जौनपुर: लॉकडाउन के कारण कई मजदूर पलायन करने पर मजबूर हैं. वहीं कई मजदूरोंं को उनके घर तक जाने के लिए साधन मिल जा रहा है तो कई मजदूर ऐसे भी हैं जो खुद ही साइकिल या पैदल अपने घरों की ओर निकल पड़े हैं. इन मजदूरों के हौसलों की दास्तां सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनलों तक चर्चाओं में है.
साइकिल पर निकल पड़ा दिव्यांग
इस दौरान ईटीवी भारत की टीम को एक ऐसे मजदूर से मिलने का मौका मिला जो पैरों से दिव्यांग था, लेकिन हौसलों से मजबूत था. लॉकडाउन में जब उसे कोई साधन नहीं मिला तो उसने पास बचे पैसों से साइकिल खरीदी और घर के लिए निकल गया. श्रीनाथ नाम का मजदूर इलाहाबाद का रहने वाला है, जो नेपाल के समीप एक ईंट भट्ठे पर काम करता था, लेकिन लॉकडाउन की वजह से काम बंद हो गया तो उसे पेट पालना मुश्किल पड़ रहा था. चलने-फिरने में मुश्किल होने के बावजूद भी उसने घर जाने के लिए 5 दिनों तक लगातार साइकिल चलाई. अब घर के नजदीक पहुंचा है तो उसे कुछ राहत मिली है.
मजदूर के हौसले मजबूत
सोशल मीडिया से लेकर अखबारों तक की सुर्खियों में आजकल कुछ ऐसे ही मजदूरों की चर्चाएं हैं, जो अपने मजबूत हौसलों से कोरोनाकाल में एक नए भारत की तस्वीर को बयां कर रहे हैं. ईटीवी भारत की एक ऐसे ही मजदूर से मुलाकात हुई, जो इलाहाबाद का रहने वाला है, जिसका नाम श्रीनाथ है, जो पैसा कमाने के लिए बिहार और नेपाल के बॉर्डर के पास जंगलों में बने ईंट-भट्ठे पर काम करता था.
5 दिन का लंबा सफर किया तय
वहीं लॉकडाउन ने उसकी जिंदगी में बड़ा बदलाव किया. काम-धंधे बंद होने के कारण उसे खाने-पीने में मुश्किल होने लगी. ऐसे में श्रीनाथ ने अपने पैरों की दिव्यांगता को अपनी बैसाखी नहीं बनने दिया और उसने अपने हौसलों के बल पर पास बचे पैसों से एक साइकिल खरीदी और फिर एक लंबे सफर पर निकल गया. पैरों से दिव्यांग होने के कारण श्रीनाथ को साइकिल चलाने में दिक्कत हुई. हालांकि वह अब साइकिल से चलकर 5 दिन में जौनपुर पहुंचा है.
मजदूर श्रीनाथ ने बताया कि वह नेपाल बॉर्डर पर एक ईंट भट्ठे पर काम करता था. डेढ़ महीने से काम बंद होने के बाद किसी तरह वह अपना खाना पीना कर रहा था. जंगल में होने के कारण घर पहुंचने के लिए जब कोई साधन नहीं मिला तो उसने एक नई साइकिल खरीदी और फिर अपने सफर पर निकल पड़ा. लगातार पांच दिन चलने के बाद जौनपुर पहुंचे दिव्यांग ने खुशी जाहिर की.