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गोरखपुरः कांजीवरम साड़ियों की धूम, 11 से 18 हजार रुपये में बिक रही साड़ियां - कांचीपुरम में तैयार की गई कांजीवरम साड़ियां

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु के कांचीपुरम में तैयार की गई कांजीवरम साड़ियां खूब धूम मचा रही हैं. जिले के गोलघर क्षेत्रीय गांधी आश्रम से रोजाना 30 से 35 साड़ियों की बिक्री की जाती है.

कांजीवरम साड़ियों की धूम.
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Published : Nov 21, 2019, 6:54 AM IST

गोरखपुरः दक्षिण भारत के कांजीवरम की सिल्क साड़ियां इस समय जिले में खूब धूम मचा रही हैं. महंगे दाम की होने के बावजूद भी इसके खरीदारों की कमी नहीं है. खास बात यह है कि कांजीवरम की विभिन्न वेरायटी की यह साड़ियां गांधी आश्रम के काउंटर से बेची जा रही हैं.

देखें यह स्पेशल रिपोर्ट.

गांधी जयंती से अब तक करीब 20 लाख रुपये की साड़ियां बेची जा चुकीं हैं. वहीं 65 लाख का आर्डर भी गांधी आश्रम प्रशासन ने बुक करा लिया है. सिल्क के सूत और चमक के साथ पौराणिक महत्व से जुड़ी इस साड़ी को खरीदने के लिए गांधी आश्रम में महिलाओं की भीड़ उमड़ पड़ी है.

बुनकरों के हाथ से तैयार होती है कांजीवरम साड़ियां
कांजीवरम साड़ियां देश के दक्षिण राज्य तमिलनाडु के कांचीपुरम शहर में तैयार की जाती हैं. इन साड़ियों को भारत सरकार द्वारा जियो टैगिंग भी प्राप्त है. जिले के गोलघर क्षेत्रीय गांधी आश्रम से रोजाना 30 से 35 साड़ियों की बिक्री की जाती है. यह साड़ियां बुनकरों द्वारा हाथ से तैयार की जाती है, जिसके चलते इनकी कीमत अन्य साड़ियों की तुलना में अधिक होता है.

गांधी आश्रम में साड़ियों की कीमत 11 हजार से 18 हजार रुपये
गांधी आश्रम में बिक रही साड़ियों की कीमत 11 हजार से 18 हजार रुपये है. वहीं आश्रम में यह साड़ियां पिछले वर्ष मंगाई गई थी, जिसकी अच्छी बिक्री हुई. इसे देखकर इस वर्ष जब इसका काउंटर खुला तो एक रिकॉर्ड बन गया. यही वजह है कि गांधी आश्रम के अधिकारियों ने इसके निर्माण स्थल पर जाकर लाखों का आर्डर बुक कर आए.

कांजीवरम की साड़ी के पीछे एक पौराणिक कथा
कांजीवरम की साड़ी के पीछे एक पौराणिक कथा भी है. भविष्यपुराण में कहा गया कि महर्षि मार्कंडेय ने कावेरी नदी के किनारे कुछ महिलाओं को स्नान के दौरान वस्त्र की जरूरत महसूस करने पर तत्काल महर्षि ने जो साड़ी तैयार की थी, वह कमल के फूल के पत्तों से बनाई गई थी. मान्यता है कि महर्षि मार्कंडेय द्वारा दी गई साड़ी बुनाई कला कांजीवरम साड़ी के रूप में आज भी जीवित है. इन साड़ियों की कलाकृति को विभिन्न नाम दिया गया है, जिसमें ट्रेडिशनल कांजीवरम साड़ी, ब्लू सिल्क, कांजीवरम वेडिंग सिल्क, गोल्डन एलो सिल्क, गोल्डन एंड रेड, ग्रीन सॉफ्ट डिजाइनर सिल्क आदि हैं.

ऐसे बनती है कांजीवरम साड़ी और यह होती है खासियत
कांजीवरम सिल्क साड़ियां पारंपरिक हाथ की बुनाई से तैयार की जाती है. इसे 'कोरवई' कला भी कहा जाता है. एक साड़ी को तैयार करने में लगभग 10 से 15 दिन लगते है. कांजीवरम साड़ी की चौड़ाई अन्य साड़ियों की अपेक्षा अधिक होती है. इनमें डिजाइन के लिए सूर्य, चंद्रमा, मोर, हंस, रथ और मंदिर के चित्र भी प्रयोग किए जाते हैं. इसी आकर्षक लुक के कारण यह महिलाओं के बीच ज्यादा लोकप्रिय है. दक्षिण भारत की फिल्मों और बॉलीवुड में भी इसका खूब प्रयोग किया जाता है.

