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टेराकोटा क्राफ्ट को मिला जीआई टैग, दुनिया में धूम मचाने को तैयार गोरखपुर

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Published : May 16, 2020, 8:09 PM IST

यूपी के गोरखपुर जिले के टेराकोटा क्राफ्ट को जीआई टैग मिल गया है. हाल ही में मिले जीआई टैग के बाद टेराकोटा क्राफ्ट को कानूनी तौर पर वैश्विक पहचान मिल सकेगी. इसके साथ ही टेराकोटा क्राफ्ट को बौद्धिक सम्पदा का अधिकार भी हासिल हुआ, जिससे इसकी नकल करना अपराध की श्रेणी में आएगा. इससे यहां के शिल्पकारों में खुशी की लहर है.

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टेराकोटा क्राफ्ट को मिला जीआई टैग.

गोरखपुरः जिले के टेराकोटा क्राफ्ट को अब दुनिया में पहचान मिलने वाली है. यहां के दस्तकारों ने अपनी कारीगरी के दम पर एक नई पहचान विश्व पटल पर छोड़ दी है. पिछले दिनों ही टेराकोटा क्राफ्ट को चेन्नई जीआई रजिस्ट्री कार्यालय ने दूनियाभर में मशहूर दस्तकारी को जीआई पंजीकरण संख्या 619 के साथ गोरखपुर को 21वें दर्जे के अन्तर्गत पंजीकृत कर लिया गया. इसके साथ ही टेराकोटा क्राफ्ट को बौद्धिक संपदा का अधिकार भी हासिल हो गया है. अब इसकी कॉपी करना कानूनी अपराध की श्रेणी में आएगा.

टेराकोटा क्राफ्ट को मिला जीआई टैग.

क्या है जीआई टैग
जीआई टैग उसी उत्पाद को दिया जाता है जो किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में पैदा होता है, या बनता है और उसकी विशेषताओं का उस स्थान से संबंध होता है.

कड़ी मेहनत का मिला श्रेय
बता दें कि दस्तकारों ने अपने हुनर के बलबूते दुनिया भर में गोरखपुर को खास पहचान दिलाई है. इनके हाथ से बनी कलाकृतियों पर काबिस मिट्टी का प्रकृतिक रंग बेहद रोचक और आकर्षक बना देता है. शिल्पकारों के हुनर का डंका सात समंदर पार गोरों के बीच सदियों से बजता रहा है. दशकों पहले यहां से मिट्टी ले जाकर विदेशों में कुम्हार ने अपने हुनर का लोहा मनवाया है.

इन गांवों के शिल्पकार मिट्टी देते हैं आकार
जनपद के औरंगाबाद, लगड़ी, गुलरिहा, हाफिजनगर, बूढ़ाडिह, जंगल एकला नंबर दो, सहित दर्जनों गांव में दस्तकारों का पुस्तैनी कला मिट्टी को आकार देना है. इन कलाकृतियों को बेच कर अपने पेट की आग बुझाते है. कुम्हार जाति के दर्जनों परिवार का आय का मुख्य श्रोत इनकी नक्काशी है.

दुनिया भर में मिलेगी पहचान
दुनिया भर में गोरखपुर को पहचान दिलाने वाले कारीगर योगी सरकार से पहले उपेक्षा का शिकार थे. प्रदेश की कमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संभालते ही इनके दिन बहुरने लगे. जनवरी 2018 में टेराकोटा को 'एक जनपद एक उत्पाद' के तहत शामिल किया गया. तब दस्तकारों को सहुलियत भी मिलने लगी. इलेक्ट्रॉनिक चाक, आधुनिक पग मील और आधुनिक परमपरागत भट्टी के साथ अनुभवी डिजाइनरों से डिजाइनिंग, टेनरों से पैकेजिंग की ट्रेनिंग भी मिलने लगी.

इसे भी पढ़ें- गोरखपुर: लीची की मिठास पर कोरोना की नजर, दवा न मिलने से बागवानी पर असर

जीआई विशेषज्ञ ने ट्वीट करके दी जानकारी
पद्म श्री सम्मानित जिला विकास प्रबंधक नबार्डा और जीआई विशेषज्ञ डॉ. रजनीकांत ने ट्वीटर हैण्डल पर ट्वीट कर बधाई देते हुऐ जानकारी दी. जीआई पंजीकरण के लिए लगभग 2 वर्ष पूर्व सितंबर 2018 में नाबार्ड और ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन के दिशा निर्देश में जिला उद्योग केंद्र के मदद से संस्था लक्ष्मी टेराकोटा मूर्ति कला केंद्र ने आवेदन किया था. चेन्नई स्थित जीआई रजिस्ट्री कार्यालय ने दुनियाभर में मशहूर दस्तकारी को जीआई पंजीकरण संख्या 619 के साथ दर्जा 21 के अन्तर्गत पंजीकृत कर लिया गया. टेराकोटा क्राफ्ट गोरखपुर जनपद का पहला जीआई पंजीकृत उत्पाद बन गया है.

