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Gorakhpur AIIMS में चार साल बाद भी नहीं जांच की सुविधाएं, मशीनें फांक रहीं धूल

गोरखपुर एम्स में दो साल से एक्सरे और अल्ट्रासांउड जैसी जांच ठप है. यहां सीटी स्कैन और एमआरआई की करोड़ों की मशीन भी ट्रायल के बाद से धूल फांक रही है. इन मशीनों को संचालित करने के लिए अस्पतालों में डाक्टरों की तैनाती नहीं है.

All India Institute of Medical Science
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Published : Jan 18, 2023, 5:50 PM IST

गोरखपुरः जिले में एम्स का उ्दघाटन 2019 में हुआ था. लेकिन तीन साल बीत जाने के बाद भी यहां एक्सरे, सीटी स्कैन और एमआरआई जैसी सुविधा उपलब्ध नहीं है. हालांकि यहां करोड़ों रुपये की मशीन स्थापित की जा चुकी है. लेकिन इसे संचालित करने के लिए डॉक्टरों की तैनाती 4 साल बाद भी नहीं हो पाई है. जो एक्स-रे और सीटी स्कैन जैसी मशीनों को संचालित कर सकें. यहां की पैथोलॉजी भी किराए पर चल रही है. प्राइवेट लैब एम्स में मरीजों की ब्लड जांच करती है. इससे अक्सर रिपोर्ट में भी देरी की खबरें मिलती है. इतना ही नहीं गोरखपुर एम्स के पास उसका खुद का कोई एबुलेंस भी नहीं है. एम्स की कार्यकारी निदेशक कहती हैं कि डॉक्टर नहीं मिले तो भी किसी फर्म से अनुबंध करके ही अब शुरुआत की जाएगी.

2021 से ठप है एम्स में अल्ट्रसाउंडः अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) गोरखपुर में 21 अगस्त 2021 से ही अल्ट्रासाउंड ठप है. अस्पताल में तैनात रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टर पवन कुमार मौर्य ने नौकरी छोड़ दी. इसके बाद अब किसी रेडियोलॉजिस्ट की तैनाती नहीं हुई. करीब एक वर्ष अल्ट्रासाउंड शुरू होने की प्रक्रिया आगे बढ़ाते हुए एक प्राइवेट संस्था को इसके संचालन की जिम्मेदारी मिली. जो कि अब फिर से ठप है. एम्स में बाहर के अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट मान्य नहीं है. इससे भी मरीजों के सामने भारी संकट रहता है. अल्ट्रासाउंड के लिए आने वाले मरीजों को निराश होकर यहां से लौटना पड़ रहा है.

दो साल से बंद है सीटी स्कैन और एमआरआईः डॉक्टर के अभाव में दो साल से सीटी स्कैन और एमआरआई मशीनें बंद है. इससे आज तक कोई जांच नहीं हुई. यह मशीनें ट्रायल के बाद दिसंबर 2020 से ही बंद पड़ी हुई हैं और मरीज बाहर से महंगे रेट पर जांच कराने को मजबूर है. गोरखपुर एम्स में बिहार और नेपाल के साथ ही पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों से भारी संख्या में मरीज आते हैं. 2 वर्ष पहले नवंबर में दो रेडियोलॉजिस्ट की नियुक्ति की गई थी लेकिन उन्होंने ज्वाइन करने से ही मना कर दिया. एम्स को डॉक्टर न मिलने से वह इसकी जिम्मेदारी एक प्राइवेट लैब को दिया गया.

एम्स के मीडिया प्रभारी डॉ. पंकज कुमार श्रीवास्तव कहते हैं कि एक्सरे और अल्ट्रासाउंड कुछ संख्या में प्रारंभ हो गया है. 31 जनवरी 2023 के बाद से यहां सिटी स्कैन भी प्रारंभ हो जाएगा. ऐसी पूरी संभावना है. क्योंकि अब इसकी भी जिम्मेदारी एक प्राइवेट लैब को दे दी गई है. उन्होंने ये भी कहा कि निश्चित रूप से एम्स के पास स्थाई डॉक्टर नहीं है, जिससे अनुबंधित संस्था से काम लेना पड़ रहा है.

एम्स में करीब 17 करोड़ की लागत से आधुनिक मशीनों को स्थापित किया गया है. बता दें कि पूर्वी यूपी में एम्स इलाज के नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण है. एम्स में रोजाना 3 हजार से अधिक मरीजों का ओपीडी में इलाज हो रहा है. इसके साथ ही 300 बेड का आईपीडी शुरू हो चुकी है. बता दें कि एम्स में अल्ट्रासाउंड का शुल्क काफी कम है. यहां 255 रुपये से 323 रुपये तक में अल्ट्रासाउंड हो जाता है. वहीं, प्राइवेट में यही अल्ट्रासाउंड 800 से 1200 में होता है. स्त्री प्रसूति रोग विभाग, सर्जरी, मेडिसिन विभाग को ज्यादा अल्ट्रासाउंड की जरूरत पड़ती है.

