
जिले के जलालपुर थाना क्षेत्र के राजेपुर में सई-गोमती संगम तट पर रामेश्वर मंदिर स्थित है. इस स्थान का जिक्र गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस में मिलता है. यहां एक शिवलिंग है जिसे स्वयंभू शिवलिंग कहा जाता है. राजा दशरथ के गुरु अष्टावक्र की तपोस्थली होकर भी यह मंदिर उपेक्षा का शिकार है. हर साल गुरु पूर्णिमा के दिन यहां भव्य मेले का आयोजन होता है. गोमती का संगम होने के कारण काफी संख्या में लोग दूर-दराज से यहां दर्शन करने आते हैं.
अष्टावक्र के बारे में बताया जाता है कि वह जब माता सुजाता के गर्भ में थे, तो उनके पिता कहोड़ वेदपाठ कर रहे थे, तभी गर्भ से आवाज आती है कि पिताजी आप गलत वेद पाठ कर रहे हैं. अष्टावक्र के पिता कहोड़ क्रोधित हो जाते हैं कि यह बालक गर्भ से ही मेरी निंदा कर रहा है, जिससे वह अपने पुत्र अष्टावक्र को श्राप देते हैं कि तुम जब पैदा होगे तो आठ जगह से टेढ़े होगे.
इतिहासकार बृजेश यदुवंशी ने बताया कि राजा दशरथ के दरबार में बंदी नामक ऋषि हुआ करते थे, उनसे शास्त्रार्थ में हारने वाले व्यक्ति को जल समाधि लेनी पड़ती थी. अष्टावक्र के पिता कहोड़ को भी बंदी से शास्त्रार्थ में हारकर जल समाधि लेनी पड़ी थी. अष्टावक्र जब राजा दशरथ के दरबार में पहुंचे, तो उनकी खूब हंसी उड़ाई गई. अष्टावक्र ने वहां सबको अपने ज्ञान का परिचय देते हुए बंदी को हराकर अपने पिता को मुक्ति दिलाई थी. बृजेश यदुवंशी ने बताया की ये स्थान अष्टावक्र की तपोभूमि है, यहां पर ऋषि अष्टावक्र की मूर्ति स्थापित है, जो सही से नहीं है. यह मंदिर उपेक्षा का शिकार हुआ है.