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डीडीयू मना रहा 66वीं वर्षगांठ, आजादी के बाद स्थापित होने वाला यूपी का पहला विश्वविद्यालय

गोरखपुर विश्वविद्यालय आज अपनी 66वीं वर्षगांठ मना रहा है. आजादी के बाद स्थापित होने वाला यह उत्तर प्रदेश का पहला विश्वविद्यालय है. गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ और कई बड़े समाजसेवी का अमूल्य योगदान रहा है.

gorakhpur university
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Published : May 1, 2023, 11:23 AM IST

Updated : May 1, 2023, 12:15 PM IST

डीडीयू के स्थापना की 66वीं वर्षगांठ

गोरखपुर: एक मई पूर्वांचल में शिक्षा के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक तिथि के रूप में स्थापित है. इसी दिन देश की आजादी के बाद उत्तर प्रदेश के पहले विश्वविद्यालय के रूप में जिस विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी, वह गोरखपुर विश्वविद्यालय था. तत्कालीन मुख्यमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने इसकी आधारशिला रखी थी. शिक्षा के इस सबसे बड़े केंद्र की स्थापना में सरकार के साथ स्थानीय कई बड़े समाजसेवी और तत्कालीन गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ का अमूल्य योगदान था. इन लोगों की बदौलत यह विश्वविद्यालय वर्ष 2023 में अपनी स्थापना की 66वीं वर्षगांठ मना रहा है.

शिक्षा के क्षेत्र से इसने कई बड़ी हस्तियों को जहां देश दुनिया में स्थापित किया, वहीं देश और प्रदेश की राजनीति दशा को भी तय करने वाले राजनेताओं की भी एक बड़ी पृष्ठभूमि बनी. इसका मौजूदा समय में बड़ा उदाहरण केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और हिमाचल के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला बड़े चेहरे के रूप में स्थापित हैं. केंद्रीय विश्वविद्यालय से लेकर प्रादेशिक विश्वविद्यालयों को भी इसने कई कुलपति दिए. उच्चतर सेवा आयोग के अध्यक्ष से लेकर विज्ञान और शोध के क्षेत्र में भी यहां के विद्यार्थियों ने अपना लोहा मनवाया.

अगस्त 1956 में यूपी विधानसभा से गोरखपुर विश्वविद्यालय अधिनियम पारित हुआ और 11 अप्रैल 1957 को इसके पहले कुलपति बीएन झा बने. इससे पहले गोरखपुर क्षेत्र के महाविद्यालय आगरा विश्वविद्यालय से सम्बद्ध थे. उद्घाटन के साथ ही पहली मई से यहां अध्यापन का कार्य शुरू हो गया. हालांकि, तब इसके पास अपना निजी भवन नहीं था. इसके लिए गोरखनाथ पीठ ने अपन बड़ा योगदान दिया. माना जाता है तत्कालीन महंत दिग्विजयनाथ ने विश्वविद्यालय के लिए महाराणा प्रताप महाविद्यालय और महाराणा प्रताप महिला महाविद्यालय के परिसर को दे दिया, जिससे यहां पर पढ़ाई शुरू हो गई.

महंत दिग्विजयनाथ के साथ सरदार मजीठिया और भाई हनुमान प्रसाद पोद्दार भी थे. विश्वविद्यालय की स्थापना समिति का जब गठन हुआ तो तत्कालीन जिलाधिकारी सुरति नारायण मणि त्रिपाठी को अध्यक्ष बनाया गया और परिषद के सदस्य के रूप में राय बहादुर मधुसूदन दास को महामंत्री की जिम्मेदारी मिली. महंत दिग्विजयनाथ और सरदार मजीठिया उपाध्यक्ष बने. इसके बाद सिविल लाइंस में 169 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई, जिस पर पंत जी के हाथों विश्वविद्यालय की नींव रखी गई.

गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व जनसंपर्क अधिकारी और विभागाध्यक्ष अंग्रेजी प्रोफेसर अजय शुक्ला कहते हैं कि वर्तमान में यह विश्वविद्यालय अपनी शैक्षणिक गुणवत्ता की वजह से यूजीसी के नैक ग्रेड डबल प्लस की श्रेणी का विश्वविद्यालय है. यह उपलब्धि पाने वाला राज्य का इकलौता विश्वविद्यालय है. यही नहीं देश में इस रैंकिंग का यह चौथा विश्वविद्यालय है. जहां पर मौजूदा समय में पढ़ाई के सभी मानकों को समय के साथ पूरा करते हुए विद्यार्थियों को व्यवसायिक कोर्सों से भी जोड़ने की पहल शुरू हुई है. इसके लिए 70 नए कोर्सेज विश्वविद्यालय ने शुरू किए हैं. इसमें विदेशी भाषाओं के ज्ञान की भी शिक्षा छात्रों को दी जा रही है. इंजीनियरिंग और कृषि इसकी नई उपलब्धियों में शामिल हैं.

