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बजट अभाव और बार काउंसिल के असहयोग से दम तोड़ रही अधिवक्ताओं की लाइब्रेरी - एडवोकेट एक्ट

ईटीवी भारत 'गोरखपुर के ग्रंथालय' के नाम से एक खास रिपोर्ट पेश कर रहा है. इसके पांचवें भाग में आज हम बात करेंगे अधिवक्ताओं की लाइब्रेरी की, जो बजट के अभाव और बार काउंसिल के असहयोग से दम तोड़ती नजर आ रही है. देखिए हमारी ये स्पेशल रिपोर्ट...

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बजट के अभाव और बार काउंसिल के असहयोग से दम तोड़ रही अधिवक्ताओं की लाइब्रेरी.
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Published : Dec 29, 2019, 12:05 AM IST

Updated : Dec 29, 2019, 12:52 AM IST

गोरखपुर: अधिवक्ताओं के लिए कानून की किताबों सहित तमाम अन्य तरह की पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने के लिए अंग्रेजी शासनकाल में कलेक्ट्रेट परिसर में लाइब्रेरी की स्थापना की गई थी, जो मौजूदा समय में पूरी तरह से दम तोड़ती नजर आ रही है. ऐसी दशा में सिर्फ गोरखपुर ही नहीं, प्रदेश के जिस भी कलेक्ट्रेट में लाइब्रेरी संचालित हो रही है, उसे न तो सरकार से कोई बजट मिल रहा है और न ही बार काउंसिल पहले की तरह इन्हें कोई बजट जारी कर रहा है. लिहाजा अपने स्थानीय संसाधनों के बल पर अपने वजूद को बचाए रखने के लिए यह लाइब्रेरी संघर्षरत है.

देखे वीडियो.

साल 1961 में लाइब्रेरी का बदला गया नाम
कलेक्ट्रेट परिसर में यह लाइब्रेरी, जिस भवन में संचालित हो रही है, वह 103 साल पुरानी हो गई है. यह अपने आप में एक धरोहर बन चुकी है. इसके परिसर में स्थापित देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की प्रतिमा अधिवक्ताओं की प्रेरणा की स्रोत है. साल 1916 में जब यह लाइब्रेरी स्थापित की गई तो इसे 'मुख्तार संघ' कहा जाता था. यही क्रम वर्ष 1961 तक चलता रहा. इसी वर्ष 'एडवोकेट एक्ट' के पारित होने के बाद इसका नाम जिला अधिवक्ता लाइब्रेरी हो गया.

आधुनिक सुविधाओं की कमी
कानूनी दांव पेंच से फुर्सत निकालकर तमाम अधिवक्ता यहां मनोरंजन, सूचनाओं और राजनीतिक चर्चाओं के लिए तो एकत्रित होते ही हैं, कानून की मौजूद किताबों का भी अध्ययन करने का अवसर इन्हें मिलता है. आधुनिकता और तकनीक से कोसों दूर इस लाइब्रेरी को अद्यतन सुविधाओं से युक्त किए जाने की मांग जिला अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष अमिताभ त्रिपाठी कर रहे हैं, जो समय की मांग भी है. यहां भी हजारों किताबों से आलमारियां भरी पड़ी हैं, जिनमें से कुछ अपनी पहचान तक खो चुकी हैं.

ये भी पढ़ें: गुलाम भारत में बेहतर थी गोरखपुर नगर निगम लाइब्रेरी, अब सत्ता की बेरुखी पड़ रही भारी
कलेक्ट्रेट में वकालत शुरू कर हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति से लेकर महाधिवक्ता तक की शोभा बढ़ाने वाले अधिवक्ताओं ने भी इस लाइब्रेरी का भरपूर उपयोग किया है. उनके सहयोग से यह लाइब्रेरी जीवंतता को पाती रही है, लेकिन अब इसे कोई सहयोग देने वाला नहीं है.

ये भी पढ़ें: MMMTU है प्रदेश की पहली ई-लाइब्रेरी, जल्द RFID सुविधा से होगी लैस

अधिवक्ताओं ने साझा किए अनुभव
वरिष्ठ अधिवक्ता धरणी राम दूबे कहते हैं कि जब वह युवा काल में यहां वकालत करने आए तो लाइब्रेरी में तमाम वरिष्ठ अधिवक्ताओं के माध्यम से वकालत के भी गुर सीखने का मौका मिला, जिसका मौजूदा समय के नए-नए अधिवक्ताओं को लाभ नहीं मिल पा रहा. उन्होंने कहा कि सरकार कुछ धन की व्यवस्था करे. एचजेएस और पीसीएस (जे) जैसी परीक्षाओं के लिए उपयोगी किताबों को यहां मुहैया कराएं तो तमाम नए और कमजोर वर्ग के अधिवक्ताओं को विशेष लाभ होगा.

