गोरखपुर: पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर स्थापित गोरखपुर विश्वविद्यालय पिछले दो माह से विवादों के केंद्र में है. जिसकी वजह से परिसर में पठन-पाठन की गतिविधियां प्रभावित हुई हैं. प्रोफेसर से लेकर छात्र और शैक्षणिक कर्मचारी आंदोलन की राह अख्तियार किए हुए हैं. वजह यह है कि विश्वविद्यालय के कुलपति भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे हैं. इसके साथ ही वो अपनी तानाशाही रवैए से विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, विभागाध्यक्ष और विभिन्न कमेटियों के अध्यक्षों के अधिकारों पर अतिक्रमण करते रहते हैं. यही वजह है कि विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने विश्वविद्यालय स्थापना के इतिहास में पहली बार अपने कुलपति के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया है.
इन शिक्षकों की संख्या करीब 165 है. इसी के साथ यहां पढ़ने वाले छात्रों ने भी कुलपति के रवैए को तानाशाह बताया. साथ ही उन पर चल रही जांच को देखते हुए शिक्षक और छात्र सभी ने राज्यपाल से उन्हें पद से हटाने और उनके अधिकार को सील करने की मांग की है. सभी ने एक स्वर में कहा कि वो राजभवन के आदेश का पालन सही तरीके से नहीं करते हैं. जिसमें आरोपी कुलपति ही अपने खिलाफ कमेटी बनाकर जांच करें. यह पूरी तरह से नियम विरुद्ध और न्याय संगत नहीं है.
गोरखपुर विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर विनोद सिंह, प्रोफेसर उमेश नाथ त्रिपाठी और रसायन शास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुधा यादव, प्राचीन इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर दिग्विजय नाथ मौर्य की अगुवाई में एक बड़ी बैठक विश्वविद्यालय परिसर में हुई. जिसमें सभी ने कुलपति के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित करते हुए राज्यपाल से उनको पद से हटाने और अधिकारों सील करने की मांग किया है.ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए इन दोनों प्रोफेसरों ने कहा कि आरोपों में घिरे कुलपति अपने खिलाफ हो रही जांच की मांग से घबराए हुए हैं. वो तरह- तरह से विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों को प्रताड़ित करने में जुटे हुए हैं. व्हाट्सएप मैसेज के जरिए अचानक मीटिंग बुलाते हैं. शिक्षक इस दौरान छात्रों को पढ़ा रहा होता है. अगर वो व्हाट्सएप मैसेज के जरिए मीटिंग में नहीं पहुंचता है तो कुलपति उसे शो कॉज नोटिस देते हैं.
यहां तक कि उसका वेतन भी बिना किसी स्पष्टीकरण के काटने का आदेश दे देते हैं. कोरोना काल में हुई एक शिक्षक की मौत के मामले में निवेदन के बाद भी मृत प्रोफेसर की पत्नी को एक लाख की अहेतुक सहायता राशि जारी करने में आनाकानी करते दिखे. यही नहीं विश्वविद्यालय में गठित विभिन्न कमेटियों के अध्यक्ष अपने अनुकूल कार्य नहीं कर पाते हैं. उसमें हस्तक्षेप कुलपति का बना रहता है.विश्वविद्यालय के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब वर्षों पुरानी उसकी 58 करोड़ से ज्यादा की एफडी इनके कार्यकाल में तोड़ी गई है. जो किसी भी संकट के दौरान विश्वविद्यालय की गतिविधियों को आगे बढ़ाए जाने के लिए सुरक्षित की गई थी. वहीं, प्रोफेसर उमेश नाथ त्रिपाठी ने कहा कि कुलपति को विश्वविद्यालय के शिक्षकों के खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है.
विश्वविद्यालय कार्य परिषद शिक्षकों का नियोक्ता होता है. वहीं, उसके खिलाफ दंडात्मक या अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का निर्णय ले सकता है, न कि कुलपति. यह अलग बात है कि कुलपति विश्वविद्यालय को कारपोरेट बनाकर चलाना चाहते हैं और जो उसमें शामिल नहीं है. उसके खिलाफ वो तरह-तरह के उत्पीड़न की कार्रवाई कर रहे हैं. प्रोफेसर विनोद सिंह ने कहा कि कुलपति के मनमानी के खिलाफ हिंदी विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर कमलेश गुप्ता ने धरना तक शुरू किया. जिसकी आवाज यहां से राजभवन तक पहुंची तो कुलपति ने हड़बड़ी में उन्हें सस्पेंड कर दिया. जिसकी जद में विश्वविद्यालय के आधा दर्जन से ज्यादा प्रोफेसरों को भी कुलपति ने लिया और उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए बिना नोटिस रिसीव हुए ही वेतन की कटौती कर दिया.
उन्होंने कहा कि पूरी तरह से तानाशाही रवैए पर उतारू कुलपति को विश्वविद्यालय के शिक्षक अब बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है. वह अब राजभवन से उचित कार्रवाई की उम्मीद करते हैं. जिसका निवेदन उन्होंने राज्यपाल से किया है. वहीं, विश्वविद्यालय के छात्रों ने कहा कि ऐसा पहली बार हुआ है कि जब विश्वविद्यालय में पठन-पाठन का माहौल चौपट हुआ है. उनके शिक्षक आंदोलन कर रहे हैं और कक्षाएं बाधित हैं. जिसके लिए जिम्मेदार पूरी तरह से कुलपति ही हैं.
वहीं, दूसरी तरफ विश्वविद्यालय में शोध करने वाले छात्र भी आंदोलन कर रहे हैं तो पिछले 5 महीने से अपने मानदेय के भुगतान को लेकर जूझ रहे दैनिक वेतन भोगी कर्मियों को भी मानदेय नहीं मिला है. एक तरफ वर्ष 2022 में नई शिक्षा नीति लागू होनी है और दूसरी तरफ शिक्षा का यह सबसे बड़ा केंद्र विवादों में घिरा है. जिसके मूल में इस संस्था का मुखिया ही शामिल है.
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