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अब सुरंग के पास भी बन सकेंगे मकान, नींव की मजबूती पर नहीं पड़ेगा असर

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Published : Dec 30, 2022, 3:15 PM IST

गोरखपुर में निर्माण को लेकर एक अहम शोध हुआ है. इस शोध से निर्माण की एक बड़ी समस्या दूर हो सकेगी. चलिए जानते हैं इसके बारे में.

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अब सुरंग के पास भी बन सकेंगे मकान, नींव की मजबूती पर नहीं पड़ेगा असर

गोरखपुर: इंजीनियरिंग के क्षेत्र में नित नए हो रहे शोध कई तरह की समस्याओं का निदान करने में बड़ा योगदान दे रहे हैं. ऐसा ही एक शोध निकलकर सामने आया है मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (Madan Mohan Malviya University of Technology) के सिविल इंजीनियरिंग विभाग से. यहां के एक शोधार्थी ने भवन निर्माण और उसमें भी खासकर नीव की मजबूती को लेकर लोगों के मन में पनपने वाले संकट को दूर किया है. यह संकट उन जगहों से भी दूर हो जाएगा जहां मानव जनित या प्राकृतिक रूप से सुरंग भी गुजरती हो. रिडक्शन फैक्टर के तहत तैयार होने वाली नींव पूरी तरह से मजबूत होगी, जिससे भवन की आयु लंबी होगी. इस शोध कार्य को सिविल विभाग के शोधार्थी पीयूष कुमार ने अपने शोध निर्देशक असिस्टेंट प्रोफेसर, डॉक्टर विनय भूषण के मार्गदर्शन में तैयार किया है, जिसका जनरल दुनिया के कई प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रकाशित होने के बाद 'अमेरिकी सोसायटी आफ सिविल इंजीनियरिंग जनरल' (american society of civil engineering general) में भी महत्वपूर्ण स्थान मिला है.

यह रिडक्शन फैक्टर यह निर्धारित कर देगा कि सुरंग के आसपास मजबूत भवन के निर्माण के मानक क्या होंगे. सुरंग के आकार के आधार पर फैक्टर यह बताएगा कि उससे कम से कम कितनी दूरी पर भवन बनाया जाए. और भवन की नीव भार वाहन क्षमता क्या होगी यानी कि उस पर अधिकतम कितने तल का भवन बनाया जा सकता है. शोधार्थी पीयूष कुमार बताते हैं कि बीते वर्षों में भौतिक जरूरतों के लिए भूमिगत संरचना के बढ़े प्रचलन और भूमि के दोहन से और प्राकृतिक भूगर्भीय प्रक्रिया के चलते, बढ़ रहे खोखलेपन ने उन्हें शोध के लिए प्रेरित किया. उन्हें कई लोग ऐसे मिले जो सुरंग के आसपास भवन निर्माण तो कराना चाहते थे लेकिन मजबूती को लेकर चिंतित थे. इसी चिंता को दूर करने को उन्होंने सुरंग के पास मजबूत भवन निर्माण की संभावना पर शोध करना प्रारंभ किया जो आज अंतिम मुकाम हासिल कर चुका है. उन्होने बताया कि इससे परिवहन सुविधा को भी आसान बनाया जा सकेगा. साथ ही लोगों के भवन की आवश्यकता की पूर्ति भी सभी खतरो को टालते हुए पूरी की जा सकती है.

गोरखपुर के मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के सिविल इंजीनियरिंग विभाग में हुआ शोध.
पीयूष कुमार के शोध निर्देशक डॉ विनय भूषण चौहान ने ईटीवी भारत को बताया कि पीयूष का रिडक्शन फैक्टर दो स्थितियों का अनुपात है. पहली स्थिति में भवन की नींव भार वाहन क्षमता का आंकलन भूमिगत सुरंग की अनुपस्थिति में किया गया जबकि दूसरी स्थिति में यही आकलन सुरंग की उपस्थिति में किया गया. 'एडाप्टिव फाइनाइट एलिमेंट लिमिट एनालिसिस' के माध्यम से दोनों स्थितियों के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर नींव की भार वाहन क्षमता निर्धारित की जाती है. यह फैक्टर सुरंग से नीव की दूरी के साथ चट्टानों की गुणवत्ता पर नींव की निर्भरता का भी आंकलन करता है क्योंकि चट्टान की गुणवत्ता की भी नींव के सामर्थ्य निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका होती है. उन्होंने कहा कि इस सफल शोध के बाद अब दोहरी सुरंग की स्थिति का भी वह आंकलन करने में जुटे हुए हैं जिसका रिसर्च पेपर अपने फाइनल स्टेज पर है. साथ ही यह भी कहा कि यह शोध उन इंजीनियरों के लिए बेहद मददगार होगा जो भविष्य में कोई सुरंग निर्माण की प्रक्रिया से जुड़ रहे होंगे.

