गोरखपुरः रमजान का मुबारक महीना धीरे-धीरे अपने आखिरी पड़ाव की ओर गतिशील है. इस महीने में प्रत्येक व्यक्ति पर सदका-ए-फितर यानि दान की रकम अदा करना जरूरी है, जिसको निर्धारित मानक के मुताबिक किसी गरीब, यतीम, असहाय लाचार को दान करना वाजिब बताया गया है. इसको एक तरह से मानव शरीर का टैक्स भी कहा जा सकता है, जिसकी अदायगी माह-ए-रमजान में एक बार होती है.
ईद-उल-फितर की नमाज अदा करने से पहले सदका-ए-फितर की अदायगी वाजिब है. इसकी अदायगी दो किलो 47 ग्राम गेहूं अथवा उसका आटा या तय कीमत की शक्ल में गरीबों को दान करना अल्लाह का फरमान है. जिन पर जकात फर्ज नहीं है वह सदका-ए-फितर से गरीबों की मदद कर सकते हैं. यह इंसान को गुनाहों की गंदगी से पाक करता है.
पिपराइच क्षेत्र के बैलो स्थित मदरसा मकतब के इमाम हुफ्फाज कारी शादाब रजा ने बताया कि रमजान मुबारक का रोजा रखना और पंजगाना नमाज अदा करने के साथ-साथ सदका-ए-फितर (दान) देने का विशेष हुक्म अल्लाह ने अकीदतमंदों को दिया है. सदका-ए-फितर अदा करने वाला बन्दा सवाब का हकदार होता है और न अदा करने वाला गुनाह का हकदार होता है.
हिन्दुस्तान में एक आदमी का सदका-ए-फितर दो किलो 47 ग्राम गेहूं, आटा या फिर उसकी कीमत की शक्ल में रुपये देना वाजिब है. उत्तर प्रदेश सरकार ने इस वर्ष गेहूं का समर्थक मूल्य 1,925 रुपये निर्धारित किया है. इस लिहाज से दो किलो 47 ग्राम गेहूं का मूल्य करीब 39 रुपये बन रहा है.
बताते चलें कि सदका-ए-फितर में गेहूं देने की शुरुआत हजरत अमीर मुआविया रजियल्लाहु तआला अन्हु के दौर से हुई. इससे पहले सदक-ए-फितर में खजूर, मुनक्का और जौ दिया जाता था. वहीं गल्फ देशों में आज भी सदक-ए-फित्र खजूर के तौर पर दिया जाता है.