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जानिए, नकदी फसल के रुप धूम मचा रही चाइनीज लीची की क्या है खासियत

किसान अगर परम्परागत खेती से मोह भंग कर लीची की बागवानी पर थोड़ा सा ध्यान दें तो लाखों का मुनाफा कमा सकते हैं. वहीं गोरखपुर जिले के एक किसान ने लीची की खेती से कई गुना कमाई कर इसकी बानगी पेश की है.

नगदी फसल के रुप में मचा रही धूम
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Published : Jun 2, 2019, 2:43 PM IST

गोरखपुर : भारत एक कृषि प्रधान देश है. यहां का मौसम एवं जलवायु प्रत्येक फसल के लिए मुफीद माना जाता है. मिट्टी और बीज का तालमेल मिलने पर फसल की बम्पर पैदावार होती है. ऐसा ही कुछ नजारा गोरखपुर मुख्यालय से बीस किलोमीटर दूरी पर बरगदहीं गांव स्थित एक लीची के बगीचे का है. जहां इन दिनों चाइनीज प्रजाति के पेड़ों पर लीची के गुच्छे देखते ही बन रहे हैं.

फसल के रुप में लीची मचा रही धूम
पिपराइच क्षेत्र के ग्राम पंचायत बरगदहीं में, दानिश बाबू ऊर्फ डिस्स बाबू ने बारह एकड़ भूमि पर लीची का बाग लगा रखा है.दानिश बाबू ने बाग में एक अनुभवी किसान बेगू निषाद को देखभाल करने की जिम्मेदारी सौंपी है. किसान बेगू निषाद बताते हैं कि लीची की बागवानी करने के लिए दोमट बलुई मिट्टी काफी मुफीद होती है. प्रदेश में लीची की प्रमुख तीन प्रजातियां शाही, चाइनीज और गोलवा हैं, जिसकी पैदावार यहां पर बेहतर होती है. कम लागत में बेहतर उत्पाद के लिए चाईनीज प्रजाति बेहतर साबित हो रही है.

जानें क्या है, चाइनीज लीची की विशेषता ?
यहां के लोगों में चाइनीज लीची नकदी फसल के रुप धूम मचा रही है. यहां इसकी जबरदस्त मांग है. इसका जायका और पैदावार अन्य प्रजातियों से बेहतर है. इस प्रजाति का फल जून के अन्तिम माह तक पक कर तैयार होता है. इसका रंग सुर्ख लाल और आकार अण्डाकार होता है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि फसल के अन्दरुनी भाग में कीड़े लगने की संभावना बहुत कम होती है.

शाही प्रजाति लीची का खट्टा-मीठा होता है स्वाद
शाही वैराइटी की लीची अगैती फसल है. एक पेड़ में इसकी पैदावार लगभग 80 से 100 किलो होती है. यह फसल गोरखपुर की मृदा और मौसम के लिए उपयुक्त है लेकिन धूप लगने से इसका छिलका जलकर काला पड़ जाता है. फसल पकने पर इसका रंग गहरा लाल और पीला हो जाता है. फली का रंग इसके लिए मायने नहीं रखता. फली का रंग हरा हो या पीला, इसका स्वाद खट्टा-मीठा होता है.

चाइनीज लीची का बाजार में मिलता है बेहतर भाग
चाइनीज वैराइटी की लीची का बाजार में बढ़िया भाव मिलता है. जैसे-जैसे इसमें गूदा पड़ने लगता है, ये पूरी तरह गोल अण्डाकार का हो जाता है. इसकी वैराइटी शाही से बेहतर होती है. इसका रंग सुर्ख लाल होता है. यह बाजार में सबसे अन्तिम तक उपलब्ध रहता है और इसका भाव भी बेहतर मिलता है.

चमगादड़, पक्षी फलों को पहुंचाते हैं नुकसान
फसल तैयार होते ही चमगादड़ रातों में नुकसान पहुंचाने लगते हैं. किसान बेगु निषाद बताते हैं कि एक चमगादड़ एक रात में करीब सौ फल को तोड़कर उठा ले जाते हैं. जिसके बचाव के लिए वृक्षों के चारों तरफ जाल लगाया जाता है. कुछ जाल से टकराते ही भाग निकलते है और कुछ चमगादड़ जाल में फंसकर जान गवां देते हैं.

चाइनीज वैराइटी की डेढ़ से दो कुंतल पैदावार होती है
चाइनीज वैराइटी की प्रत्येक पेड़ में पैदावार लगभग डेढ़ से दो कुन्तल होती है. तैयार फसल को व्यापारी बाग से ही नकद रकम देकर उठा ले जाते हैं. वर्तमान में इसका थोक भाव 70 रुपये किलो है. बाजार में इसका भाव कभी कम तो कभी ज्यादा होता है. यह फसल सौ रुपये किलो तक भी बिक जाती है.

