हरदोई: जिले के टड़ियावां थाना क्षेत्र अंतर्गत ग्राम सोहासा में हैचरी संचालित करने वाले हनीफ अली ने पंगेशियस मछली की ब्रीडिंग में सफलता हासिल की है. उत्तर प्रदेश में पंगेशियस मछली की ब्रीडिंग करने वाली ये पहली हैचरी हैं. इनके यहां मछली के आठ लाख बच्चे तैयार हैं. इसकी सप्लाई से यूपी समेत उत्तराखंड, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और बिहार के मत्स्य पालकों को बहुत सुविधा होगी. हनीफ अली को तीसरे प्रयास में यह सफलता हासिल हुई है.
सन् 1990 में शुरू किया मछली पालन
हरदोई जिले के विकासखंड अहिरोरी अंतर्गत सुहासा गांव में मत्स्य पालक हनीफ अली ने पंगेशियस मछली की हैचरी तैयार की है. इसमें बड़े पैमाने पर पंगेशियस मछली के सीड तैयार किए जा रहे हैं. हनीफ अली ने सन् 1990 में मछली पालन की शुरुआत की थी. धीरे-धीरे उनका व्यवसाय बढ़ता गया. पंगेशियस मछली की मांग तेजी से बढ़ने के बाद हनीफ अली ने इसके सीड तैयार करने के बारे में सोचा. इसके लिए हनीफ ने लोगों से जानकारी ली और फिर ट्रेनिंग लेने के लिए कोलकाता गए.
10 कोलकाता में ली ट्रनिंग
हनीफ अली ने 10 दिन तक कोलकाता में ट्रेनिंग ली. ट्रेनिंग पूरी करने के बाद कोलकाता से वे पंगेशियस मछली की ब्रीड लेकर आए और तालाब में डालकर उसे पालना शुरू कर दिया. हनीफ अली यहीं पर उसकी सीड तैयार करने लगे. पहले और दूसरे प्रयास में हनीफ अली को सफलता नहीं मिली, लेकिन तीसरे प्रयास में उन्हें सफलता मिल ही गई. फरवरी से वे पंगेशियस मछली की ब्रीड तैयार कर रहे हैं. वर्तमान समय में उनके पास बिक्री के लिए इस मछली के 8 लाख बच्चे तैयार हैं.
उत्तर भारत की पहली हैचरी
हनीफ अली के पंगेशियस मछली की ब्रीड तैयार करने के बाद प्रदेश ही नहीं, बल्कि उत्तर भारत की यह पहली हैचरी बन गई है, जिसमें पंगेशियस मछली की सीड तैयार की जा रही है. पंगेशियस मछली का सीड पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश से आता था. कोलकाता से ब्रीड लाकर लोग इसका पालन करते थे. इससे लोगों को काफी असुविधा होती थी. उत्तर भारत में हैचरी तैयार होने से अब लोगों को सहूलियत होगी.
अब नहीं लगानी होगी लंबी दौड़
मत्स्य पालकों को पंगेशियस मछली पालने के लिए बंगाल से ब्रीड लाना पड़ता था. इसमें मेहनत के साथ खर्जा भी बहुत हो जाता था. उत्तर भारत में हैचरी तैयार होने से अब लोगों का समय भी बचेगा. साथ ही छोटे किसानों को भी इसका लाभ मिलेगा, क्योंकि अभी तक बड़े किसान ही बंगाल से पंगेशियस मछली का सीड मंगाते थे. अब स्थानीय स्तर पर सीड तैयार होने ने छोटे किसान भी मत्स्य पालन कर सकेंगे.
जलवायु का भी पढ़ता था प्रभाव
कोलकाता और बांग्लादेश में तैयार की गई पंगेशियस मछली पर उत्तर भारत के जलवायु का खासा प्रभाव पड़ता था. इस तरह जलवायु में परिवर्तनन होने से कुछ मछलियां रास्ते में ही मर जाती थीं तो कुछ मछलियां पालन के दौरान मर जाती थीं. इससे किसानों को नुकसान होता था. अब यहां की जलवायु में तैयार हुए सीड से मछलियों की मृत्युदर में कमी आएगी और किसानों का नुकसान भी नहीं होगा.
ऐसे करें सीड की रखवाली
जानकार बताते हैं कि मछली पालन के दौरान जब सीड को तालाब में डाला जाता है, तब सांप, मेंढक, कछुए, बगुले से सीड की सुरक्षा करनी पड़ती है. इसके लिए स्नेक फैंसिंग और बर्ड फैंसिंग लगाई जाती है. इसकी लगातार निगरानी की जाती है, ताकि जलीय जीव जंतु और पशु-पक्षी सीड को नुकसान न पहुंचा सकें. मछलियों को खिलाने के लिए एक महीने तक छोटा दाना दिया जाती है. इसके बाद धीरे-धीरे 6 महीने तक इसका दाना बढ़ाया जाता है.
आखिर क्यों है पंगेशियस मछली की ज्यादा डिमांड
पंगेशियस मछली की डिमांड तेजी से बढ़ती जा रही है. इस मछली में कांटे कम होते हैं. साथ ही इसमें प्रोटीन और रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है. तालाब में इसका सीड डालने के 6 महीने बाद यह मछली 1 किलोग्राम की हो जाती है और बिक्री के लिए तैयार हो जाती है. ऐसे में सेहत के साथ-साथ व्यवसाय की दृष्टि से जल्दी तैयार होने वाली यह मछली किसानों को कम समय में अच्छा मुनाफा देती है. केंद्र और प्रदेश सरकार भी मछली पालन पर किसानों को अनुदान मुहैया करा रही हैं.
निदेशालय को भेजी है स्टोरी
सहायक निदेशक मत्स्य विभाग रेखा श्रीवास्तव ने बताया कि किसान हनीफ अली ने पंगेशियस मछली की हैचरी तैयार की है. पहले यह मछली सिर्फ बंगाल में होती थी और इसे पालने के लिए इसका सीड बंगाल से लाना पड़ता था. हनीफ अली ने इसका सफल प्रयोग कर हैचरी तैयार की है. उनके पास 8 लाख मछलियों का सीड तैयार है. प्रदेश में इनका पहला ऐसा कार्य है. इसके लिए निदेशालय को स्टोरी बनाकर भेजी गई है और इन्हें पुरुस्कृत कराने का प्रयास किया जा रहा है.