ये भी पढ़ेंः चंदौली में आक्सीजन सिलेंडर फटने का वीडियो आया सामने, 2 लोगों की मौत

गोरखपुर: इंजीनियरिंग के क्षेत्र में नित नए हो रहे शोध कई तरह की समस्याओं का निदान करने में बड़ा योगदान दे रहे हैं. ऐसा ही एक शोध निकलकर सामने आया है मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (Madan Mohan Malviya University of Technology) के सिविल इंजीनियरिंग विभाग से. यहां के एक शोधार्थी ने भवन निर्माण और उसमें भी खासकर नीव की मजबूती को लेकर लोगों के मन में पनपने वाले संकट को दूर किया है. यह संकट उन जगहों से भी दूर हो जाएगा जहां मानव जनित या प्राकृतिक रूप से सुरंग भी गुजरती हो. रिडक्शन फैक्टर के तहत तैयार होने वाली नींव पूरी तरह से मजबूत होगी, जिससे भवन की आयु लंबी होगी. इस शोध कार्य को सिविल विभाग के शोधार्थी पीयूष कुमार ने अपने शोध निर्देशक असिस्टेंट प्रोफेसर, डॉक्टर विनय भूषण के मार्गदर्शन में तैयार किया है, जिसका जनरल दुनिया के कई प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रकाशित होने के बाद 'अमेरिकी सोसायटी आफ सिविल इंजीनियरिंग जनरल' (american society of civil engineering general) में भी महत्वपूर्ण स्थान मिला है.

यह रिडक्शन फैक्टर यह निर्धारित कर देगा कि सुरंग के आसपास मजबूत भवन के निर्माण के मानक क्या होंगे. सुरंग के आकार के आधार पर फैक्टर यह बताएगा कि उससे कम से कम कितनी दूरी पर भवन बनाया जाए. और भवन की नीव भार वाहन क्षमता क्या होगी यानी कि उस पर अधिकतम कितने तल का भवन बनाया जा सकता है. शोधार्थी पीयूष कुमार बताते हैं कि बीते वर्षों में भौतिक जरूरतों के लिए भूमिगत संरचना के बढ़े प्रचलन और भूमि के दोहन से और प्राकृतिक भूगर्भीय प्रक्रिया के चलते, बढ़ रहे खोखलेपन ने उन्हें शोध के लिए प्रेरित किया. उन्हें कई लोग ऐसे मिले जो सुरंग के आसपास भवन निर्माण तो कराना चाहते थे लेकिन मजबूती को लेकर चिंतित थे. इसी चिंता को दूर करने को उन्होंने सुरंग के पास मजबूत भवन निर्माण की संभावना पर शोध करना प्रारंभ किया जो आज अंतिम मुकाम हासिल कर चुका है. उन्होने बताया कि इससे परिवहन सुविधा को भी आसान बनाया जा सकेगा. साथ ही लोगों के भवन की आवश्यकता की पूर्ति भी सभी खतरो को टालते हुए पूरी की जा सकती है.

गोरखपुर के मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के सिविल इंजीनियरिंग विभाग में हुआ शोध.
पीयूष कुमार के शोध निर्देशक डॉ विनय भूषण चौहान ने ईटीवी भारत को बताया कि पीयूष का रिडक्शन फैक्टर दो स्थितियों का अनुपात है. पहली स्थिति में भवन की नींव भार वाहन क्षमता का आंकलन भूमिगत सुरंग की अनुपस्थिति में किया गया जबकि दूसरी स्थिति में यही आकलन सुरंग की उपस्थिति में किया गया. 'एडाप्टिव फाइनाइट एलिमेंट लिमिट एनालिसिस' के माध्यम से दोनों स्थितियों के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर नींव की भार वाहन क्षमता निर्धारित की जाती है. यह फैक्टर सुरंग से नीव की दूरी के साथ चट्टानों की गुणवत्ता पर नींव की निर्भरता का भी आंकलन करता है क्योंकि चट्टान की गुणवत्ता की भी नींव के सामर्थ्य निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका होती है. उन्होंने कहा कि इस सफल शोध के बाद अब दोहरी सुरंग की स्थिति का भी वह आंकलन करने में जुटे हुए हैं जिसका रिसर्च पेपर अपने फाइनल स्टेज पर है. साथ ही यह भी कहा कि यह शोध उन इंजीनियरों के लिए बेहद मददगार होगा जो भविष्य में कोई सुरंग निर्माण की प्रक्रिया से जुड़ रहे होंगे.

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