गोरखपुर: प्रदेश के अन्य जिलों में शिक्षा व्यवस्था की हालत जैसी भी हो. लेकिन, गोरखपुर में इस व्यवस्था में बड़ी लापरवाही देखने को मिल रही है. एक तरफ सरकार और निर्वाचन आयोग सांसद-विधायक की रिक्त सीट होते ही 6 महीने के अंदर भरने में जुट जाते हैं. लेकिन, बात सीएम सिटी के जिले की करें तो करीब आठ से 10 वर्षों से प्रधानाचार्य के पद एक दो नहीं, बल्कि 80 से अधिक खाली हैं और सरकार इसे भर नहीं पा रही. स्थानीय स्तर से शासन को पत्राचार हो रहा है. मामला कोर्ट तक पहुंच रहा है. कोर्ट की फटकार भी लग रही है. बावजूद इसके सरकार का इसमें सुधि न लेना शिक्षा के साथ खिलवाड़ जैसा ही दिखाई देता है.
जिले के 68 अशासकीय एडेड और 12 राजकीय माध्यमिक विद्यालय कार्यवाहक प्रधानाचार्य के भरोसे संचालित हो रहे हैं. वर्षों से प्रधानाचार्य पद पर भर्ती पूरी न होने और आयोग से स्थायी प्रधानाचार्य की नियुक्ति नहीं किए जाने से यह स्थिति बनी है. हालांकि, विभाग समय-समय पर रिक्त पदों की सूचना शासन और शिक्षा मुख्यालय भेजता है, बावजूद इसके नतीजा सिफर है. जबकि, यह माना जाता है कि प्रधानाचार्य की क्रियाशीलता और सक्रियता ही विद्यालय की दिशा और दशा तय करती है. लेकिन, जिले में विद्यार्थियों के विकास की राह में स्थायी प्रधानाचार्य की कमी ही आड़े आ रही है. जिले के सरकारी, माध्यमिक स्कूलों में प्रधानाचार्य और प्रधानाध्यापकों की वर्षों से कमी बनी हुई है. बावजूद इसके स्थानीय स्तर से लेकर शासन स्तर तक इसको भरने की कोई प्रक्रिया पूरी नहीं की जा रही.
इस संबंध में ईटीवी भारत ने जिला विद्यालय निरीक्षक ज्ञानेंद्र सिंह भदोरिया से उनके कार्यालय जाकर संपर्क करने की कोशिश की तो वह स्कूलों से जुड़े मामलों में प्रयागराज हाईकोर्ट पैरवी करने के लिए गए हुए थे. लेकिन, बातचीत में उन्होंने इस विषय पर कहा कि शासन को समय-समय पर प्रधानाचार्य और अध्यापकों के रिक्त पदों की सूचना भेजी जाती है. आयोग से चयनित होने पर विभाग द्वारा उनका पदस्थापन किया जाता है. इधर, वर्षों से आयोग से प्रधानाचार्य का चयन न होने से पद रिक्त हैं. इस बार चयन प्रक्रिया पूरी हो रही है. पदस्थापन की प्रक्रिया को गतिमान बनाया जाएगा. वहीं, शिक्षक संघ के नेता डॉक्टर रामनरेश सिंह ने कहा कि प्रधानाचार्य का पद रिक्त रखना स्कूल की शैक्षिक व्यवस्था को प्रभावित करता है. पठन-पाठन में शिक्षक रुचि नहीं लेते हैं. इसे भरा जाना नितांत आवश्यक है. न जाने सरकार इस प्रक्रिया को पूरी करने में क्यों देर कर रही है.
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कई मामलों में तो हाईकोर्ट की फटकार जिला विद्यालय निरीक्षक से लेकर शासन तक को भी लग चुकी है. लेकिन, एक दो नहीं बल्कि सात आठ बरसों से ऐसे पद खाली पड़े हैं. बात करें तो जिले के 9 राजकीय इंटर कॉलेज में 8 पद प्रधानाचार्य के रिक्त हैं. 15 राजकीय हाईस्कूल में 5 पद रिक्त हैं. इसी प्रकार 110 अशासकीय विद्यालय में 68 पदों पर प्रधानाचार्य की स्थायी नियुक्ति नहीं है जो इस बात की ओर इशारा करती है कि निश्चित रूप से शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए जिम्मेदार लोग और शासन की प्रक्रिया इसके प्रति गंभीर नहीं है. जबकि, कई ऐसे मामले हैं जिसमें सरकार और संस्थाएं बिना देरी किए हुए समय से नियुक्ति, चयन और निर्वाचन को पूरा करती हैं. शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण संस्थान में प्रधानाचार्य की स्थायी नियुक्ति नहीं करना विद्यालयों की व्यवस्था और छात्रों के भविष्य के साथ बड़ा खिलवाड़ है.