हमीरपुर: बुंदेलखंड में दीपावली और धनतेरस की पूजा में चांदी की मछली का विशेष महत्व है, जो हमीरपुर के मौदहा कस्बे में बनाई जाती हैं. दिवाली आते ही चांदी की मछली की मांग बढ़ जाती है. एकदम जिन्दा सी दिखने वाली इन चांदी की मछलियों के बिना बुंदेलखंड में दिवाली और धनतेरस पूजा अधूरी मानी जाती है.
चांदी की मछली के खरीदार बताते हैं कि बुंदेलखंड में दिवाली और धनतेरस की पूजा में चांदी की मछली के पूजन की प्राचीन परम्परा है. इस वजह से लगभग सभी लोग अपने हिसाब से इन्हें खरीदकर पूजन करते हैं. हिन्दू धर्म में मीन (मछली ) को शुभ और समृद्धि का प्रतीक मना जाता है, जिसके चलते यह मछलियां घर-घर में खरीदी जाती है.
जिंदा सी दिखने वाली चांदी की मछली
चांदी की मछली बनाने वाले कारीगर बताते हैं कि हिंदुस्तान में अकेले उनके परिवार के लोग ही पिछली कई पीढ़ियों से चांदी की मछलियां बनाते चले आ रहे हैं. एकदम जिंदा सी दिखने वाली चांदी की मछली जब उनके पुरखों द्वारा महारानी विक्टोरिया को भेंट की गई तो महारानी विक्टोरिया ने उनके बाबा को सम्मानित किया था.
परिवार का नाम आइना-ए-अकबरी पुस्तक में दर्ज
मछली की इसी कला के कारण कारीगर के परिवार का नाम आइना-ए-अकबरी पुस्तक में भी दर्ज है. 5 ग्राम से लेकर लगभग 2 किलो तक बनने वाली इन चांदी की मछलियों की दीपावली धनतेरस में पूजा का विशेष महत्व है. इसके अलावा त्योहारी सीजन पर उनके पास विदेशों से भी ऑर्डर आते हैं. दिवाली के मौके पर इसकी मांग खासी बढ़ जाती है. जिसकी आपूर्ति करने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ती है.