गोरखपुरः कारगिल में शहादत देने वाले मरणोपरान्त महामहिम राष्ट्रपति द्वारा 'सेना मेडल' से सम्मानित गोरखा रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट गौतम गुरुंग की 23वीं पुण्य तिथि पर उन्हें याद किया गया. उनके पिता सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर पीएस गुरुंग के साथ 3/4 गोरखा रेजिंमेंट गोरखपुर के जवानों ने उन्हें याद किया और उन्हें सलामी दी. इस अवसर पर शहीद लेफ्टिनेंट गौतम गरुंग के पिता ब्रिगेडियर पीएस गुरुंग ने कहा कि उनके और परिवार के साथ पूरे देश को बेटे की शहादत पर गर्व है. सेना में ब्रिगेडियर और पिता होने के नाते वे हर साल यहां पर आकर उनकी पुण्यतिथि मनाते हैं.
इस दौरान आसाम लेखापानी 3/4 गोरखा रेजिमेंट के पांच सदस्य सूबेदार हरि, हवलदार राजेश, नायक दिलीप, नायक समीर, लांस लायक दावा शेरपा, रायफल मैन वीरेन्द्र 29 जुलाई से आकर यहां पर मूर्ति के साफ-सफाई के काम में लगे रहे हैं. इस अवसर पर भारत-नेपाल मैत्री समाज के अध्यक्ष अनिल कुमार गुप्त, वीर सेनानी कल्याण संस्थान के अध्यक्ष अनिरुद्ध शाही, अति विशिष्ठ सेवा मेडल से सम्मानित रिटायर्ड मेजर जनरल एसके जसवल, डिप्टी कमांडेंट कर्नल संदीप राय, नगर निगम प्रवर्तन अधिकारी ले. कर्नल सीपी सिंह उपस्थित रहे.
गोरखपुर के कूड़ाघाट स्थित शहीद लेफ्टिनेंट गौरम गुरुंग चौक पर देश के वीर सपूत को 3/4 गोरखा रेजिमेंट की ओर से उनके पिता पूर्व ब्रिगेडियर पीएस गुरुंग की उपस्थिति में शहीद ले. गौतम गुरुंग को मातमी धुन बजाकर गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया. शहीद लेफ्टिनेंट गौतम गुरुंग का परिवार तीन पुश्त से भारतीय सेना में रहा है. परिवार के इकलौते बेटे रहे शहीद लेफ्टिनेंट गौतम गुरुंग को आज भी याद कर उनके पिता और गोरखा रेजिमेंट के जवानों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है.
सेवानिवृत्त ब्रिगेडिर पीएस गुरुंग के इकलौते पुत्र शहीद लेफ्टिनेंट गौतम गुरुंग और एक पुत्री रही हैं. पुत्री की शादी हो चुकी है. मूलतः नेपाल के रहने वाले ब्रिगेडियर पीएस गुरुंग और उनके परिवार ने भारतीय सेना के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया. वे अब उत्तराखंड के देहरादून में रहते हैं. उनका जन्म 23 अगस्त 1973 को देहरादून में हुआ था. वे 6 मार्च 1997 को उन्होंने पिता की बटालियन 3/4 गोरखा राइफल्स (चिन्डिटस) में कमीशन प्राप्त किया और प्रथम नियुक्ति जम्मू-कश्मीर सीमा पर हुई.
5 अगस्त 1999 को कारगिल युद्ध के समय जम्मू कश्मीर के तंगधार में लेफ्टिनेंट गौतम गुरुंग 23 साल की उम्र में शहीद हो गए थे. 15 अगस्त 1999 को उन्हें महामहिम राष्ट्रपति के. आर. नारायणन द्वारा मरणोपरान्त 'सेना मेडल' से सम्मानित किया गया. उसके बाद से हर साल उनके शहादत दिवस पर कुनराघाट स्थिति शहीद ले. गौतम गुरुंग चौक पर उन्हें याद किया जाता है.
शहीद के पिता सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर पीए गुरुंग ने इस अवसर पर कहा कि उनके लिए गर्व का क्षण है. वे गोरखपुरवासियों का आभार प्रकट करते हैं. 23वीं पुण्यतिथि पर वे लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने के साथ उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करने के लिए एकत्र हुए हैं. वे कहते हैं कि उनका बेटा शहीद तो हो गया है. लेकिन, साल दर साल जब वे यहां पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए आते हैं, तो इसके द्वारा कई लोगों को प्रेरणा मिलती है कि वे भी देश के लिए कुछ करने का जज्बा और जोश अपने दिल में भर सकें. भले ही उन्हें अपनी जान न्योछावर करनी पड़ी. क्योंकि इसके बाद भी लोग शहीद को सम्मान के भाव से देखते हैं.
युवाओं को संदेश देते हुए कहा कि वे खुद सेना में रहे हैं. उनके पिता भी सेना का अंग रहे. उनके बेटे ने भी सेना में शहादत दी है. लोगों को ये नहीं समझना चाहिए कि सेना में नौकरी पेट भरने का जरिया है. हमने पाया है कि हम देश की सेवा जितनी करेंगे, हमारे मन को शांति के साथ देश सेवा से बहुत ही खुशी मिलती है. वे युवाओं से अपील करते हैं कि वे सेना में आइए और देश के लिए कुछ कर गुजरने के जज्बे के साथ देश की सेवा करिए.