इसे भी पढ़ें- फर्रुखाबादः खत्म होने की कगार पर 300 वर्ष पुरानी ब्लॉक प्रिंटिंग की कला

गोरखपुरः दक्षिण भारत के कांजीवरम की सिल्क साड़ियां इस समय जिले में खूब धूम मचा रही हैं. महंगे दाम की होने के बावजूद भी इसके खरीदारों की कमी नहीं है. खास बात यह है कि कांजीवरम की विभिन्न वेरायटी की यह साड़ियां गांधी आश्रम के काउंटर से बेची जा रही हैं.

देखें यह स्पेशल रिपोर्ट.

गांधी जयंती से अब तक करीब 20 लाख रुपये की साड़ियां बेची जा चुकीं हैं. वहीं 65 लाख का आर्डर भी गांधी आश्रम प्रशासन ने बुक करा लिया है. सिल्क के सूत और चमक के साथ पौराणिक महत्व से जुड़ी इस साड़ी को खरीदने के लिए गांधी आश्रम में महिलाओं की भीड़ उमड़ पड़ी है.

बुनकरों के हाथ से तैयार होती है कांजीवरम साड़ियां
कांजीवरम साड़ियां देश के दक्षिण राज्य तमिलनाडु के कांचीपुरम शहर में तैयार की जाती हैं. इन साड़ियों को भारत सरकार द्वारा जियो टैगिंग भी प्राप्त है. जिले के गोलघर क्षेत्रीय गांधी आश्रम से रोजाना 30 से 35 साड़ियों की बिक्री की जाती है. यह साड़ियां बुनकरों द्वारा हाथ से तैयार की जाती है, जिसके चलते इनकी कीमत अन्य साड़ियों की तुलना में अधिक होता है.

गांधी आश्रम में साड़ियों की कीमत 11 हजार से 18 हजार रुपये
गांधी आश्रम में बिक रही साड़ियों की कीमत 11 हजार से 18 हजार रुपये है. वहीं आश्रम में यह साड़ियां पिछले वर्ष मंगाई गई थी, जिसकी अच्छी बिक्री हुई. इसे देखकर इस वर्ष जब इसका काउंटर खुला तो एक रिकॉर्ड बन गया. यही वजह है कि गांधी आश्रम के अधिकारियों ने इसके निर्माण स्थल पर जाकर लाखों का आर्डर बुक कर आए.

कांजीवरम की साड़ी के पीछे एक पौराणिक कथा
कांजीवरम की साड़ी के पीछे एक पौराणिक कथा भी है. भविष्यपुराण में कहा गया कि महर्षि मार्कंडेय ने कावेरी नदी के किनारे कुछ महिलाओं को स्नान के दौरान वस्त्र की जरूरत महसूस करने पर तत्काल महर्षि ने जो साड़ी तैयार की थी, वह कमल के फूल के पत्तों से बनाई गई थी. मान्यता है कि महर्षि मार्कंडेय द्वारा दी गई साड़ी बुनाई कला कांजीवरम साड़ी के रूप में आज भी जीवित है. इन साड़ियों की कलाकृति को विभिन्न नाम दिया गया है, जिसमें ट्रेडिशनल कांजीवरम साड़ी, ब्लू सिल्क, कांजीवरम वेडिंग सिल्क, गोल्डन एलो सिल्क, गोल्डन एंड रेड, ग्रीन सॉफ्ट डिजाइनर सिल्क आदि हैं.

ऐसे बनती है कांजीवरम साड़ी और यह होती है खासियत
कांजीवरम सिल्क साड़ियां पारंपरिक हाथ की बुनाई से तैयार की जाती है. इसे 'कोरवई' कला भी कहा जाता है. एक साड़ी को तैयार करने में लगभग 10 से 15 दिन लगते है. कांजीवरम साड़ी की चौड़ाई अन्य साड़ियों की अपेक्षा अधिक होती है. इनमें डिजाइन के लिए सूर्य, चंद्रमा, मोर, हंस, रथ और मंदिर के चित्र भी प्रयोग किए जाते हैं. इसी आकर्षक लुक के कारण यह महिलाओं के बीच ज्यादा लोकप्रिय है. दक्षिण भारत की फिल्मों और बॉलीवुड में भी इसका खूब प्रयोग किया जाता है.

