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डेड बॉडी ठिकाने लगाने का सेफ जोन बना गोरखपुर, साल दर साल के आंकड़े दे रहे गवाही

गोरखपुर अज्ञात लाशों को ठिकाने लगाने का बड़ा अड्डा बनता जा रहा है. इस साल भी यह आंकड़ा सौ के पार है. साल 2022 में शहर में 270 से ज्यादा अज्ञात लाशें मिली थी. इस लावारिश शवों की पहचान न होने पर इनके अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी पुलिस पर आ जाती है.

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Published : Jul 8, 2023, 4:44 PM IST

गोरखपुर: साल 1980 के दशक में गोरखपुर शहर अपराध और अपराधियों के कारनामे से अमेरिका तक जाना जाता था. समय के साथ यहां बहुत कुछ बदला है. लेकिन मौजूद समय में यह शहर अज्ञात लाशों को ठिकाने लगाने का बड़ा अड्डा बनता जा रहा है. इस बात की गवाही पुलिस के रिकॉर्ड दे रहे हैं. साल 2022 में 270 से ज्यादा लाशें यहां मिलीं थी. वहीं, इस साल भी यह आंकड़ा सौ को पार करने वाला है.

कुछ लाशों की तो पहचान भी नहीं हो पाती है, जिससे यह पुलिस के लिए सिर दर्द बना रहता है. पुलिस को ही मिले अज्ञात शवों का अंतिम संस्कार भी करना व कराना पड़ता है. अंतिम संस्कार के लिए जो पैसे मिलते हैं, वह भी इस कार्य के लिए नाकाफी होते हैं. ऐसे में इन लाशों की दुर्दशा भी होती है. पुलिस मिली अज्ञात लाशों का पता लगाने के लिए रेलवे और बस स्टेशन पर इनकी फोटो भी चस्पा करती है. लेकिन सफलता मिलनी बहुत मुश्किल होती है. जिलों के थानों, रेडियों और दूरदर्शन की मदद भी लाशों की शिनाख्त में बेकार ही जाती है.

पुलिस विभाग के आंकड़ों के वर्ष 2022 में करीब 400 बॉडी मिली है, जिसमें 241 अज्ञात हैं. पुलिस इन लावारिश मिली लाशों की शिनाख्त करने में नाकाम रहती है. समय बीतने के साथ इधर-उधर मिली अज्ञात बॉडी फाइलों में ही दफन हो जाती है. खोजबीन के बाद जब अज्ञात बॉडी से संबंधित कोई जानकारी नहीं मिलती तो इनका अंतिम संस्कार पुलिस को करना या कराना पड़ता है.

सूत्रों की मानें तो शवों के अंतिम संस्कार के लिए महज 15 सौ से 2000 रुपए शासन से मिलने का प्रावधान है. इतने रुपयों में सब कुछ कर पाना संभव नहीं है. एसपी नार्थ मनोज कुमार अवस्थी कहते हैं कि अज्ञात बॉडी का पता लगाने के लिए, रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन जैसे स्थान पर उसकी फोटो चस्पा की जाती है. डीसीआरबी के माध्यम से सभी जिलों के थानों पर भी इसकी डिटेल भेजी जाती है. फिर भी पता नहीं लगता है तो अंतिम संस्कार करना ही विकल्प होता है.

गोरखपुर में राष्ट्रीय गरीब कल्याण संघ नाम की संस्था लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार और गरीबों की मदद करती रहती है. क्षेत्र में जहां कहीं से भी इन्हें लावारिश लाश मिलने की सूचना मिलती है. टीम का कोई न कोई सदस्य वहां पहुंच जाता है. अब तक 40 लाशों को मॉर्चरी भिजवाने और अज्ञात शवों का दाह संस्कार के लिए भी नकद रुपये देकर यह स्थानीय पुलिस की मदद कर चुके हैं. उनके इस कार्य को समाज और पुलिस से सराहना भी मिलती है.

