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गोरखपुर: एक गांव ऐसा जहां घर-घर मोरों का है डेरा - कोनी गांव में 70 से ज्यादा मोर

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के कोनी गांव में 70 से ज्यादा मोर गांव वालों के साथ एक परिवार की तरह रहते हैं. गांव वालों को इन मोरों से अलग ही लगाव है. मोरों से प्रति अथाह प्रेम होने के कारण लोग लॉकडाउन में भी इनका ख्याल रखना नहीं भूले.

people loved peacock in koni village
मोरों में बस्ती है गांव वालों की जान
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Published : Jun 13, 2020, 6:58 AM IST

Updated : Jun 15, 2020, 7:35 AM IST

गोरखपुर: राष्ट्रीय पक्षी मोर की बात करें तो वे सबको लुभाते हैं. मगर जिले में एक ऐसा गांव है, जहां मोर को परिवार की तरह रखा जाता है. कोनी गांव के लोग मोरों से अलग ही लगाव रखते हैं. हाल ऐसा है कि मोर चाहे फसलों को नुकसान ही क्यों न पहुंचा दें, गांव के लोग मोरों को नुकसान नहीं पहुंचाते और न ही किसी और को पहुंचाने देते हैं.

गोरखपुर के कोनी गांव में मोरों को मिलता है संरक्षण.

मोरों की संख्या बढ़कर हुई 70
गांव में मोरों की आवाज गूंजती रहती है. गांव के लोगों का लगाव इन मोरों से दो दशकों पुराना है. दरअसल साल 1999 की बाढ़ के बाद कोनी गांव में भटक कर एक मोर का जोड़ा आ गया था. इसके बाद से वह यही रहने लगा. वहीं आज के समय में वह संख्या बढ़कर के 70 के करीब पहुंच गई है.

लोग करते हैं खाने-पीने का इंतजाम
गांव के लोग इन मोरों को अपनी जिम्मेदारी मानते हैं. हर घर का मुखिया इन मोरों के खाने-पीने का इंतजाम हर दिन सुबह-शाम करता है. इस गांव का बुजुर्ग हो या बच्चा सबको इन मोरों से बहुत प्रेम है. यह गांव मोरों की वजह से एक अद्भुत नजारा पेश करता है. इनका करतब गांव वालों को खूब आनंद देता है.

जंगल जैसा देते हैं वातावरण
गांव के रहने वाले शिक्षक और पशु-पक्षी प्रेमी श्याम पांडेय कहते हैं कि गांव के प्रत्येक व्यक्ति की जान इन मोरों में बसती है. इन्हें अगर कोई नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है तो गांव के बच्चे ही उसके लिए आफत बन जाते हैं. इन मोरों की वजह से ही गांव और उसके आस-पास के क्षेत्र में पेड़-पौधा लगाकर लोगों ने इन्हें जंगल जैसा वातावरण देने का प्रयास किया है.

वन विभाग ने 5 लोगों को प्रशस्ति पत्र देकर किया सम्मानित
यही नहीं जब यह किसी कारण वश घायल या चोटिल हो जाते हैं तो फौरन वन विभाग को सूचित करके इनका उपचार कराया जाता है. साथ ही उन्हें सुरक्षित स्थान पर भी पहुंचाया जाता है. इनके प्रति उमड़े प्रेम और सेवा भाव को देखते ही 'वर्ल्ड बर्ड वाचिंग' और वेटलैंड डे पर वन विभाग ने गांव के 5 लोगों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित भी किया था.

लोगों में मोरों को लेकर अथाह प्रेम
मोरों के प्रति अथाह प्रेम होने के कारण गांव वाले कोरोनावायरस संक्रमण के दौरान भी इन पक्षियों की देखभाल करने से पीछे नहीं हटे. शहर से करीब 12 किलोमीटर दूर बसे इस गांव में इन बेजुबानों का पूरा ख्याल रखा जाता है. इनके लिए यह गांव घर जैसा है तो गांव वालों के लिए इन मोरों की मौजूदगी किसी पक्षी विहार से कम नहीं है.

