गोरखपुर: अधिवक्ताओं के लिए कानून की किताबों सहित तमाम अन्य तरह की पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने के लिए अंग्रेजी शासनकाल में कलेक्ट्रेट परिसर में लाइब्रेरी की स्थापना की गई थी, जो मौजूदा समय में पूरी तरह से दम तोड़ती नजर आ रही है. ऐसी दशा में सिर्फ गोरखपुर ही नहीं, प्रदेश के जिस भी कलेक्ट्रेट में लाइब्रेरी संचालित हो रही है, उसे न तो सरकार से कोई बजट मिल रहा है और न ही बार काउंसिल पहले की तरह इन्हें कोई बजट जारी कर रहा है. लिहाजा अपने स्थानीय संसाधनों के बल पर अपने वजूद को बचाए रखने के लिए यह लाइब्रेरी संघर्षरत है.
साल 1961 में लाइब्रेरी का बदला गया नाम
कलेक्ट्रेट परिसर में यह लाइब्रेरी, जिस भवन में संचालित हो रही है, वह 103 साल पुरानी हो गई है. यह अपने आप में एक धरोहर बन चुकी है. इसके परिसर में स्थापित देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की प्रतिमा अधिवक्ताओं की प्रेरणा की स्रोत है. साल 1916 में जब यह लाइब्रेरी स्थापित की गई तो इसे 'मुख्तार संघ' कहा जाता था. यही क्रम वर्ष 1961 तक चलता रहा. इसी वर्ष 'एडवोकेट एक्ट' के पारित होने के बाद इसका नाम जिला अधिवक्ता लाइब्रेरी हो गया.
आधुनिक सुविधाओं की कमी
कानूनी दांव पेंच से फुर्सत निकालकर तमाम अधिवक्ता यहां मनोरंजन, सूचनाओं और राजनीतिक चर्चाओं के लिए तो एकत्रित होते ही हैं, कानून की मौजूद किताबों का भी अध्ययन करने का अवसर इन्हें मिलता है. आधुनिकता और तकनीक से कोसों दूर इस लाइब्रेरी को अद्यतन सुविधाओं से युक्त किए जाने की मांग जिला अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष अमिताभ त्रिपाठी कर रहे हैं, जो समय की मांग भी है. यहां भी हजारों किताबों से आलमारियां भरी पड़ी हैं, जिनमें से कुछ अपनी पहचान तक खो चुकी हैं.
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कलेक्ट्रेट में वकालत शुरू कर हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति से लेकर महाधिवक्ता तक की शोभा बढ़ाने वाले अधिवक्ताओं ने भी इस लाइब्रेरी का भरपूर उपयोग किया है. उनके सहयोग से यह लाइब्रेरी जीवंतता को पाती रही है, लेकिन अब इसे कोई सहयोग देने वाला नहीं है.
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अधिवक्ताओं ने साझा किए अनुभव
वरिष्ठ अधिवक्ता धरणी राम दूबे कहते हैं कि जब वह युवा काल में यहां वकालत करने आए तो लाइब्रेरी में तमाम वरिष्ठ अधिवक्ताओं के माध्यम से वकालत के भी गुर सीखने का मौका मिला, जिसका मौजूदा समय के नए-नए अधिवक्ताओं को लाभ नहीं मिल पा रहा. उन्होंने कहा कि सरकार कुछ धन की व्यवस्था करे. एचजेएस और पीसीएस (जे) जैसी परीक्षाओं के लिए उपयोगी किताबों को यहां मुहैया कराएं तो तमाम नए और कमजोर वर्ग के अधिवक्ताओं को विशेष लाभ होगा.
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पूर्व अध्यक्ष रामवृक्ष त्रिपाठी कहते हैं कि इस लाइब्रेरी में भी मुकदमों पर जिरह जैसी स्थिति बनती थी. सीआरपीसी, आईपीसी की किताबों के अध्ययन के साथ चकबंदी एक्ट के तहत मुकदमों के निवारण की जानकारी भी वकीलों को प्राप्त होती थी, जो अब सिर्फ यादों में ही रह गया है. सभी को इसके दिन बहुरने का इंतजार है.