गोरखपुर: सावन का महीना भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना का विशेष माह माना जाता है. खासकर इस महीने में प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर जल चढ़ाने का विशेष महत्व है. इस बार का सावन शिव भक्तों के लिए बेहद खास है, क्योंकि इसकी शुरुआत ही सोमवार से हो रही है और पूरे महीने में पांच सोमवार का दिन पड़ेगा.
गोरखपुर के जाने-माने विद्वान ज्योतिषी शरद चंद्र मिश्र की मानें तो इन पांच सोमवार में तीसरे सोमवार को सोमवती अमावस्या और पांचवें सोमवार को पूर्णिमा के साथ रक्षाबंधन जैसा पवित्र पर्व भी पड़ रहा है, इसीलिए इस बार का सावन बेहद ही खास बन गया है.
6 जुलाई से प्रारंभ हो रहा सावन 3 अगस्त को यानी सोमवार के दिन को समाप्त हो रहा है. ज्योतिषी शरद चंद्र मिश्र के अनुसार, सामान्य तौर पर सावन में चार सोमवार ही मिलते हैं, लेकिन इस वर्ष एक सोमवार की वृद्धि ही सर्वतोमुखी अभ्युदय का परिचायक है. प्रत्येक मास में दो महत्वपूर्ण पर्व होते हैं, एक अमावस्या और दूसरा पूर्णिमा.
इस वर्ष के सावन महीने में दोनों पर्व सोमवार को ही पड़ रहे हैं, इसीलिए यह महीना खुद ही उत्कृष्ट हो जाता है. श्रावण मास में शिव आराधना का विशेष महत्व है. भारतीय वांग्मय में सावन मास अपनी संस्कृति है. जेष्ठ मास की तीव्र गर्मी और आषाढ़ की उमस भरी गर्मी के बाद इस महीने में अमृत की वर्षा होती है.
सावन सोमवार की सभी तारीखें
- सावन का पहला सोमवार 06 जुलाई 2020
- सावन का दूसरा सोमवार 03 जुलाई 2020
- सावन का तीसरा सोमवार 20 जुलाई 2020
- सावन का चौथा सोमवार 27 जुलाई 2020
- सावन का पांचवां सोमवार 03 अगस्त 2020
सावन माह का महत्व
सावन का महीना, श्रवण नक्षत्र और सोमवार से भगवान शिव का गहरा नाता है. भगवान शिव ने स्वयं अपने श्रीमुख से सनत्कुमार से कहा कि मुझे बारह महीनों में सावन विशेष प्रिय है. इसी काल में वह श्रीहरि से मिलकर लीला करते हैं. इस महीने में गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, शतरुद्री पाठ और पुरुष सूक्त का पाठ एवं पंचाक्षर, षडाक्षर आदि शिव मंत्रों और नामों का जप विशेष फल देता है.
सावन माह में शिवजी की आराधना करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस महीने में लोग सुखी विवाहित जीवन की कामना के लिए व्रत रखते हैं. साथ ही महिलाएं अच्छा जीवनसाथी पाने के लिए भी सावन माह के सोमवार को व्रत रखती हैं.
जलाभिषेक करने का कारण
इस महीने में भगवान शिव का जलाभिषेक करने के प्रसंग में कहा जाता है कि सतयुग में देव और दानवों के मध्य अमृत प्राप्ति के लिए सागर मंथन हो रहा था. अमृत कलश से पूर्व हलाहल विष निकला. विष की भयंकर लपट न सह पाने के कारण सभी देवगण भगवान ब्रह्माजी के पास गए. ब्रह्माजी ने अपने तपोबल से कहा कि अब समस्त ब्रह्मांड को सिर्फ भगवान शिव ही बचा सकते हैं.
सभी देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्मा जी के अनुरोध पर विष की भयानकता से जगत के कल्याण के लिए विष को पी लिया. शिवजी ने विष को अपने कंठ से नीचे नहीं उतारा, जिससे उनका कंठ नीला हो गया और वह नीलकंठ भी कहलाए.
भगवान शिव ने जिस समय विष को अपने कंठ में धारण किया, वो सावन का ही माह था. इस विष में ताप बहुत था, जिसे शांत करने के लिए तापनाशक बेलपत्र चढ़ाकर गंगा जल से शिवजी का पूजन और जलाभिषेक देवताओं ने आरंभ किया. तभी से भगवान शिवजी के लिए जलाभिषेक की परंपरा का भी आरंभ हो गया.