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गुरिल्ला युद्ध में माहिर शहीद बंधू सिंह का शहादत दिवस आज, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में थे एक

गुरिल्ला युद्ध में माहिर शहीद बंधू सिंह का आज शहादत दिवस है. शहीद बंधू सिंह को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में से एक माना जाता है.

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शहीद बंधू सिंह का शहादत दिवस
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Published : Aug 12, 2022, 2:05 PM IST

गोरखपुर: देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. इस आजादी के लिए मां भारती के न जाने कितने लाल हंसते-हंसते अंग्रेजी हुकूमत की फांसी के फंदे को चूम लिया था. ऐसे ही एक महान क्रांतिकारी का आज शहादत दिवस है. इन्हें पूर्वांचल समेत पूरा देश शहीद बंधू सिंह के नाम से जानता है.

शहीद बंधू सिंह को 12 अगस्त सन 1858 को गोरखपुर शहर के अलीनगर चौक पर बरगद के पेड़ पर फांसी दी गयी थी. लेकिन इतिहास और रिकॉर्ड में बंधू सिंह के बारे लिखा गया है कि, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में मेरठ से मंगल पांडेय के क्रांतिकारी तेवर के बाद जो आग पूरे देश में आजादी को लेकर भड़की थी. उसे पूरे पूर्वांचल में शहीद बंधू सिंह ने नेतृत्व दिया था, और अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये थे.

शहीद बंधू सिंह के वंशज अजय सिंह टप्पू ने दी जानकारी
शहीद बंधू सिंह का जन्म 1 मई 1836 को हुआ था. चौरी चौरा क्षेत्र के डुमरी रियासत घराने के बाबू बंधू सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ उग्र आंदोलन छेड़ दिया था. गोरखपुर के तत्कालीन अंग्रेज कलेक्टर को मारकर वे सत्ता पर छह माह के लिए काबिज हो गए. बंधू सिंह के वंशज अजय सिंह टप्पू कहते हैं कि, इस दौरान बिहार से आ रहा अंग्रेजों के खजाने को भी उन्होंने लूटकर अपनों में बटवा दिया था. अंग्रेज इससे बुरी तरह घबरा गए थे. तब उन्होंने नेपाल के राजा से मदद मांगी थी. इसमें नेपाल के राजा का सेनापति भी मारा गया था. इसके बाद अंग्रेजों ने बंधू सिंह को पकड़ने का अभियान छेड़ा तो वह चौरी चौरा के शत्रुघनपुर क्षेत्र में घने जंगलों में छिपकर अपना आंदोलन चलाते रहे. इस दौरान वह गुरिल्ला युद्ध के माध्यम से इधर से गुजरने वाले अंग्रेज सिपाहियों का सिर कलम कर देते थे. वह बताते हैं कि, जंगल में रहने के दौरान वह देवी दुर्गा मां की पिन्डी रूप में स्थापना करके उनकी पूजा करते थे और अंग्रेजों की बलि दे देते थे. आज वहीं, स्थान तरकुलहा देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है.

इसे भी पढ़े-बघेल भवन है कुछ खास, यहां से तैयार हुए थे क्रांतिकारी

इन घटनाओं से भयभीत अंग्रेजों ने शहीद बंधू सिंह को पकड़ने के लिये मुख्बीरों का जाल बिछाया. लंबे समय के बाद उन्हे धोखे से पकड़ने में अंग्रेजों को सफलता मिली. कहते हैं कि, अंग्रेजों ने शहर के अलीनगर चौक पर खुलेआम बरगद के पेड़ पर शहीद बंधू सिंह को फांसी पर लटकाया लेकिन फंदा टूट गया था. ऐसा लगभग सात बार हुआ. अंत में स्वयं बंधू सिंह ने मां भगवती से अपने चरणों में बुलाने का अनुरोध किया. तब जाकर वह हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए. इस दौरान जंगल के जिस स्थान पर बंधू सिंह मां का पिन्डी रूप में पूजा करते थे वहां स्थित तरकुल का पेंड़ भी धड़ से टूट गया था और पेड़ से रक्त बहने लगा. आज भी भगवती मां को लोग तरकुलहा माता के नाम से पूजते चले आ रहे हैं. बंधू सिंह की शहर में दो जगह प्रतिमा और चौक भी स्थित है. भारत सरकार ने इनपर डाक टिकट भी जारी किया है.

