ETV Bharat / state

प्रोफेसर रिजवी की किताब ने मचाई हलचल, कई अनछुए पहलू हुए उजागर

author img

By

Published : Mar 23, 2021, 10:17 AM IST

Updated : Mar 23, 2021, 10:47 AM IST

पूर्वांचल के ख्यातिलब्ध इतिहासकार सैयद नजमुल रजा रिजवी ने अपनी '1857 का विद्रोही जगत और पूर्वी उत्तर प्रदेश नाम' की किताब पर चर्चा करते हुए कहा कि 1857 में हुआ विद्रोह का असल स्वरूप क्या है इसको जानने के लिए इस किताब की रचना की है. सैयद रिजवी स्वतंत्र भारत के इतिहास को जानने के इच्छुक लोगों के बीच अपनी किताब के संदर्भ की चर्चा कर रहे थे.

प्रोफेसर रिजवी की किताब
प्रोफेसर रिजवी की किताब

गोरखपुर: दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर और पूर्वांचल के ख्यातिलब्ध इतिहासकार सैयद नजमुल रजा रिजवी ने कहा है कि 1857 के विद्रोह में पूर्वी उत्तर प्रदेश का इतिहास जानने और पढ़ने के बाद यहां के लोगों को काफी साहस मिलेगा. इसके लिए इतिहास के संकलन की सही किताबों का अध्ययन करना होगा. उन्होंने कहा कि अंग्रेजो के खिलाफ 1857 में हुए विद्रोह को कोई जन आंदोलन कहता है, कोई विद्रोह कहता है, कोई सैनिकों का आंदोलन कहता है, लेकिन जब उसके तथ्यों से आप अवगत होंगे तो इसके सही स्वरूप की पहचान होगी.

प्रोफेसर रिजवी की किताब
प्रोफेसर रिजवी की किताब



पैना गांव से शुरू हुआ विद्रोह

चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि उनकी पुस्तक इस बात की व्याख्या करती है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश की जनता ने जाति-धर्म और संगठित क्षेत्र की भावनाओं से ऊपर उठकर इस भूभाग से कंपनी राज को समाप्त करने के लिए 1857 में गंभीर प्रयास किया था. 1857 के विद्रोह में हिंदू, मुस्लिम समाज के सभी वर्गों और जातियों के लोग सम्मिलित थे. पूर्वी उत्तर प्रदेश में गोरखपुर जनपद के पैना गांव में 31 मई 1857 को प्रारंभ हुआ जन विद्रोह जनवरी 1859 तक चलता रहा. जबकि इसके बहुत पहले दिल्ली और लखनऊ का प्रतिरोध समाप्त हो चुका था. इस प्रकार इस भूभाग का जन विद्रोह छापामार नीति को अपनाकर विद्रोहियों द्वारा लगभग डेढ़ वर्ष तक चलाया गया. इसमें 4 महीना 20 दिन का स्वतंत्र शासन भी सम्मिलित रहा.

प्रोफेसर रिजवी की किताब
प्रोफेसर रिजवी की किताब

प्रोफेसर रिजवी लिखते हैं कि, पूर्व उत्तर प्रदेश का महान विद्रोह सबसे लंबी अवधि तक चला. इस संघर्ष में सर्वाधिक जनधन की हानि को सहन करना पड़ा. गाजीपुर के गहमर गांव के विद्रोही नायक मेंगर सिंह ने आत्मसमर्पण करते हुए इकबालिया बयान में कहा था कि सिर्फ गोरखपुर क्षेत्र में ही लगभग 70 हजार विद्रोही मारे गए थे.


क्रांति महाविद्रोह नहीं जनक्रांति थी

प्रोफेसर रिजवी लिखते हैं कि 1857 में दिल्ली, अवध विद्रोह के बारे में काफी लिखा गया. यहां तक कि बुंदेलखंड, रूहेलखंड के इतिहास के बारे में भी काफी काम हुआ. लेकिन पूर्वी उत्तर प्रदेश में कम काम हुआ. इस क्षेत्र का निवासी होने के कारण वह इसके प्रति प्रेरित हुए और आज इस कार्य को पूरा करने में सफल हुए.

