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निर्जला एकादशी व्रत आज, व्रती को मिलता है सभी तीर्थों का पुण्य

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के विद्वान ज्योतिषी शरद चंद मिश्र ने एकादशी व्रत के महत्व को बताया. वहीं उन्होंने बताया कि इस व्रत को करने से कैसे सारी मनोकामना पूर्ण होती है.

bhimsen ekadashi
भीमसेन एकादशी
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Published : Jun 2, 2020, 11:45 AM IST

गोरखपुर: मंगलवार 2 जून को निर्जला एकादशी का व्रत है. इस दिन व्रत का विधान है. समस्त पापों से विमुक्ति के लिए इस व्रत को किया जाता है. जिले के विद्वान ज्योतिषी शरद चंद मिश्र ने इस व्रत के माहात्म्य को बताते हुए कहा कि इस एकादशी के व्रत को करने से समस्त तीर्थों का पुण्य, सभी 26 एकादशियों का फल और सब दानादि का फल मिलता है.

ज्योतिषी का कहना है कि उपवास धन-धान्य देने वाला, पुत्र प्रदायक, आरोग्यता को बढ़ाने वाला और दीर्घायु प्रदान करने वाला है. श्रद्धा और भक्ति से किया गया यह व्रत सब पापों को तत्काल क्षीण कर देता है. इस दिन जो मनुष्य स्नान, दान और हवन करता है, वह सब प्रकार से अक्षय हो जाता है. ऐसा भगवान श्रीकृष्ण का कथन है कि जो फल सूर्य ग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में दान करने से प्राप्त होता है, वहीं फल इस व्रत को करने और इसके माहात्म्य को श्रवण करने से भी प्राप्त होता है. इसे भीमसेन एकादशी भी कहते हैं.

पंडित मिश्र ने कहा कि इस व्रत से व्रती की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और वह इस जगत का सम्पूर्ण सुख भोगते हुए परम धाम जाकर मोक्ष प्राप्त करता है. इसके पूजन विधि के बारे में उन्होंने कहा कि व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है. इस दिन ब्राह्ममुहूर्त में उठकर दैनिक कर्मों से निवृत होकर स्नान करके पवित्र हों. फिर स्वच्छ वस्त्र धारणकर भगवान विष्णु की पूजा-आराधना और आरती भक्ति भाव से विधि-विधान के अनुसार करें.

इस दिन महिलाएं पूर्ण श्रृंगार कर मेंहदी रचाकर पूर्ण श्रद्धा, भक्तिभाव से पूजन के अनन्तर कलश के जल से पीपल के वृक्ष को अर्घ्य प्रदान करें. अर्घ्य देने का कार्य पुरुष भी कर सकते हैं. फिर व्रती प्रातः काल सूर्योदय से आरंभ कर दूसरे दिन सूर्योदय तक जल और अन्न का सेवन न करें. चूंकि ज्येष्ठ मास के समय दिन लंबे और भीषण गर्मी का वातावरण रहता है, इसलिए प्यास लगना स्वाभाविक है. ऐसे में जल ग्रहण न करना सचमुच एक बड़ी साधना का कार्य है.

बड़े कष्टों से गुजर कर यह व्रत पूरा होता है. इस एकादशी के दिन अन्न अथवा जल का सेवन करने से व्रत खण्डित हो जाता है. व्रत के दूसरे दिन यानि द्वादशी के दिन प्रातः काल निर्मल जल से स्नान कर भगवान विष्णु की प्रतिमा या पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाकर प्रार्थना करें. इसके बाद यथाशक्ति ब्राह्मणों को दान दक्षिणा में शीतल जल से भरा मिट्टी का घड़ा, अन्न, छाता, पंखा, गो, पान, शय्या, आसन, स्वर्ण दान करें. ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति जल से भरा जलघट दान करता है, उसे कोटि सुवर्ण दान का फल मिलता है. इस दिन आए याचक को खाली हाथ वापस करना बुरा समझा जाता है.

इसे भीमसेन एकादशी भी कहा जाता है. इसके पीछे की कहानी यह है कि एक दिन महर्षि वेदव्यास से भीमसेन (भीम) ने पूछा पितामह माता कुंती, द्रौपदी और मेरे चारों भाई सभी एकादशी के दिन उपवास करते हैं. निर्जला एकादशी के दिन तो जल तक ग्रहण नहीं करते. वह चाहते हैं कि वे भी उनकी तरह विधि-विधान पूर्वक उपवास रखकर व्रत करें मगर वे ऐसा नहीं कर पाते. उन्होंने पूछा कि उन्हें क्या करना चाहिए. महर्षि वेदव्यास बोले भीम तुम जेठ माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करो. इस व्रत में स्नान और आचमन को छोड़ जल का उपयोग मत करना. इससे सभी एकादशियों का पुण्य तुम्हें प्राप्त होगा. तभी से यह व्रत भीमसेन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.