इसे भी पढ़ें- फर्रुखाबादः खत्म होने की कगार पर 300 वर्ष पुरानी ब्लॉक प्रिंटिंग की कला

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डे प्लान की विशेष स्टोरी...

गोरखपुर। दक्षिण भारत के कांजीवरम की सिल्क की साड़ियां इस समय गोरखपुर में खूब धूम मचा रही हैं। महंगे दाम की होने के बावजूद भी इसके खरीदारों की कमी नहीं है। खास बात यह है कि कांजीवरम की विभिन्न वेराइटी की यह साड़ियां गांधी आश्रम के काउंटर से बेंची जा रही हैं। दो अक्टूबर गांधी जयंती से अबतक करीब 20 लाख रुपये की साड़ियां बेची जा चुकीं हैं तो 65 लाख का आर्डर गांधी आश्रम प्रशासन ने बुक करा दिया है। सिल्क के सूत और चमक के साथ पौराणिक महत्व से जुड़ी इस साड़ी को खरीदने के लिए गांधी आश्रम में महिलाओं की भीड़ उमड़ रही है।

नोट--कम्प्लीट पैकेज, वॉइस ओवर अटैच है।...स्पेशल स्टोरी


Body:कांजीवरम साड़ियां देश के दक्षिण राज्य तमिलनाडु के कांचीपुरम शहर में तैयार की जाती हैं। इन साड़ियों को भारत सरकार द्वारा जियो टैगिंग भी प्राप्त है। गोरखपुर के गोलघर क्षेत्रीय गांधी आश्रम से रोजाना 30 से 35 साड़ियों की बिक्री हो रही है। यह साड़ियां बुनकरों द्वारा हाथ से तैयार की जाती है जिसके चलते इनकी कीमत अन्य साड़ियों की तुलना में अधिक होता है। गांधी आश्रम में जो साड़ी में बिक रही है उसकी कीमत 11 हजार से 18 हजार रुपये है। गांधी आश्रम में कांजीवरम की साड़ी पिछले वर्ष मंगाई गई थी जिसकी अच्छी बिक्री हुई। इसे देखकर इस वर्ष जब इसका काउंटर खुला तो एक रिकॉर्ड बन गया। यही वजह है कि गांधी आश्रम के अधिकारी इसके निर्माण स्थल तक घूम आए और लाखों का आर्डर की बुक कर आये।

बाइट--विशेषरनाथ त्रिपाठी, सचिव, क्षेत्रीय गांधी आश्रम
बाइट--विनीता अग्रवाल, ग्राहक


Conclusion:कांजीवरम की साड़ी के पीछे एक पौराणिक कथा भी है। भविष्यपुराण में कहा गया कि महर्षि मार्कंडेय द्वारा कावेरी नदी के किनारे कुछ महिलाओं को स्नान के दौरान अर्धनग्न अवस्था में देखने के बाद उन्हें वस्त्र की जरूरत महसूस करते तत्काल जो साड़ी उन्होंने तैयार की थी वह कमल के फूल के पत्तों से बनाई गई थी। मान्यता है कि महर्षि मार्कंडेय द्वारा दी गई साड़ी की बुनाई कला कांजीवरम की साड़ी के रूप में आज भी जीवित है। इन साड़ियों की कलाकृति को विभिन्न नाम दिया गया है जिसमें ट्रेडिशनल कांजीवरम साड़ी, ब्लू सिल्क, कांजीवरम वेडिंग सिल्क, गोल्डन एलो सिल्क, गोल्डन एंड रेड, ग्रीन सॉफ्ट डिजाइनर सिल्क आदि हैं।


ऐसे बनती है कांजीवरम की साड़ी और यह होती है खासियत...
कांजीवरम सिल्क साड़ियां पारंपरिक हाथ की बुनाई से तैयार की जाती है। इससे 'कोरवई' कला भी कहा जाता है। एक साड़ी को तैयार करने में लगभग 10 से 15 दिन लगता है। कांजीवरम साड़ी की चौड़ाई अन्य साड़ियों से ज्यादा होती है। इनमें डिजाइन के लिए सूर्य, चंद्रमा,मोर,हंस, रथ और मंदिर के चित्र भी प्रयोग किए जाते हैं। इसी आकर्षक लुक के कारण यह महिलाओं के बीच ज्यादा लोकप्रिय है। दक्षिण भारत की फिल्मों और बॉलीवुड में भी इसका खूब प्रयोग होता है।

बाइट--पंडित शरद चंद्र मिश्र, ज्योतिषि

क्लोजिंग पीटीसी...
मुकेश पाण्डेय
Etv भारत, गोरखपुर
9415875724
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