जालौनः जिले की ऐतिहासिक नगरी कालपी में नाग पंचमी के त्योहार पर डेढ़ सौ साल पुरानी नाग-नागिन मूर्ति की पूजा की जाती है. नाग पंचमी के दिन इस 180 फीट के नाग और 95 फीट नागिन की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है. इस मौके पर यहां डेढ़ सौ वर्षों से मेला और दंगल का आयोजन किया जाता रहा है. हालांकि, बीते दो साल कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के चलते मेले और दंगल का आयोजन नहीं किया गया.
कालपी कस्बे को सांस्कृतिक और ऐतिहासिक नगरी के रूप में जाना जाता है. इसे बुंदेलखंड का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है. सांस्कृतिक धरोहरों में से एक कालपी कस्बे में नाग पंचमी के दिन लंका मीनार पर डेढ़ सौ वर्षों से मेला और दंगल लगता चला आ रहा है. उरई मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर कालपी नगर में नाग पंचमी के दिन कानपुर देहात, हमीरपुर, औरैया, महोबा और जालौन जिले के लोग यहां आकर पूजा-अर्चना करते हैं. परिसर में बने नाग और नागिन का विधि-विधान से पूजा के बाद दोपहर में दंगल का आयोजन किया जाता है.
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कालपी नगर में लंका मीनार पर 180 फीट के नाग देवता और 95 फीट की नागिन का रूप बना हुआ है. यह लंका मीनार नगर के मोहल्ला रामगंज में मौजूद है. इसे बाबू मथुरा प्रसाद ने सन 1875 में बनवाया था. इस लंका मीनार को बनने में 25 वर्षों का समय लगा था और इसकी लंबाई लगभग 30 मीटर है. लंका मीनार के मालिक विवेक निगम ने बताया कि उनके दादाजी ने नाग पंचमी के दिन लंका मीनार पर मेले और दंगल का आयोजन शुरू किया था. जो पिछले 200 वर्षों से निरंतर चल रहा है. इस साल भी यहां दंगल का आयोजन किया जा रहा है. इसमें अनेक प्रांतों से पहलवान अपने दांवपेच दिखाने आ रहे हैं. इस दंगल की ख्याति देश के कोने-कोने में फैली हुई है.
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