गोरखपुरः राणी सती दादी के नाम से देश के तमाम प्रदेशों में पूजी जाने वाली देवी का महाभारत कालीन इतिहास है. कहा जाता है कि महाभारत की लड़ाई में जब वीर अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हो गए तो उनकी पत्नी 'उत्तरा' सती होने जा रही थीं, जिन्हें भगवान श्री कृष्ण ने सती होने से रोका था. वजह थी कि उत्तरा गर्भ से थी और अगर ऐसा हो जाता तो यह बहुत बड़ा पाप होता. उत्तरा को राणी सती दादी के नाम से मारवाड़ी समाज न सिर्फ पूजता है बल्कि उन्हें अपना कुलदेवी मानता है.
इसके पीछे भी पौराणिक महत्व और इतिहास है. देश के विभिन्न शहरों में यह उत्सव आयोजित है, जिसमें कोलकाता से लेकर नेपाल तक के लोग शामिल होते हैं. गोरखपुर में यह भव्य आयोजन शनिवार को हुआ. शोभायात्रा गोरखनाथ मंदिर से निकालकर राणी सती मंदिर तक ले जाया गया. इस दौरान दो दिवसीय रंगारंग और संगीत समागम का कार्यक्रम के दौरान लोग अपनी कुल देवी को याद करते हैं. शोभायात्रा राणी सती दादी मंदिर पर समाप्त हुई, जहां सभी ने नाच झूमकर इस उत्सव का आनंद लिया और अपनी कुलदेवी को नमन किया.
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यही वजह है कि इसकी ख्याति देश से निकलकर बाहर भी पहुंच रही है, जहां व्यापारी समाज के लोग रह रहे हैं. विभिन्न शहरों में इनका दिव्य मंदिर बनाया गया है. इसमें गोरखपुर भी एक बड़ा केंद्र है. यही वजह है कि समाज के हजारों लोग इकट्ठा होकर भव्य शोभायात्रा के साथ अपने कुलदेवी को याद करते हैं.
राणी सती दादी का मंदिर राजस्थान के झुंझुनू में है. इनकी पूजा मौजूदा दौर में दुर्गा शक्ति के रूप में की जाती है. कहा जाता है कि उत्तरा का जन्म कलयुग में राजस्थान में गुरसामल सेठ के यहां हुआ था. इनका नाम नारायणी था. बड़े होने पर उनके विवाह को संपन्न कराने की गुरसामल की तमाम कोशिश बेकार जा रही थी. तब नारायणी ने खुद "तनधन"नाम के एक सेठ के बारे में अपने पिता को बताया जो वीर अभिमन्यु के रूप में जन्म लिए थे.
नारायणी का विवाह तनधन के साथ हुआ। एक बार नारायणी तनधन के साथ यात्रा पर थीं। इसी दौरान एक नवाब की सेना ने उनके रथ पर हमला कर दिया, जिसमें उनके पति मारे गए, लेकिन इस दौरान भीषण युध्द हुआ और नारायणी के पराक्रम की चर्चा चहुंओर हुई. यही वजह है कि राजस्थान के लोग अपनी इस बेटी को कुलदेवी के रूप में पहचाने लगे.
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