ये भी पढ़ें: लाइब्रेरी के जनक डॉ. एसआर रंगनाथन के सिद्धांतों पर कार्य करती है पूर्वोत्तर रेलवे की लाइब्रेरी
पूर्व अध्यक्ष रामवृक्ष त्रिपाठी कहते हैं कि इस लाइब्रेरी में भी मुकदमों पर जिरह जैसी स्थिति बनती थी. सीआरपीसी, आईपीसी की किताबों के अध्ययन के साथ चकबंदी एक्ट के तहत मुकदमों के निवारण की जानकारी भी वकीलों को प्राप्त होती थी, जो अब सिर्फ यादों में ही रह गया है. सभी को इसके दिन बहुरने का इंतजार है.

गोरखपुर: अधिवक्ताओं के लिए कानून की किताबों सहित तमाम अन्य तरह की पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने के लिए अंग्रेजी शासनकाल में कलेक्ट्रेट परिसर में लाइब्रेरी की स्थापना की गई थी, जो मौजूदा समय में पूरी तरह से दम तोड़ती नजर आ रही है. ऐसी दशा में सिर्फ गोरखपुर ही नहीं, प्रदेश के जिस भी कलेक्ट्रेट में लाइब्रेरी संचालित हो रही है, उसे न तो सरकार से कोई बजट मिल रहा है और न ही बार काउंसिल पहले की तरह इन्हें कोई बजट जारी कर रहा है. लिहाजा अपने स्थानीय संसाधनों के बल पर अपने वजूद को बचाए रखने के लिए यह लाइब्रेरी संघर्षरत है.

देखे वीडियो.

साल 1961 में लाइब्रेरी का बदला गया नाम
कलेक्ट्रेट परिसर में यह लाइब्रेरी, जिस भवन में संचालित हो रही है, वह 103 साल पुरानी हो गई है. यह अपने आप में एक धरोहर बन चुकी है. इसके परिसर में स्थापित देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की प्रतिमा अधिवक्ताओं की प्रेरणा की स्रोत है. साल 1916 में जब यह लाइब्रेरी स्थापित की गई तो इसे 'मुख्तार संघ' कहा जाता था. यही क्रम वर्ष 1961 तक चलता रहा. इसी वर्ष 'एडवोकेट एक्ट' के पारित होने के बाद इसका नाम जिला अधिवक्ता लाइब्रेरी हो गया.

आधुनिक सुविधाओं की कमी
कानूनी दांव पेंच से फुर्सत निकालकर तमाम अधिवक्ता यहां मनोरंजन, सूचनाओं और राजनीतिक चर्चाओं के लिए तो एकत्रित होते ही हैं, कानून की मौजूद किताबों का भी अध्ययन करने का अवसर इन्हें मिलता है. आधुनिकता और तकनीक से कोसों दूर इस लाइब्रेरी को अद्यतन सुविधाओं से युक्त किए जाने की मांग जिला अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष अमिताभ त्रिपाठी कर रहे हैं, जो समय की मांग भी है. यहां भी हजारों किताबों से आलमारियां भरी पड़ी हैं, जिनमें से कुछ अपनी पहचान तक खो चुकी हैं.

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कलेक्ट्रेट में वकालत शुरू कर हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति से लेकर महाधिवक्ता तक की शोभा बढ़ाने वाले अधिवक्ताओं ने भी इस लाइब्रेरी का भरपूर उपयोग किया है. उनके सहयोग से यह लाइब्रेरी जीवंतता को पाती रही है, लेकिन अब इसे कोई सहयोग देने वाला नहीं है.

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अधिवक्ताओं ने साझा किए अनुभव
वरिष्ठ अधिवक्ता धरणी राम दूबे कहते हैं कि जब वह युवा काल में यहां वकालत करने आए तो लाइब्रेरी में तमाम वरिष्ठ अधिवक्ताओं के माध्यम से वकालत के भी गुर सीखने का मौका मिला, जिसका मौजूदा समय के नए-नए अधिवक्ताओं को लाभ नहीं मिल पा रहा. उन्होंने कहा कि सरकार कुछ धन की व्यवस्था करे. एचजेएस और पीसीएस (जे) जैसी परीक्षाओं के लिए उपयोगी किताबों को यहां मुहैया कराएं तो तमाम नए और कमजोर वर्ग के अधिवक्ताओं को विशेष लाभ होगा.

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पूर्व अध्यक्ष रामवृक्ष त्रिपाठी कहते हैं कि इस लाइब्रेरी में भी मुकदमों पर जिरह जैसी स्थिति बनती थी. सीआरपीसी, आईपीसी की किताबों के अध्ययन के साथ चकबंदी एक्ट के तहत मुकदमों के निवारण की जानकारी भी वकीलों को प्राप्त होती थी, जो अब सिर्फ यादों में ही रह गया है. सभी को इसके दिन बहुरने का इंतजार है.