गोरखपुर : भारत एक कृषि प्रधान देश है. यहां का मौसम एवं जलवायु प्रत्येक फसल के लिए मुफीद माना जाता है. मिट्टी और बीज का तालमेल मिलने पर फसल की बम्पर पैदावार होती है. ऐसा ही कुछ नजारा गोरखपुर मुख्यालय से बीस किलोमीटर दूरी पर बरगदहीं गांव स्थित एक लीची के बगीचे का है. जहां इन दिनों चाइनीज प्रजाति के पेड़ों पर लीची के गुच्छे देखते ही बन रहे हैं.

फसल के रुप में लीची मचा रही धूम
पिपराइच क्षेत्र के ग्राम पंचायत बरगदहीं में, दानिश बाबू ऊर्फ डिस्स बाबू ने बारह एकड़ भूमि पर लीची का बाग लगा रखा है.दानिश बाबू ने बाग में एक अनुभवी किसान बेगू निषाद को देखभाल करने की जिम्मेदारी सौंपी है. किसान बेगू निषाद बताते हैं कि लीची की बागवानी करने के लिए दोमट बलुई मिट्टी काफी मुफीद होती है. प्रदेश में लीची की प्रमुख तीन प्रजातियां शाही, चाइनीज और गोलवा हैं, जिसकी पैदावार यहां पर बेहतर होती है. कम लागत में बेहतर उत्पाद के लिए चाईनीज प्रजाति बेहतर साबित हो रही है.

जानें क्या है, चाइनीज लीची की विशेषता ?
यहां के लोगों में चाइनीज लीची नकदी फसल के रुप धूम मचा रही है. यहां इसकी जबरदस्त मांग है. इसका जायका और पैदावार अन्य प्रजातियों से बेहतर है. इस प्रजाति का फल जून के अन्तिम माह तक पक कर तैयार होता है. इसका रंग सुर्ख लाल और आकार अण्डाकार होता है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि फसल के अन्दरुनी भाग में कीड़े लगने की संभावना बहुत कम होती है.

शाही प्रजाति लीची का खट्टा-मीठा होता है स्वाद
शाही वैराइटी की लीची अगैती फसल है. एक पेड़ में इसकी पैदावार लगभग 80 से 100 किलो होती है. यह फसल गोरखपुर की मृदा और मौसम के लिए उपयुक्त है लेकिन धूप लगने से इसका छिलका जलकर काला पड़ जाता है. फसल पकने पर इसका रंग गहरा लाल और पीला हो जाता है. फली का रंग इसके लिए मायने नहीं रखता. फली का रंग हरा हो या पीला, इसका स्वाद खट्टा-मीठा होता है.

चाइनीज लीची का बाजार में मिलता है बेहतर भाग
चाइनीज वैराइटी की लीची का बाजार में बढ़िया भाव मिलता है. जैसे-जैसे इसमें गूदा पड़ने लगता है, ये पूरी तरह गोल अण्डाकार का हो जाता है. इसकी वैराइटी शाही से बेहतर होती है. इसका रंग सुर्ख लाल होता है. यह बाजार में सबसे अन्तिम तक उपलब्ध रहता है और इसका भाव भी बेहतर मिलता है.

चमगादड़, पक्षी फलों को पहुंचाते हैं नुकसान
फसल तैयार होते ही चमगादड़ रातों में नुकसान पहुंचाने लगते हैं. किसान बेगु निषाद बताते हैं कि एक चमगादड़ एक रात में करीब सौ फल को तोड़कर उठा ले जाते हैं. जिसके बचाव के लिए वृक्षों के चारों तरफ जाल लगाया जाता है. कुछ जाल से टकराते ही भाग निकलते है और कुछ चमगादड़ जाल में फंसकर जान गवां देते हैं.

चाइनीज वैराइटी की डेढ़ से दो कुंतल पैदावार होती है
चाइनीज वैराइटी की प्रत्येक पेड़ में पैदावार लगभग डेढ़ से दो कुन्तल होती है. तैयार फसल को व्यापारी बाग से ही नकद रकम देकर उठा ले जाते हैं. वर्तमान में इसका थोक भाव 70 रुपये किलो है. बाजार में इसका भाव कभी कम तो कभी ज्यादा होता है. यह फसल सौ रुपये किलो तक भी बिक जाती है.

Intro:भारत कृषि प्रधान देश है. यहां का मौसम एवं जलवायु प्रत्येक फसल के लिए मुफीद माना जाता है. मिट्टी और बीज का तालमेल मिलने पर फलस की बम्पर पैदावार होती है. नाना प्रकार के फसलों के लिए विभिन्न स्थानों की मिट्टी में एक दूसरे का समावेश होते ही पैदावार को चार चांद लग जाता है. ऐसा ही कुछ नजारा गोरखपुर मुख्यालय से बीस किमी दूरी पर बरगदहीं गांव स्थित एक लीची के बगीचे का है. इनदिनों चाईनीज प्रजाति के पेड़ों पर लीची के गुच्छे देखते बन रहे है। वैसे तो लीची को नकदी फसल के रुप में भी जान पहचान जाता है. क्षेत्र में किसानों के लिए खेती करने का एक अनोखा पहल है. किसान अगर परमपरागत खेती से मोह भंग कर लीची के बागवानी पर थोड़ा सा ध्यान दें तो लाखों का मुनाफा कमा सकते है।