रोजगार को मिलेगा बढ़ावा
लक्ष्मी स्वंय सहायता समूह के महसचिव मोहन लाल प्रजाति बताते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सरहानीय प्रयास से जीआई टैग और बौद्धिक संपदा का अधिकार प्राप्त होने से हमारे कला को विश्व स्तरीय पहचान मिली है. हमारे क्राफ्ट को पूरी दुनिया में गोरखपुर के टेराकोटा के नाम जाना और पहचान जाएगा. रोजगार क्षेत्र में सर्वाधिक बढ़ोतरी होगी. इससे जुड़े लोगों के दिन बहुरेंगे.

गोरखपुरः जिले के टेराकोटा क्राफ्ट को अब दुनिया में पहचान मिलने वाली है. यहां के दस्तकारों ने अपनी कारीगरी के दम पर एक नई पहचान विश्व पटल पर छोड़ दी है. पिछले दिनों ही टेराकोटा क्राफ्ट को चेन्नई जीआई रजिस्ट्री कार्यालय ने दूनियाभर में मशहूर दस्तकारी को जीआई पंजीकरण संख्या 619 के साथ गोरखपुर को 21वें दर्जे के अन्तर्गत पंजीकृत कर लिया गया. इसके साथ ही टेराकोटा क्राफ्ट को बौद्धिक संपदा का अधिकार भी हासिल हो गया है. अब इसकी कॉपी करना कानूनी अपराध की श्रेणी में आएगा.

टेराकोटा क्राफ्ट को मिला जीआई टैग.

क्या है जीआई टैग
जीआई टैग उसी उत्पाद को दिया जाता है जो किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में पैदा होता है, या बनता है और उसकी विशेषताओं का उस स्थान से संबंध होता है.

कड़ी मेहनत का मिला श्रेय
बता दें कि दस्तकारों ने अपने हुनर के बलबूते दुनिया भर में गोरखपुर को खास पहचान दिलाई है. इनके हाथ से बनी कलाकृतियों पर काबिस मिट्टी का प्रकृतिक रंग बेहद रोचक और आकर्षक बना देता है. शिल्पकारों के हुनर का डंका सात समंदर पार गोरों के बीच सदियों से बजता रहा है. दशकों पहले यहां से मिट्टी ले जाकर विदेशों में कुम्हार ने अपने हुनर का लोहा मनवाया है.

इन गांवों के शिल्पकार मिट्टी देते हैं आकार
जनपद के औरंगाबाद, लगड़ी, गुलरिहा, हाफिजनगर, बूढ़ाडिह, जंगल एकला नंबर दो, सहित दर्जनों गांव में दस्तकारों का पुस्तैनी कला मिट्टी को आकार देना है. इन कलाकृतियों को बेच कर अपने पेट की आग बुझाते है. कुम्हार जाति के दर्जनों परिवार का आय का मुख्य श्रोत इनकी नक्काशी है.

दुनिया भर में मिलेगी पहचान
दुनिया भर में गोरखपुर को पहचान दिलाने वाले कारीगर योगी सरकार से पहले उपेक्षा का शिकार थे. प्रदेश की कमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संभालते ही इनके दिन बहुरने लगे. जनवरी 2018 में टेराकोटा को 'एक जनपद एक उत्पाद' के तहत शामिल किया गया. तब दस्तकारों को सहुलियत भी मिलने लगी. इलेक्ट्रॉनिक चाक, आधुनिक पग मील और आधुनिक परमपरागत भट्टी के साथ अनुभवी डिजाइनरों से डिजाइनिंग, टेनरों से पैकेजिंग की ट्रेनिंग भी मिलने लगी.

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जीआई विशेषज्ञ ने ट्वीट करके दी जानकारी
पद्म श्री सम्मानित जिला विकास प्रबंधक नबार्डा और जीआई विशेषज्ञ डॉ. रजनीकांत ने ट्वीटर हैण्डल पर ट्वीट कर बधाई देते हुऐ जानकारी दी. जीआई पंजीकरण के लिए लगभग 2 वर्ष पूर्व सितंबर 2018 में नाबार्ड और ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन के दिशा निर्देश में जिला उद्योग केंद्र के मदद से संस्था लक्ष्मी टेराकोटा मूर्ति कला केंद्र ने आवेदन किया था. चेन्नई स्थित जीआई रजिस्ट्री कार्यालय ने दुनियाभर में मशहूर दस्तकारी को जीआई पंजीकरण संख्या 619 के साथ दर्जा 21 के अन्तर्गत पंजीकृत कर लिया गया. टेराकोटा क्राफ्ट गोरखपुर जनपद का पहला जीआई पंजीकृत उत्पाद बन गया है.

रोजगार को मिलेगा बढ़ावा
लक्ष्मी स्वंय सहायता समूह के महसचिव मोहन लाल प्रजाति बताते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सरहानीय प्रयास से जीआई टैग और बौद्धिक संपदा का अधिकार प्राप्त होने से हमारे कला को विश्व स्तरीय पहचान मिली है. हमारे क्राफ्ट को पूरी दुनिया में गोरखपुर के टेराकोटा के नाम जाना और पहचान जाएगा. रोजगार क्षेत्र में सर्वाधिक बढ़ोतरी होगी. इससे जुड़े लोगों के दिन बहुरेंगे.

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