प्रोफेसर रिजवी की किताब बताती है कि 1857 का विद्रोह जनता का आंदोलन था. किताब में विद्रोह के कारणों की पड़ताल हुई है. जिसमें यह तथ्य प्रमुख रूप से सामने आता है कि कंपनी राज्य के 50 वर्षों में इस इलाके में भू-राजस्व दो से ढाई गुना बढ़ा दिया गया था. जिससे लोगों में रोष था. किताब इस बात का उल्लेख करती है कि 1857 के विद्रोह की 150वीं वर्षगांठ तक इतिहासकार इस बात से सहमत हो गए हैं कि यह एक महा विद्रोह था.

गोरखपुर: दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर और पूर्वांचल के ख्यातिलब्ध इतिहासकार सैयद नजमुल रजा रिजवी ने कहा है कि 1857 के विद्रोह में पूर्वी उत्तर प्रदेश का इतिहास जानने और पढ़ने के बाद यहां के लोगों को काफी साहस मिलेगा. इसके लिए इतिहास के संकलन की सही किताबों का अध्ययन करना होगा. उन्होंने कहा कि अंग्रेजो के खिलाफ 1857 में हुए विद्रोह को कोई जन आंदोलन कहता है, कोई विद्रोह कहता है, कोई सैनिकों का आंदोलन कहता है, लेकिन जब उसके तथ्यों से आप अवगत होंगे तो इसके सही स्वरूप की पहचान होगी.

प्रोफेसर रिजवी की किताब
प्रोफेसर रिजवी की किताब



पैना गांव से शुरू हुआ विद्रोह

चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि उनकी पुस्तक इस बात की व्याख्या करती है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश की जनता ने जाति-धर्म और संगठित क्षेत्र की भावनाओं से ऊपर उठकर इस भूभाग से कंपनी राज को समाप्त करने के लिए 1857 में गंभीर प्रयास किया था. 1857 के विद्रोह में हिंदू, मुस्लिम समाज के सभी वर्गों और जातियों के लोग सम्मिलित थे. पूर्वी उत्तर प्रदेश में गोरखपुर जनपद के पैना गांव में 31 मई 1857 को प्रारंभ हुआ जन विद्रोह जनवरी 1859 तक चलता रहा. जबकि इसके बहुत पहले दिल्ली और लखनऊ का प्रतिरोध समाप्त हो चुका था. इस प्रकार इस भूभाग का जन विद्रोह छापामार नीति को अपनाकर विद्रोहियों द्वारा लगभग डेढ़ वर्ष तक चलाया गया. इसमें 4 महीना 20 दिन का स्वतंत्र शासन भी सम्मिलित रहा.

प्रोफेसर रिजवी की किताब
प्रोफेसर रिजवी की किताब

प्रोफेसर रिजवी लिखते हैं कि, पूर्व उत्तर प्रदेश का महान विद्रोह सबसे लंबी अवधि तक चला. इस संघर्ष में सर्वाधिक जनधन की हानि को सहन करना पड़ा. गाजीपुर के गहमर गांव के विद्रोही नायक मेंगर सिंह ने आत्मसमर्पण करते हुए इकबालिया बयान में कहा था कि सिर्फ गोरखपुर क्षेत्र में ही लगभग 70 हजार विद्रोही मारे गए थे.


क्रांति महाविद्रोह नहीं जनक्रांति थी

प्रोफेसर रिजवी लिखते हैं कि 1857 में दिल्ली, अवध विद्रोह के बारे में काफी लिखा गया. यहां तक कि बुंदेलखंड, रूहेलखंड के इतिहास के बारे में भी काफी काम हुआ. लेकिन पूर्वी उत्तर प्रदेश में कम काम हुआ. इस क्षेत्र का निवासी होने के कारण वह इसके प्रति प्रेरित हुए और आज इस कार्य को पूरा करने में सफल हुए.

प्रोफेसर रिजवी की किताब बताती है कि 1857 का विद्रोह जनता का आंदोलन था. किताब में विद्रोह के कारणों की पड़ताल हुई है. जिसमें यह तथ्य प्रमुख रूप से सामने आता है कि कंपनी राज्य के 50 वर्षों में इस इलाके में भू-राजस्व दो से ढाई गुना बढ़ा दिया गया था. जिससे लोगों में रोष था. किताब इस बात का उल्लेख करती है कि 1857 के विद्रोह की 150वीं वर्षगांठ तक इतिहासकार इस बात से सहमत हो गए हैं कि यह एक महा विद्रोह था.

Last Updated : Mar 23, 2021, 10:47 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.