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गोरखपुर: देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. इस आजादी के लिए मां भारती के न जाने कितने लाल हंसते-हंसते अंग्रेजी हुकूमत की फांसी के फंदे को चूम लिया था. ऐसे ही एक महान क्रांतिकारी का आज शहादत दिवस है. इन्हें पूर्वांचल समेत पूरा देश शहीद बंधू सिंह के नाम से जानता है.

शहीद बंधू सिंह को 12 अगस्त सन 1858 को गोरखपुर शहर के अलीनगर चौक पर बरगद के पेड़ पर फांसी दी गयी थी. लेकिन इतिहास और रिकॉर्ड में बंधू सिंह के बारे लिखा गया है कि, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में मेरठ से मंगल पांडेय के क्रांतिकारी तेवर के बाद जो आग पूरे देश में आजादी को लेकर भड़की थी. उसे पूरे पूर्वांचल में शहीद बंधू सिंह ने नेतृत्व दिया था, और अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये थे.

शहीद बंधू सिंह के वंशज अजय सिंह टप्पू ने दी जानकारी
शहीद बंधू सिंह का जन्म 1 मई 1836 को हुआ था. चौरी चौरा क्षेत्र के डुमरी रियासत घराने के बाबू बंधू सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ उग्र आंदोलन छेड़ दिया था. गोरखपुर के तत्कालीन अंग्रेज कलेक्टर को मारकर वे सत्ता पर छह माह के लिए काबिज हो गए. बंधू सिंह के वंशज अजय सिंह टप्पू कहते हैं कि, इस दौरान बिहार से आ रहा अंग्रेजों के खजाने को भी उन्होंने लूटकर अपनों में बटवा दिया था. अंग्रेज इससे बुरी तरह घबरा गए थे. तब उन्होंने नेपाल के राजा से मदद मांगी थी. इसमें नेपाल के राजा का सेनापति भी मारा गया था. इसके बाद अंग्रेजों ने बंधू सिंह को पकड़ने का अभियान छेड़ा तो वह चौरी चौरा के शत्रुघनपुर क्षेत्र में घने जंगलों में छिपकर अपना आंदोलन चलाते रहे. इस दौरान वह गुरिल्ला युद्ध के माध्यम से इधर से गुजरने वाले अंग्रेज सिपाहियों का सिर कलम कर देते थे. वह बताते हैं कि, जंगल में रहने के दौरान वह देवी दुर्गा मां की पिन्डी रूप में स्थापना करके उनकी पूजा करते थे और अंग्रेजों की बलि दे देते थे. आज वहीं, स्थान तरकुलहा देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है.

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इन घटनाओं से भयभीत अंग्रेजों ने शहीद बंधू सिंह को पकड़ने के लिये मुख्बीरों का जाल बिछाया. लंबे समय के बाद उन्हे धोखे से पकड़ने में अंग्रेजों को सफलता मिली. कहते हैं कि, अंग्रेजों ने शहर के अलीनगर चौक पर खुलेआम बरगद के पेड़ पर शहीद बंधू सिंह को फांसी पर लटकाया लेकिन फंदा टूट गया था. ऐसा लगभग सात बार हुआ. अंत में स्वयं बंधू सिंह ने मां भगवती से अपने चरणों में बुलाने का अनुरोध किया. तब जाकर वह हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए. इस दौरान जंगल के जिस स्थान पर बंधू सिंह मां का पिन्डी रूप में पूजा करते थे वहां स्थित तरकुल का पेंड़ भी धड़ से टूट गया था और पेड़ से रक्त बहने लगा. आज भी भगवती मां को लोग तरकुलहा माता के नाम से पूजते चले आ रहे हैं. बंधू सिंह की शहर में दो जगह प्रतिमा और चौक भी स्थित है. भारत सरकार ने इनपर डाक टिकट भी जारी किया है.

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