गोरखपुर : अयोध्या में भगवान राम श्रीराम मंदिर निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दौरान देश के उन लोगों की चर्चा खूब हो रही है, जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन की रूपरेखा तैयार की. राम मंदिर आंदोलन को विश्वव्यापी बनाए और घर-घर तक इसकी आवाज पहुंचाने की कोशिश की. ऐसे ही लोगों में महंत अवैद्यनाथ का नाम सबसे प्रमुखता से लिया जाता है, जो बतौर गोरक्ष पीठाधीश्वर राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन की अगुवाई करने वाले नायक थे. वर्ष 1984 में दिल्ली में हुई प्रथम धर्म संसद में उन्हें तीर्थ मुक्ति स्थान समिति का पहला अध्यक्ष भी नियुक्त किया गया था. उनकी अगुवाई में राम मंदिर का आंदोलन चला. ऐसी प्रमाणिक बातों की चर्चा कोई और नहीं बल्कि विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय महामंत्री रहे डॉ. प्रवीण भाई तोगड़िया और भारतीय इतिहास संकलन समिति के सदस्य, इतिहास के प्रोफेसर डॉ. हिमांशु चतुर्वेदी तथ्यों के साथ कर रहे हैं.
इतिहासकारों की नजर से राम मंदिर आंदोलन : इतिहास के एक अन्य प्रोफेसर और ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ पर कई पुस्तकों के लेखक डॉ. प्रदीप कुमार राव बताते हैं कि 21 जुलाई 1984 को अयोध्या के वाल्मीकि भवन में जब श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन हुआ तो महंत अवेद्यनाथ समवेत स्वर से इसके अध्यक्ष चुने गए. उनके नेतृत्व में देश में ऐसे जनआंदोलन का उदय हुआ, जिसने सामाजिक-राजनीतिक क्रांति का सूत्रपात किया. भारत सहित दुनिया के इतिहास में श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन और उसके प्रभाव एवं परिणाम का अध्याय, महंत अवेद्यनाथ का उल्लेख हुए बिना अधूरा रहेगा. आजादी के बाद हुए अबतक के सबसे बड़े आंदोलन, श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन का नेतृत्व महंत अवेद्यनाथ ने किया. श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति और उस स्थान पर भव्य मंदिर निर्माण के लिए महंत के नेतृत्व में अत्यंत योजनापूर्वक जनांदोलन की रूपरेखा बनी. 1984 से प्रारंभ किए गए आंदोलन को अब परिणाम तक पहुंचाया का सका. श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के गठन के बाद 7 अक्टूबर 1984 को अयोध्या के सरयू तट से धर्मयात्रा निकाली गई जो 14 अक्टूबर 1984 को लखनऊ पहुंची. बेगम हजरत महल पार्क में ऐतिहासिक सम्मेलन हुआ, जिसमें लाखों लोग शामिल हुए. तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी से महंत के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल ने मुलाकात की और मांग पत्र सौंपा.
हिंदू सम्मेलन में हुआ कुछ ऐसा : धर्मचार्यों के आह्वान पर 22 सितंबर 1989 को दिल्ली के बोट क्लब पर विराट हिंदू सम्मेलन का आयोजन किया गया. महंत अवेद्यनाथ की अध्यक्षता में हुए इस सम्मेलन में जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए 9 नवंबर 1989 को शिलान्यास का ऐलान कर दिया गया. बोट क्लब की इस रैली से पूर्व 20 सितंबर 1989 को भारत सरकार के तत्कालीन गृहमंत्री बूटा सिंह ने महंत से बातचीत का आग्रह किया था, लेकिन महंतजी ने रैली के बाद ही बातचीत संभव होने की बात कही. 25 सितंबर को मुलाकात हुई तो बूटा सिंह ने शिलान्यास कार्यक्रम स्थगित करने का निवेदन किया, लेकिन महंतजी निर्णय पर अडिग रहे. इसके बाद लखनऊ में बूटा सिंह, तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने महंत अवेद्यनाथ, महंत नृत्यगोपाल दास, अशोक सिंहल, दाऊदयाल खन्ना के साथ बैठक कर आग्रह किया, पर महंत जी ने दो टूक कहा कि यह राष्ट्रीय सम्मान एवं हिंदू समाज की आस्था का सवाल है और इससे समझौता नहीं किया जा सकता. इसके बाद देशभर में शिलान्यास समारोह के लिए श्रीराम शिला पूजन का अभियान प्रारंभ हो गया. महंत अवेद्यनाथ की अगुवाई में देशभर के गांव-गांव से श्रीराम शिला पूजन कर अयोध्या के लिए चल पड़ी. खुद महंत जी कई कार्यक्रमों में शामिल हुए. शिलान्यास समारोह की तैयारियों से घबराई सरकार ने एक बार फिर महंत जी को 8 नवंबर को गोरखपुर विशेष विमान भेजकर बातचीत के लिए लखनऊ आमंत्रित किया. वार्ता के बाद महंत जी को अयोध्या पहुंचाया गया. उनके अयोध्या पहुंचने पर शिलान्यास का कार्य तेजी से अंजाम की ओर आगे बढ़ा. शुभ मुहूर्त में गर्भगृह के बाहर निर्धारित स्थान पर भूमि पूजन और हवन के बाद महंत जी ने सांकेतिक रूप से नींव खोदकर अछूत माने जाने वाले बिहार के दलित कामेश्वर प्रसाद चौपाल से पहली शिला रखवाकर एक नए भविष्य की शुरुआत की.
राम मंदिर निर्माण में गोरक्षपीठ के महंतों का परिणामजन्य संघर्ष : गोरक्षपीठ के ब्रह्मलीन पीठाधीश्वरद्वय महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ का श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति और मंदिर निर्माण के लिए किया गया परिणामजन्य संघर्ष, वर्तमान पीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की देखरेख में मूर्तमान ले रहा है. यह दैवीय योग है कि श्रीराम मंदिर को लेकर शीर्ष न्यायालय का निर्णय आने के वक्त, वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और इसके बाद मंदिर के शिलान्यास से लेकर 22 जनवरी को श्रीराम के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का खाका भी, उन्हीं के नेतृत्व में खींचा गया है. अपने गुरुदेव महंत अवेद्यनाथ के सानिध्य में आने के बाद से ही श्रीराम मंदिर के लिए मुखर रहे योगी आदित्यानाथ मुख्यमंत्री बनने के बाद अयोध्या को श्रीरामयुगीन वैभव देने के लिए प्राणपण से कार्य कर रहे हैं.
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