गोरखपुरः वैश्विक महामारी कोरोना के काल में भी गोरखपुर के नीलकंठ महादेव का मंदिर आस्था का प्रतीक बना हुआ है. सावन के दूसरे सोमवार पर भी श्रद्धालुओं ने यहां पर आकर दर्शन किया. उन्होंने पूरे विश्व को वैश्विक महामारी कोरोना से निजात दिलाने के लिए कामना भी की. ऐतिहासिक मान्यता है कि महमूद गजनवी ने जब भारत पर आक्रमण किया, तो उसने क्रूरता की हदें पार कर दी थीं.
गोरखपुर में भी एक ऐसा शिव मंदिर है, जो सदियों से उसकी क्रूरता की दास्तान बयां कर रहा है. महमूद गजनवी तो चला गया, लेकिन जब वो इस शिव मंदिर में बने शिवलिंग को तोड़ नहीं पाया तो उस पर कलमा खुदवा दिया. उसने जिस मंशा से शिवलिंग पर कलमा खुदवाया था वो पूरी नहीं हुई. शिवभक्त आज भी यहां पर पूजा-पाठ के साथ जल और दुग्धाभिषेक के लिए आते हैं. सावन माह में तो इस मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाती है.
गजनवी ने तोड़ दिया था मंदिर
गोरखपुर से 30 किलोमीटर दूर खजनी कस्बे के सरया तिवारी गांव में सदियों पुराना नीलकंठ महादेव का शिव मंदिर है. मंदिर में शिवलिंग है जो हजारों साल पुराना है. मान्यता है कि यह शिवलिंग भू-गर्भ से स्वयं प्रकट हुआ था. जब महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया तो यह शिवमंदिर भी उसके क्रूर हाथों से अछूता नहीं रहा. उसने मंदिर को ध्वस्त कर दिया, लेकिन शिवलिंग टस से मस नहीं हुआ. जब गजनवी थक-हार गया, तो उसने शिवलिंग पर कमला खुदवा दिया, जिससे हिन्दू इसकी पूजा नहीं कर सकें. महमूद गजनवी जब भारत पर आक्रमण किया तो इस शिवलिंग को तोड़ने की कोशिश की, लेकिन वह कामयाब नहीं हो सका.
मंदिर पर छत नहीं लग पाती
स्थानीय निवासी और पेशे से अधिवक्ता धरणीधर राम त्रिपाठी बताते हैं कि श्रद्धालु इस मंदिर में आते हैं और शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के साथ दूध और चंदन आदि का लेप भी लगाते हैं. इस मंदिर पर छत नहीं लग पाती है. कई बार इस पर छत लगाने की कोशिश की गई, लेकिन वो गिर गई. सावन मास में इस मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है. यहां पर दूर-दूर से लोग दर्शन करने आत हैं और अपनी मनोकामना पूर्ति की मन्नतें भी मांगते हैं.
अष्टकोणीय ये इकलौता स्वयंभू शिवलिंग
उन्होंने बताया कि इसके पास में ही एक तालाब भी है. खुदाई में यहां पर लगभग 10-10 फीट के नर कंकाल मिल चुके हैं, जो उस काल और आक्रांताओं की क्रूरता को दर्शाते हैं. देश में बगैर योनि का अष्टकोणीय ये इकलौता स्वयंभू शिवलिंग है. भगवान शिव को महादेव के नाम से भी पुकारा जाता है. यही वजह है कि सरया तिवारी गांव के इस शिवलिंग को नीलकंठ महादेव के नाम से जाना जाता है. यहां के लोगों का मानना है कि इतना विशाल शिवलिंग पूरे भारत में सिर्फ यहीं पर है.
शिव के इस दरबार में जो भी भक्त आकर श्रद्धा से बाबा से कामना करता है, उसे भगवान शिव जरूर पूरी करते हैं. इस शिवलिंग पर अरबी जुबान में 'लाइलाहइलाल्लाह मोहम्मद उररसूलउल्लाह' लिखा है. जब महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया और पूरे देश के मंदिरों को लूटता और तबाह करता इस गांव में आया तो उसने और उसकी सेना ने इस प्राकृतिक शिवलिंग के बारे में सुनकर इस तरफ कूच की. उसने महादेव के इस मंदिर को ध्वस्त कर दिया.
शिवलिंग को उखाड़ने की कोशिश की,
इसके बाद शिवलिंग को उखाड़ने की कोशिश की, जिससे इसके नीचे छिपे खजाने को निकाल सकें. उन्होंने जितनी गहराई तक उसे खोदा, लेकिन शिवलिंग उतना ही बढ़ता गया. कहते हैं कि इस दौरान शिवलिंग को नष्ट करने के लिए कई वार भी किए गए. हर वार पर रक्त की धारा निकल पड़ती थी. इसके बाद गजनवी के साथ आये मुस्लिम धर्मगुरुओं ने ही महमूद गजनवी को सलाह दी कि वह इस शिवलिंग का कुछ नहीं कर पायेगा और इसमें ईश्वर की शक्तियां विराजमान हैं.
नीलकंठ महादेव का यह मंदिर सदियों से हिन्दूओं के धार्मिक महत्व का केन्द्र है. यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की इस मंदिर में विशेष आस्था है. कोरोना काल में भी श्रद्धालु यहां पर दर्शन करने के लिए आ रहे हैं ताकि दुनिया को कोरोना काल से मुक्ति मिल सके. नीलकंठ महादेव का ये मंदिर सदियों से अपने भीतर मुस्लिम आक्रमणकारियों के क्रूर इतिहास को समेटे आज भी शान से हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र बना हुआ है.