ये भी पढ़ेंः Vande Bharat Express : ईटीवी भारत से बोले वंदे भारत ट्रेन के डिजाइनर, 'आधी लागत में तैयार हुई यह ट्रेन, 200 किमी/घंटे की रफ्तार से चलेगी'

गोरखपुरः जिले में एम्स का उ्दघाटन 2019 में हुआ था. लेकिन तीन साल बीत जाने के बाद भी यहां एक्सरे, सीटी स्कैन और एमआरआई जैसी सुविधा उपलब्ध नहीं है. हालांकि यहां करोड़ों रुपये की मशीन स्थापित की जा चुकी है. लेकिन इसे संचालित करने के लिए डॉक्टरों की तैनाती 4 साल बाद भी नहीं हो पाई है. जो एक्स-रे और सीटी स्कैन जैसी मशीनों को संचालित कर सकें. यहां की पैथोलॉजी भी किराए पर चल रही है. प्राइवेट लैब एम्स में मरीजों की ब्लड जांच करती है. इससे अक्सर रिपोर्ट में भी देरी की खबरें मिलती है. इतना ही नहीं गोरखपुर एम्स के पास उसका खुद का कोई एबुलेंस भी नहीं है. एम्स की कार्यकारी निदेशक कहती हैं कि डॉक्टर नहीं मिले तो भी किसी फर्म से अनुबंध करके ही अब शुरुआत की जाएगी.

2021 से ठप है एम्स में अल्ट्रसाउंडः अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) गोरखपुर में 21 अगस्त 2021 से ही अल्ट्रासाउंड ठप है. अस्पताल में तैनात रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टर पवन कुमार मौर्य ने नौकरी छोड़ दी. इसके बाद अब किसी रेडियोलॉजिस्ट की तैनाती नहीं हुई. करीब एक वर्ष अल्ट्रासाउंड शुरू होने की प्रक्रिया आगे बढ़ाते हुए एक प्राइवेट संस्था को इसके संचालन की जिम्मेदारी मिली. जो कि अब फिर से ठप है. एम्स में बाहर के अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट मान्य नहीं है. इससे भी मरीजों के सामने भारी संकट रहता है. अल्ट्रासाउंड के लिए आने वाले मरीजों को निराश होकर यहां से लौटना पड़ रहा है.

दो साल से बंद है सीटी स्कैन और एमआरआईः डॉक्टर के अभाव में दो साल से सीटी स्कैन और एमआरआई मशीनें बंद है. इससे आज तक कोई जांच नहीं हुई. यह मशीनें ट्रायल के बाद दिसंबर 2020 से ही बंद पड़ी हुई हैं और मरीज बाहर से महंगे रेट पर जांच कराने को मजबूर है. गोरखपुर एम्स में बिहार और नेपाल के साथ ही पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों से भारी संख्या में मरीज आते हैं. 2 वर्ष पहले नवंबर में दो रेडियोलॉजिस्ट की नियुक्ति की गई थी लेकिन उन्होंने ज्वाइन करने से ही मना कर दिया. एम्स को डॉक्टर न मिलने से वह इसकी जिम्मेदारी एक प्राइवेट लैब को दिया गया.

एम्स के मीडिया प्रभारी डॉ. पंकज कुमार श्रीवास्तव कहते हैं कि एक्सरे और अल्ट्रासाउंड कुछ संख्या में प्रारंभ हो गया है. 31 जनवरी 2023 के बाद से यहां सिटी स्कैन भी प्रारंभ हो जाएगा. ऐसी पूरी संभावना है. क्योंकि अब इसकी भी जिम्मेदारी एक प्राइवेट लैब को दे दी गई है. उन्होंने ये भी कहा कि निश्चित रूप से एम्स के पास स्थाई डॉक्टर नहीं है, जिससे अनुबंधित संस्था से काम लेना पड़ रहा है.

एम्स में करीब 17 करोड़ की लागत से आधुनिक मशीनों को स्थापित किया गया है. बता दें कि पूर्वी यूपी में एम्स इलाज के नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण है. एम्स में रोजाना 3 हजार से अधिक मरीजों का ओपीडी में इलाज हो रहा है. इसके साथ ही 300 बेड का आईपीडी शुरू हो चुकी है. बता दें कि एम्स में अल्ट्रासाउंड का शुल्क काफी कम है. यहां 255 रुपये से 323 रुपये तक में अल्ट्रासाउंड हो जाता है. वहीं, प्राइवेट में यही अल्ट्रासाउंड 800 से 1200 में होता है. स्त्री प्रसूति रोग विभाग, सर्जरी, मेडिसिन विभाग को ज्यादा अल्ट्रासाउंड की जरूरत पड़ती है.

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