Intro:नोट--यह खबर एक सीरीज का हिस्सा है जो डेस्क के सहयोगी अच्युत द्विवेदी के डिमांड पर भेजी जा रही। कृपया उन्हें इससे अवगत कराने का कष्ट करें।


गोरखपुर। अधिवक्ताओं के लिए कानून की किताबों सहित तमाम अन्य तरह की पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने के लिए अंग्रेजी शासनकाल में गोरखपुर के कलेक्ट्रेट परिसर में 1916 में स्थापित की गई लाइब्रेरी मौजूदा समय में पूरी तरह से दम तोड़ती नजर आ रही है। ऐसी दशा में सिर्फ गोरखपुर ही नहीं प्रदेश के जिस भी कलेक्ट्रेट में लाइब्रेरी संचालित हो रही है उसे न तो सरकार से कोई बजट मिल रहा है और ना ही बार काउंसिल पहले की तरह इन्हें कोई बजट जारी कर रहा है। लिहाजा अपने स्थानीय संसाधनों के बल पर अपने वजूद को बचाए रखने के लिए यह लाइब्रेरी संघर्ष कर रही है।




Body:गोरखपुर के कलेक्ट्रेट परिसर में यह लाइब्रेरी जिस भवन में संचालित हो रही है उसकी उम्र 103 साल हो गई है। यह अपने आप में एक धरोहर बन चुकी है। इसके परिसर में स्थापित देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की प्रतिमा अधिवक्ताओं के प्रेरणा की स्रोत है। 1916 में जब या लाइब्रेरी स्थापित की गई तो इसे 'मुख्तार संघ' कहते थे। यही क्रम वर्ष 1961 तक चलता रहा। इसी वर्ष 'एडवोकेट एक्ट' के पारित होने के बाद इसका नाम जिला अधिवक्ता लाइब्रेरी हो गया। कानूनी दांवपेच से फुर्सत निकालकर तमाम अधिवक्ता यहां मनोरंजन, सूचनाओं और राजनीतिक चर्चाओं के लिए तो एकत्रित होते ही हैं, कानून की मौजूद किताबों का भी अध्ययन करने का अवसर इन्हें मिलता है। लेकिन आधुनिकता और तकनीकी से कोसों दूर इस लाइब्रेरी को अद्यतन सुविधाओं से युक्त किए जाने की मांग अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष कर रहे हैं जो समय की मांग भी है। यहाँ भी हजारों किताबों से आलमारियां भरी पड़ी हैं जिनमें से कुछ अपनी पहचान तक खो चुकी हैं।

बाइट--अमिताभ त्रिपाठी, अध्यक्ष, जिला अधिवक्ता संघ(चश्मे में)




Conclusion:कलेक्ट्रेट में वकालत शुरू कर हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति से लेकर महाधिवक्ता तक की शोभा बढ़ाने वाले अधिवक्ताओं ने भी इस लाइब्रेरी का भरपूर उपयोग किया है। उनके सहयोग से यह लाइब्रेरी जीवंतता को पाती रही है लेकिन अब इसे कोई सहयोग देने वाला नहीं। वरिष्ठ अधिवक्ता धरणी राम दुबे कहते हैं कि जब वह युवा काल में यहां वकालत करने आए तो लाइब्रेरी में तमाम वरिष्ठ अधिवक्ताओं के माध्यम से वकालत के भी गुर सीखने का मौका मिला। जिसका मौजूदा समय के नए-नए अधिवक्ताओं को लाभ नहीं मिल पा रहा। उन्होंने कहा कि सरकार कुछ धन की व्यवस्था करें, एचजेएस और पीसीएस (जे) जैसी परीक्षाओं के लिए उपयोगी किताबों को यहां मुहैया कराएं तो तमाम नए और कमजोर वर्ग के अधिवक्ताओं को विशेष लाभ होगा। पूर्व अध्यक्ष राम वृक्ष त्रिपाठी कहते हैं इस लाइब्रेरी में भी मुकदमों पर जिरह जैसी स्थिति बनती थी। सीआरपीसी, आईपीसी की किताबों के अध्ययन के साथ चकबंदी एक्ट के तहत मुकदमों के निवारण की जानकारी भी वकीलों को प्राप्त होती थी, जो अब सिर्फ यादों में ही रह गया है। सभी को इसके दिन बहुरने का इंतजार है।

बाइट--धरणी राम दूबे, वरिष्ठ अधिवक्ता(पीली टोपी)
बाइट--रामवृक्ष त्रिपाठी, पूर्व अध्यक्ष, कलेक्ट्रेट अधिवक्ता संघ(टोपी में)

मुकेश पाण्डेय
Etv भारत, गोरखपुर
9415875724
Last Updated : Dec 29, 2019, 12:52 AM IST
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