शुरुआती दौर में इसके शिक्षकों में प्रोफ़ेसर यूपी सिंह, प्रोफेसर रामचंद्र तिवारी, प्रोफेसर सत्यम त्रिपाठी, प्रोफेसर सांता सिंह, प्रोफेसर नरसिंह श्रीवास्तव, मारकंडेय सिंह, प्रोफेसर गोरखनाथ सिंह, डॉक्टर उमेश, डॉक्टर भोलेन्दृ सिंह, डॉ पुष्पा नागपाल, बीबी सिंह जैसे लोग शामिल थे. उत्तर प्रदेश विधान परिषद के दो बार अध्यक्ष रहे माता प्रसाद पांडेय ने भी वर्ष 1960 में यहां से शिक्षा ली थी. वे राजनीति विज्ञान से पोस्ट ग्रेजुएट थे. ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने कहा कि तब विश्वविद्यालय अपने शैशव काल से धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था. लेकिन, मौजूदा समय में यह बहुत ऊंचाइयों को छू चुका है. इसके अनुरूप इसे अब तक केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिल जाना चाहिए था.

उन्होंने कहा कि विधानसभा के सदस्य के रूप में एक बार फिर सदन के अंदर इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाए जाने की पुरजोर वकालत करूंगा. यहां से पूर्व केंद्रीय मंत्री कल्पनाथ राय, मौजूदा विधान परिषद सदस्य देवेंद्र प्रताप सिंह, रतन पाल सिंह, पूर्व शिक्षा मंत्री डॉक्टर सतीश दिवेदी, पूर्व विधायक रविंद्र सिंह, पूर्व मंत्री जितेंद्र जयसवाल, पूर्व विधान परिषद के सभापति गणेश शंकर पांडेय बड़े चेहरे के रूप में जाने जाते हैं. लाल बहादुर शास्त्री केंद्रीय विश्वविद्यालय नई दिल्ली के कुलपति, दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक विवि जैसे कई विश्वविद्यालयों में यहां के प्रोफेसर वर्तमान में कुलपति के रूप में कार्य कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें: यूपी में छात्रवृत्ति घोटाला: हाइजिया एजुकेशन ग्रुप के संचालकों ने कई अधिकारियों के नाम किये उजागर

डीडीयू के स्थापना की 66वीं वर्षगांठ

गोरखपुर: एक मई पूर्वांचल में शिक्षा के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक तिथि के रूप में स्थापित है. इसी दिन देश की आजादी के बाद उत्तर प्रदेश के पहले विश्वविद्यालय के रूप में जिस विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी, वह गोरखपुर विश्वविद्यालय था. तत्कालीन मुख्यमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने इसकी आधारशिला रखी थी. शिक्षा के इस सबसे बड़े केंद्र की स्थापना में सरकार के साथ स्थानीय कई बड़े समाजसेवी और तत्कालीन गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ का अमूल्य योगदान था. इन लोगों की बदौलत यह विश्वविद्यालय वर्ष 2023 में अपनी स्थापना की 66वीं वर्षगांठ मना रहा है.

शिक्षा के क्षेत्र से इसने कई बड़ी हस्तियों को जहां देश दुनिया में स्थापित किया, वहीं देश और प्रदेश की राजनीति दशा को भी तय करने वाले राजनेताओं की भी एक बड़ी पृष्ठभूमि बनी. इसका मौजूदा समय में बड़ा उदाहरण केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और हिमाचल के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला बड़े चेहरे के रूप में स्थापित हैं. केंद्रीय विश्वविद्यालय से लेकर प्रादेशिक विश्वविद्यालयों को भी इसने कई कुलपति दिए. उच्चतर सेवा आयोग के अध्यक्ष से लेकर विज्ञान और शोध के क्षेत्र में भी यहां के विद्यार्थियों ने अपना लोहा मनवाया.