गोरखपुर: मंगलवार 2 जून को निर्जला एकादशी का व्रत है. इस दिन व्रत का विधान है. समस्त पापों से विमुक्ति के लिए इस व्रत को किया जाता है. जिले के विद्वान ज्योतिषी शरद चंद मिश्र ने इस व्रत के माहात्म्य को बताते हुए कहा कि इस एकादशी के व्रत को करने से समस्त तीर्थों का पुण्य, सभी 26 एकादशियों का फल और सब दानादि का फल मिलता है.

ज्योतिषी का कहना है कि उपवास धन-धान्य देने वाला, पुत्र प्रदायक, आरोग्यता को बढ़ाने वाला और दीर्घायु प्रदान करने वाला है. श्रद्धा और भक्ति से किया गया यह व्रत सब पापों को तत्काल क्षीण कर देता है. इस दिन जो मनुष्य स्नान, दान और हवन करता है, वह सब प्रकार से अक्षय हो जाता है. ऐसा भगवान श्रीकृष्ण का कथन है कि जो फल सूर्य ग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में दान करने से प्राप्त होता है, वहीं फल इस व्रत को करने और इसके माहात्म्य को श्रवण करने से भी प्राप्त होता है. इसे भीमसेन एकादशी भी कहते हैं.

पंडित मिश्र ने कहा कि इस व्रत से व्रती की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और वह इस जगत का सम्पूर्ण सुख भोगते हुए परम धाम जाकर मोक्ष प्राप्त करता है. इसके पूजन विधि के बारे में उन्होंने कहा कि व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है. इस दिन ब्राह्ममुहूर्त में उठकर दैनिक कर्मों से निवृत होकर स्नान करके पवित्र हों. फिर स्वच्छ वस्त्र धारणकर भगवान विष्णु की पूजा-आराधना और आरती भक्ति भाव से विधि-विधान के अनुसार करें.

इस दिन महिलाएं पूर्ण श्रृंगार कर मेंहदी रचाकर पूर्ण श्रद्धा, भक्तिभाव से पूजन के अनन्तर कलश के जल से पीपल के वृक्ष को अर्घ्य प्रदान करें. अर्घ्य देने का कार्य पुरुष भी कर सकते हैं. फिर व्रती प्रातः काल सूर्योदय से आरंभ कर दूसरे दिन सूर्योदय तक जल और अन्न का सेवन न करें. चूंकि ज्येष्ठ मास के समय दिन लंबे और भीषण गर्मी का वातावरण रहता है, इसलिए प्यास लगना स्वाभाविक है. ऐसे में जल ग्रहण न करना सचमुच एक बड़ी साधना का कार्य है.

बड़े कष्टों से गुजर कर यह व्रत पूरा होता है. इस एकादशी के दिन अन्न अथवा जल का सेवन करने से व्रत खण्डित हो जाता है. व्रत के दूसरे दिन यानि द्वादशी के दिन प्रातः काल निर्मल जल से स्नान कर भगवान विष्णु की प्रतिमा या पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाकर प्रार्थना करें. इसके बाद यथाशक्ति ब्राह्मणों को दान दक्षिणा में शीतल जल से भरा मिट्टी का घड़ा, अन्न, छाता, पंखा, गो, पान, शय्या, आसन, स्वर्ण दान करें. ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति जल से भरा जलघट दान करता है, उसे कोटि सुवर्ण दान का फल मिलता है. इस दिन आए याचक को खाली हाथ वापस करना बुरा समझा जाता है.

इसे भीमसेन एकादशी भी कहा जाता है. इसके पीछे की कहानी यह है कि एक दिन महर्षि वेदव्यास से भीमसेन (भीम) ने पूछा पितामह माता कुंती, द्रौपदी और मेरे चारों भाई सभी एकादशी के दिन उपवास करते हैं. निर्जला एकादशी के दिन तो जल तक ग्रहण नहीं करते. वह चाहते हैं कि वे भी उनकी तरह विधि-विधान पूर्वक उपवास रखकर व्रत करें मगर वे ऐसा नहीं कर पाते. उन्होंने पूछा कि उन्हें क्या करना चाहिए. महर्षि वेदव्यास बोले भीम तुम जेठ माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करो. इस व्रत में स्नान और आचमन को छोड़ जल का उपयोग मत करना. इससे सभी एकादशियों का पुण्य तुम्हें प्राप्त होगा. तभी से यह व्रत भीमसेन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.

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