गोरखपुर पिपराइच: पिपराइच क्षेत्र के ग्राम पंचायत बरगदहीं में, दानिश बाबू ऊर्फ डिस्स बाबू ने बारह एकड़ भूमि पर लीची का बाग लगा रखा है. जिस में गुलरिहा के एक अनुभवी किसान बेगू निषाद को देखभाल करने की जिम्मेदारी सौपा है. किसान बेगू निषाद बताते है कि लीची की बागवानी करने के लिए दोमत बलुअई मिट्टी मुफीद होती है. प्रदेश के उत्तरांचल में लीची की प्रमुख तीन प्रजातियां शाही, चाईनीज और गोलवा है जिसकी पैदावार यहां पर बेहतर होती है। कम लागत में बेहतर उत्पाद के लिए चाईनीज प्रजाति बेहतर साबित हो रही है.Body:$क्या है, चाईनीज लीची की विशेषता ?$

यहां के लोगों में चाईनीज लीची नगदी फसल के रुप धूम मचा रही है. यहां इसकी जबरदस्त मांग है. इसका जायका और पैदावार अन्य प्रजातियों से बेहतर होता है. इस प्रजाति के लीची में गर्म हवा, मिट्टी में नमी के आभाव, फली फटने आदि समस्याओं से प्रतिरोधक होती है. इस प्रजाति का फल जून के अन्तिम माह तक पक कर तैयार होता है. इसका अण्डाकार आकार और रंग सुर्ख लाल होता है. इसकी सबसे बड़ी खासियत जो है वो यह है कि फस के अन्दरुनी भाग में कीड़े लगने की संभाना कम होता है.

&शाही प्रजाति लीची का खट्टा मीठा होता है स्वाद&

शाही ब्राईटी की लीची अगैती फलस है. पूरी उत्तर प्रदेश और विहार के लिए महत्वपूर्ण प्रजाति मानी जाती है. इसका पैदवार 80 से100 किलो प्रति वृक्ष होता है। गोरखपुर की मृदा व मौसम के लिए उपयुक्त है. लेकिन धूप लगने से इसका छिलका जल कर काला हो पड़ जाता है. फसल पकने पर गहरा लाल और पीले रंग का हो जाता है. फली का रंग इसके लिए मायने नही रखा फली हरा हो चाहे पीला लेकिन इसका स्वाद खट्टा मीठा होता है.

&चाईनीज लीची का बाजार में मिलता है बेहतर भाग&

किसान बताते है कि चाईनीज ब्राईटी की लीची का बाजार में बढिया भाव मिलता है. जब इसकी फली लगती है तो टोंड़ पतला होता है जैसे जैसे इसमें गुद्दा पडने लगता है ये भी पूरी रह गोल अण्डाकार हो जाता है. इसकी ब्राईटी शाही से बेहतर होती है. इसका रंग सुर्ख लाल होता है. पछेती ब्राईटी होने के कारण बाजारों सबसे बाद तक उपलब्ध रहती है और भाव भी इसका बेहतर मिलता है.

किसान बेगु निषाद बताते है चाईनीज लीची की पिछले वर्ष पैदावार बेहर होने के नाते इस वर्ष फल लगने के आशार कम थे. लेकिस समय समय पर इसकी देखभाल तथा छिड़काव करने पर, पिछले वर्ष की तरह नही फिरभी बढ़िया पैदावार हुआ है. जब इसके पेड़ पर फल के गुच्छे बढने लगते है तो वजन बढने से इसकी डाली झूकने और टूटने लगती है। जिसके रोकथाम के लिए सपोट लगया जाता है ताकि पेड़ और फसल दोनो सुरक्षित रहें और अगले वर्ष उसमें और बेहतर फल लग सके.Conclusion:&चमगादड़ पंक्षी फलों पहूंचाते नुकसान है, बचाव के लिए लगाते है जाल&

फस तैयार होते ही चमगादड़ पंक्षी रातों में नुकसान पहूंचाने लगते है किसान बेगु निषाद बताते है कि एक चमगादड़ एक रात में करीब सौ फल को तोड़ कर उठा ले जाते हैं जिसके बचाव के लिए वृक्षों के चारो तरफ जाल लगाया जाता है। कुछ जाल से टकराते ही भाग निकलते है कुछ चमगादड़ जाल में फंस कर जान गवां देते है. वही दिन में भी बुलबुल, तोता, कौआ, आदि पंक्षी फलों को नुकसान पहूंचाते इसके चलते दिनभर भी रखवाली करनी पड़ती है.

&चाईनीज ब्राईटी का डेढ़ से दो कुन्टल पैदावार होता है&

चाईनीज ब्राईटी की पैदवार डेढ़ से दो कुन्तल प्रतियेक पेड़ पर होता है. तैयार फसल को व्यापरी बाग से ही नकद रकम देकर उठा ले जाते है वर्तामान में इसका थोक भाव 70 रुपया किलो है. बाजार के ऐतबार से इसका भाव कम ज्यादा भी होता है. कभीकभार सौ रुपया किलो तक बिक जाता है. यह नगदी और मुनाफे का फसल है.

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