अगस्त 1956 में यूपी विधानसभा से गोरखपुर विश्वविद्यालय अधिनियम पारित हुआ और 11 अप्रैल 1957 को इसके पहले कुलपति बीएन झा बने. इससे पहले गोरखपुर क्षेत्र के महाविद्यालय आगरा विश्वविद्यालय से सम्बद्ध थे. उद्घाटन के साथ ही पहली मई से यहां अध्यापन का कार्य शुरू हो गया. हालांकि, तब इसके पास अपना निजी भवन नहीं था. इसके लिए गोरखनाथ पीठ ने अपन बड़ा योगदान दिया. माना जाता है तत्कालीन महंत दिग्विजयनाथ ने विश्वविद्यालय के लिए महाराणा प्रताप महाविद्यालय और महाराणा प्रताप महिला महाविद्यालय के परिसर को दे दिया, जिससे यहां पर पढ़ाई शुरू हो गई.

महंत दिग्विजयनाथ के साथ सरदार मजीठिया और भाई हनुमान प्रसाद पोद्दार भी थे. विश्वविद्यालय की स्थापना समिति का जब गठन हुआ तो तत्कालीन जिलाधिकारी सुरति नारायण मणि त्रिपाठी को अध्यक्ष बनाया गया और परिषद के सदस्य के रूप में राय बहादुर मधुसूदन दास को महामंत्री की जिम्मेदारी मिली. महंत दिग्विजयनाथ और सरदार मजीठिया उपाध्यक्ष बने. इसके बाद सिविल लाइंस में 169 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई, जिस पर पंत जी के हाथों विश्वविद्यालय की नींव रखी गई.

गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व जनसंपर्क अधिकारी और विभागाध्यक्ष अंग्रेजी प्रोफेसर अजय शुक्ला कहते हैं कि वर्तमान में यह विश्वविद्यालय अपनी शैक्षणिक गुणवत्ता की वजह से यूजीसी के नैक ग्रेड डबल प्लस की श्रेणी का विश्वविद्यालय है. यह उपलब्धि पाने वाला राज्य का इकलौता विश्वविद्यालय है. यही नहीं देश में इस रैंकिंग का यह चौथा विश्वविद्यालय है. जहां पर मौजूदा समय में पढ़ाई के सभी मानकों को समय के साथ पूरा करते हुए विद्यार्थियों को व्यवसायिक कोर्सों से भी जोड़ने की पहल शुरू हुई है. इसके लिए 70 नए कोर्सेज विश्वविद्यालय ने शुरू किए हैं. इसमें विदेशी भाषाओं के ज्ञान की भी शिक्षा छात्रों को दी जा रही है. इंजीनियरिंग और कृषि इसकी नई उपलब्धियों में शामिल हैं.

शुरुआती दौर में इसके शिक्षकों में प्रोफ़ेसर यूपी सिंह, प्रोफेसर रामचंद्र तिवारी, प्रोफेसर सत्यम त्रिपाठी, प्रोफेसर सांता सिंह, प्रोफेसर नरसिंह श्रीवास्तव, मारकंडेय सिंह, प्रोफेसर गोरखनाथ सिंह, डॉक्टर उमेश, डॉक्टर भोलेन्दृ सिंह, डॉ पुष्पा नागपाल, बीबी सिंह जैसे लोग शामिल थे. उत्तर प्रदेश विधान परिषद के दो बार अध्यक्ष रहे माता प्रसाद पांडेय ने भी वर्ष 1960 में यहां से शिक्षा ली थी. वे राजनीति विज्ञान से पोस्ट ग्रेजुएट थे. ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने कहा कि तब विश्वविद्यालय अपने शैशव काल से धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था. लेकिन, मौजूदा समय में यह बहुत ऊंचाइयों को छू चुका है. इसके अनुरूप इसे अब तक केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिल जाना चाहिए था.

उन्होंने कहा कि विधानसभा के सदस्य के रूप में एक बार फिर सदन के अंदर इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाए जाने की पुरजोर वकालत करूंगा. यहां से पूर्व केंद्रीय मंत्री कल्पनाथ राय, मौजूदा विधान परिषद सदस्य देवेंद्र प्रताप सिंह, रतन पाल सिंह, पूर्व शिक्षा मंत्री डॉक्टर सतीश दिवेदी, पूर्व विधायक रविंद्र सिंह, पूर्व मंत्री जितेंद्र जयसवाल, पूर्व विधान परिषद के सभापति गणेश शंकर पांडेय बड़े चेहरे के रूप में जाने जाते हैं. लाल बहादुर शास्त्री केंद्रीय विश्वविद्यालय नई दिल्ली के कुलपति, दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक विवि जैसे कई विश्वविद्यालयों में यहां के प्रोफेसर वर्तमान में कुलपति के रूप में कार्य कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें: यूपी में छात्रवृत्ति घोटाला: हाइजिया एजुकेशन ग्रुप के संचालकों ने कई अधिकारियों के नाम किये उजागर

Last Updated : May 1, 2023, 12:15 PM IST
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