गोरखपुर: आधुनिकता के इस युग में युवा अपनी लोक परंपराओं और सभ्यताओं को छोड़कर पाश्चात्य शैली की चकाचौंध में अपने आप को सराबोर करने में जुटे हुए हैं. ऐसे में कुछ युवा समाज के सामने नजीर पेश करते हुए अपनी लोक गीत और लोक परंपराओं के प्रति सजग प्रहरी के रूप में भोजपुरी के फूहड़पन और दो अर्थी गीतों के विरोध में समाज को एक नया आइना दिखा रहे हैं. वहीं उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी और भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ इंडिया 'भाई' इस पहल के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहा है.
उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी और भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ इंडिया यानि 'भाई' के संयुक्त तत्वावधान में विजय चौक स्थित स्थानीय स्कूल में नई पीढ़ी को पारंपरिक लोक गायन से जोड़ने के उद्देश्य से एक कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है. संगीत नाटक अकादमी के सदस्य और भोजपुरी के प्रख्यात गायक प्रशिक्षक राकेश श्रीवास्तव के नेतृत्व में दर्जनों युवाओं को अपनी लोक परंपरागत गीतों से जोड़ने के लिए युवाओं को प्रेरित किया जा रहा है. ऐसे में युवा भी बढ़-चढ़कर इस कार्यशाला में हिस्सा ले रहे हैं.
लोक परंपराओं को आगे बढ़ाने में जुटे युवा
इस विशिष्ट उपक्रम में 30 नवोदित कलाकारों ने फाग से संबंधित चौताल, उलारा, चैता, चहका आदि गीतों की बारीकियों से इन युवा कलाकारों को इस कार्यशाला के माध्यम से रूबरू कराया जा रहा है. वहीं, सरकार की भी यही मंशा है कि युवा अपनी लोक परंपरा को आगे बढ़ाने में परस्पर सहयोग प्रदान करें.
इस संबंध में उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के सदस्य व प्रशिक्षक राकेश श्रीवास्तव ने बताया कि जो युवा गायन के क्षेत्र में हैं, मुझे लगता है कि वह भटक गए हैं. भोजपुरी के अंधे दौड़ में वह अश्लीलता और दो अर्थी गंदी संगीत भोजपुरी सीख और परोस रहे हैं. युवाओं को अपनी लोक परंपरा से जोड़ने के लिए सदस्य होने के नाते मैंने संगीत नाटक अकादमी से अनुरोध किया कि इन बच्चों को लोक परंपरा से जोड़ने के लिए इस तरह का कार्यक्रम बनाया जाना चाहिए. उसी के तहत इस कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें महानगर के तमाम बच्चे प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं.
वेस्टर्न संगीत ने ले लिया है लोक गायन का रूप
उन्होंने कहा कि कार्यशाला में जो हमारी लोक परंपरा है फगुआ. इसकी परंपरा बहुत ही समृद्ध है. इसमें हम लोग चौताल गाते हैं, चैती गाते हैं. अब वह सब समाप्त हो चुका है. उसका रूप आजकल वेस्टर्न ने ले लिया है. जितना भी फूहड़पन का संगीत है वहहोली गीतों मेंसुनने को मिल सकता है. उसके विरोध में इन सब बच्चों के साथ समाज को बदलने के उद्देश्य से इस कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है.
युवाओं ने की सराहना
अंकिता पंडित, राधा, सुषमा और विनोद ने बताया कि भोजपुरी लोक गीतों में जो होरी गाई जाती है उसमें बहुत सारी विधाएं हैं. चौताल है, डेट टल्ली है, लहरा है और स्पेशल होली के गीत गाए जाते हैं. यह सभी विधाएं इस कार्यशाला में सिखाई जा रही हैं. इस कार्यशाला में हम लोगों को जो भी सिखाया जा रहा है, आज के आधुनिक समाज से बिल्कुल अलग है. ऐसा लग रहा है कि जो हम लोगों कीगीत-संगीतकीपरंपरा है, उसे जोड़ने की यह एक अनोखी मुहिम है.