जिले के डीएफओ अविनाश कुमार की माने तो मोरों के इस गांव में आने वाले बर्ड वाचिंग डे पर प्रदर्शनी और वाइल्ड फोटोग्राफी के आयोजन का प्रस्ताव बनाया जा रहा है. इन मोरों के संरक्षण का भी पूरा ध्यान रखा जा रहा है.

गोरखपुर: राष्ट्रीय पक्षी मोर की बात करें तो वे सबको लुभाते हैं. मगर जिले में एक ऐसा गांव है, जहां मोर को परिवार की तरह रखा जाता है. कोनी गांव के लोग मोरों से अलग ही लगाव रखते हैं. हाल ऐसा है कि मोर चाहे फसलों को नुकसान ही क्यों न पहुंचा दें, गांव के लोग मोरों को नुकसान नहीं पहुंचाते और न ही किसी और को पहुंचाने देते हैं.

गोरखपुर के कोनी गांव में मोरों को मिलता है संरक्षण.

मोरों की संख्या बढ़कर हुई 70
गांव में मोरों की आवाज गूंजती रहती है. गांव के लोगों का लगाव इन मोरों से दो दशकों पुराना है. दरअसल साल 1999 की बाढ़ के बाद कोनी गांव में भटक कर एक मोर का जोड़ा आ गया था. इसके बाद से वह यही रहने लगा. वहीं आज के समय में वह संख्या बढ़कर के 70 के करीब पहुंच गई है.

लोग करते हैं खाने-पीने का इंतजाम
गांव के लोग इन मोरों को अपनी जिम्मेदारी मानते हैं. हर घर का मुखिया इन मोरों के खाने-पीने का इंतजाम हर दिन सुबह-शाम करता है. इस गांव का बुजुर्ग हो या बच्चा सबको इन मोरों से बहुत प्रेम है. यह गांव मोरों की वजह से एक अद्भुत नजारा पेश करता है. इनका करतब गांव वालों को खूब आनंद देता है.

जंगल जैसा देते हैं वातावरण
गांव के रहने वाले शिक्षक और पशु-पक्षी प्रेमी श्याम पांडेय कहते हैं कि गांव के प्रत्येक व्यक्ति की जान इन मोरों में बसती है. इन्हें अगर कोई नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है तो गांव के बच्चे ही उसके लिए आफत बन जाते हैं. इन मोरों की वजह से ही गांव और उसके आस-पास के क्षेत्र में पेड़-पौधा लगाकर लोगों ने इन्हें जंगल जैसा वातावरण देने का प्रयास किया है.

वन विभाग ने 5 लोगों को प्रशस्ति पत्र देकर किया सम्मानित
यही नहीं जब यह किसी कारण वश घायल या चोटिल हो जाते हैं तो फौरन वन विभाग को सूचित करके इनका उपचार कराया जाता है. साथ ही उन्हें सुरक्षित स्थान पर भी पहुंचाया जाता है. इनके प्रति उमड़े प्रेम और सेवा भाव को देखते ही 'वर्ल्ड बर्ड वाचिंग' और वेटलैंड डे पर वन विभाग ने गांव के 5 लोगों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित भी किया था.

लोगों में मोरों को लेकर अथाह प्रेम
मोरों के प्रति अथाह प्रेम होने के कारण गांव वाले कोरोनावायरस संक्रमण के दौरान भी इन पक्षियों की देखभाल करने से पीछे नहीं हटे. शहर से करीब 12 किलोमीटर दूर बसे इस गांव में इन बेजुबानों का पूरा ख्याल रखा जाता है. इनके लिए यह गांव घर जैसा है तो गांव वालों के लिए इन मोरों की मौजूदगी किसी पक्षी विहार से कम नहीं है.

जिले के डीएफओ अविनाश कुमार की माने तो मोरों के इस गांव में आने वाले बर्ड वाचिंग डे पर प्रदर्शनी और वाइल्ड फोटोग्राफी के आयोजन का प्रस्ताव बनाया जा रहा है. इन मोरों के संरक्षण का भी पूरा ध्यान रखा जा रहा है.

Last Updated : Jun 15, 2020, 7:35 AM IST
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