गोरखपुर: हिंदी माह वैशाख शुक्ल चतुर्दशी के दिन भगवान नरसिंह का अवतरण हुआ था. आज 6 मई को इसी तिथि का अवसर है, जिसकी अपनी ही महत्ता है. नरसिंह भगवान विष्णु के दशावतार माने जाते हैं. देश के अनेक हिस्सों में इनके मन्दिर हैं. मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले में इनका विशाल मन्दिर इतिहास का धरोहर है, जो विधर्मियों के आक्रमण से सुरक्षित है. यह नर्मदा नदी से कुछ ही किलोमीटर दूर है. सात्विक साधना के साधक अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए इनकी साधना करते हैं. आर्थिक विपन्नता के उन्मूलन के लिए 'लक्ष्मीनरसिंह मन्त्र का जप और भगवान नरसिंह की अर्चन अत्यन्त प्रभावशाली माना जाता है.
कैसे करें इनकी पूजा
गोरखपुर के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य शरद चंद मिश्र के अनुसार प्रातःकाल में लकड़ी की एक चौकी (काष्ठासन) पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवान नरसिंह की प्रतिमा या मूर्ति को स्थापित करें. पूजन की समस्त सामग्री एक पात्र में लेकर पहले संकल्प करें. उसके बाद धूप-दीप और नैवेद्य इत्यादि अर्पण करें. इस दिन विष्णुसहस्त्र का पाठ करना अत्यन्त श्रेयस्कर माना जाता है.
इन मंत्रों का करें जाप
ज्योतिषाचार्य शरद चंद मिश्र ने बताया कि पूजन और पाठ के दौरन 'ऊॅ श्रीं ह्रीं श्रीं जय लक्ष्मीप्रियाय नित्यप्रमुदित चेतसे लक्ष्मी श्रितार्ध देहाय श्रीं ह्रीं श्रीं नमः' मंत्र का जप करें. इस मन्त्र को यथा संख्या जप अवश्य करें. यदि यह सम्भव न हो तो लघु मन्त्र- 'ऊॅ लक्ष्मीनृसिंहाय नमः' का ही जप करें. शास्त्रीय मान्यता के अनुसार खीर से या केवल घृत से ही इन मन्त्रों से हवन का भी विधान है. भगवाव नरसिंह की कृपा से भगवती लक्ष्मी का आगमन होता है. घर में वर्ष पर्यन्त सुख-सम्पदा की अभिवृद्धि भी होती है.
पुराणों के अनुसार
पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी से वर प्राप्त कर हिरणकश्यप नामक दैत्य अत्यन्त अहंकारी, आततायी, सनातन धर्म विरोधी और भगवान विष्णु का शत्रु बन गया. दूसरी ओर हिरणकश्यप का छोटा पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त और सनातन धर्म का अनुयायी था. हिरणकश्यप से प्रह्लाद की भगवान विष्णु के प्रति भक्ति देखी नहीं गयी. उसने पहले समझाने का प्रयत्न किया, फिर उसे डराने का प्रयत्न किया, लेकिन प्रह्लाद की आस्था अडिग रही.
भगवान विष्णु नरसिंह स्वरूप में हुए अवतरित
उसने अपने सबसे प्रिय पुत्र को मारने का प्रयत्न किया. इसके लिए अनेक उपाय किया, लेकिन उसके सभी प्रयास असफल हुए. यह देखकर वह अत्यंत क्रुद्ध हुआ और भगवान विष्णु से ही युद्ध करने के लिए तैयार हो गया. उसे खम्भे में बांधकर पूछने लगा कि तुम अब मृत्युपाश में हो, तुम्हारा भगवान कहां है. प्रह्लाद ने कहा भगवान तो सर्वत्र हैं. वे यहां भी उपस्थित हैं. इस खम्भे में भी हैं. खम्भे पर जैसे ही प्रहार हुआ भगवान विष्णु नरसिंह स्वरूप में अवतरित होकर हिरणकश्यप का विनाश कर दिए. इस माहात्म्य को श्रवण करने का भी बड़ा महत्व है. इसके श्रवण करने या वाचन करने से भी व्रत का अर्ध फल प्राप्त होता है.
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