गोरखपुर : हर खास दिवस पर खास लोगों और शोधों की चर्चा होती है. वैसे ही ईटीवी भारत इस दिवस पर अपने पाठकों को, साइकिल के शौकीन एक ऐसे परिवार की कहानी से रूबरू कराने जा रहा है, जो अंग्रेजों के जमाने की साइकिल को पिछले 95 वर्षों से तीन पीढ़ियों ने संभालकर रखा है. आज भी यह साइकिल चलती है. इसका रंग कुछ फीका हुआ है, लेकिन मजबूती से लेकर कई मामलों आज भी यह अन्य साइकिलों को मात दे सकती है. इसकी जो सबसे खास बात है, वह यह कि उल्टा पैडल मारने पर यह रूक जाती है. जबकि आज के दौर की साइकिल में भी ऐसा नहीं मिलेगा.
- ब्रिटिश काल की साइकिल आज भी है लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र
- वर्ष 1926 की बनी है साइकिल, 95 साल बाद भी कायम है साइकिल का रंग
- अब परिवार की तीसरी पीढ़ी संभाल रहा अपनी इस शान की सवारी को
- 500 में खरीदी थी साइकिल, चार आने में बनवाया था लाइसेंस
दामाद को सास से उपहार में मिली थी यह साइकिल
यह साइकिल शहर के बशारतपुर मोहल्ले में रहने वाले यशवंत के पास है. जिसे वह बेहद ही संभालकर रखे हुए हैं. यह साइकिल उनके पिता मोजेस मैसी को उनकी सास ने उपहार में दिया था. बहुत से लोग आज भी इस साइकिल को देखने आते हैं और उसके साथ तस्वीरें भी खिंचवाते हैं. यशवंत ने बताया कि पापा की सास यानी उनकी नानी ने खुद उस साइकिल को 1926 में खरीदा था. बीस साल खुद चलने के बाद नानी ने शादी में वो साइकिल पापा को गिफ्ट कर दिया था. यशवंत ने बताया कि उनके पिता मोजेस ने शादी के बाद इस साइकिल को खुद से मॉडीफाई भी कर दिया. उसमें उन्होंने एक टूल बॉक्स बनाया और हैंडल पर एक छोटी सी लाइट भी लगाई. वह इसे जान से बढ़कर ध्यान देते थे. प्रतिदिन इसको चमकाकर रखते थे. यही वजह थी कि वह इस साइकिल को किसी को छूने नहीं देते थे. उनके मम्मी-पापा सिलाई का काम करते थे. दुकान आने-जाने के लिए वह इसी साइकिल का सहारा लेते थे. यशवंत ने बताया कि उनके पापा 100 साल की उम्र में भी अपनी इस साइकिल का ध्यान रखते थे. जिनकी अभी अप्रैल 2021 में निधन हो गया. जिसके बाद साइकिल का रख रखाव अब वह कर रहे हैं.
साइकिल पर लिखा है निर्माता कंपनी का नाम
इस साइकिल को जिस कंपनी ने बनाया था उसका नाम 'क्रेससेंट' है. जिसकी मुहर आज भी साइकिल पर लगी है. यह काफी मजबूत बनाई गई है. तभी तो इसका कैरियर आज भी अपना वजूद बरकरार रखे हुए है. इसपर लोग और सामान का बोझ ढोया गया. इसका फुलचेनकवर भी स्टाइलिस्ट दिखता है. 95 साल पहले जब यह साइकिल खरीदी गई तब इसका कलर लाल था, जो आज भी बरकरार है. यह अपने आप में एक अद्भुत मिसाल और प्रेम की निशानी है, जो आज की पीढ़ी भी संजोए हुए है. नहीं तो आजादी के बाद की बात कौन कहे, साल-दो साल में आज के दौर की साइकिल कबाड़ में जाने लायक हो जा रही हैं. क्वालिटी और कमिटमेंट का यह नजारा है जो 95 साल बाद भी कायम है.