वहीं, बस्ती मंडल में मिली लावारिश डेड बॉडी की बात करें, तो महाराजगंज में सबसे कम 8 और बस्ती में 86, कुशीनगर में 12, संत कबीर नगर में 14, सिद्धार्थनगर में 22, देवरिया में 31 और गोरखपुर में 240 का आंकड़ा रहा है. अकेले गोरखपुर की बात करें तो यहां वर्ष 2022 में सबसे अधिक बॉडी जून और जुलाई माह में मिली, जिनकी संख्या 32-32 थी. मार्च में 17 अप्रैल में 16 तो, मई में 26 लाशे मिली थी. फरवरी में इसकी संख्या 20, जनवरी में 14 थी. नवंबर और दिसंबर माह में कुल संख्या करीब 9 थी. वर्ष 2023 के अब तक के आंकड़े भी सैकड़ों में पहुंच रहे हैं, लेकिन प्रश्न वहीं खड़े हैं जो पहले भी थे. आखिर में यह लाशें गोरखपुर में विभिन्न स्थानों पर कैसे आ जाती है. इन्हे कौन यहां फेंक गेता है. इनकी मौत की वजह क्या रही, हत्या हुई तो क्यों हुई. यह सब सवाल अनछुए रह जाते हैं. क्योंकि बॉडी की पहचान नहीं हो पाती.

यह भी पढ़ें: गोरखपुर में महिला सुरक्षा का दावा हुआ तार-तार, 17 माह में उत्पीड़न के 900 केस दर्ज

गोरखपुर: साल 1980 के दशक में गोरखपुर शहर अपराध और अपराधियों के कारनामे से अमेरिका तक जाना जाता था. समय के साथ यहां बहुत कुछ बदला है. लेकिन मौजूद समय में यह शहर अज्ञात लाशों को ठिकाने लगाने का बड़ा अड्डा बनता जा रहा है. इस बात की गवाही पुलिस के रिकॉर्ड दे रहे हैं. साल 2022 में 270 से ज्यादा लाशें यहां मिलीं थी. वहीं, इस साल भी यह आंकड़ा सौ को पार करने वाला है.

कुछ लाशों की तो पहचान भी नहीं हो पाती है, जिससे यह पुलिस के लिए सिर दर्द बना रहता है. पुलिस को ही मिले अज्ञात शवों का अंतिम संस्कार भी करना व कराना पड़ता है. अंतिम संस्कार के लिए जो पैसे मिलते हैं, वह भी इस कार्य के लिए नाकाफी होते हैं. ऐसे में इन लाशों की दुर्दशा भी होती है. पुलिस मिली अज्ञात लाशों का पता लगाने के लिए रेलवे और बस स्टेशन पर इनकी फोटो भी चस्पा करती है. लेकिन सफलता मिलनी बहुत मुश्किल होती है. जिलों के थानों, रेडियों और दूरदर्शन की मदद भी लाशों की शिनाख्त में बेकार ही जाती है.

पुलिस विभाग के आंकड़ों के वर्ष 2022 में करीब 400 बॉडी मिली है, जिसमें 241 अज्ञात हैं. पुलिस इन लावारिश मिली लाशों की शिनाख्त करने में नाकाम रहती है. समय बीतने के साथ इधर-उधर मिली अज्ञात बॉडी फाइलों में ही दफन हो जाती है. खोजबीन के बाद जब अज्ञात बॉडी से संबंधित कोई जानकारी नहीं मिलती तो इनका अंतिम संस्कार पुलिस को करना या कराना पड़ता है.

सूत्रों की मानें तो शवों के अंतिम संस्कार के लिए महज 15 सौ से 2000 रुपए शासन से मिलने का प्रावधान है. इतने रुपयों में सब कुछ कर पाना संभव नहीं है. एसपी नार्थ मनोज कुमार अवस्थी कहते हैं कि अज्ञात बॉडी का पता लगाने के लिए, रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन जैसे स्थान पर उसकी फोटो चस्पा की जाती है. डीसीआरबी के माध्यम से सभी जिलों के थानों पर भी इसकी डिटेल भेजी जाती है. फिर भी पता नहीं लगता है तो अंतिम संस्कार करना ही विकल्प होता है.

गोरखपुर में राष्ट्रीय गरीब कल्याण संघ नाम की संस्था लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार और गरीबों की मदद करती रहती है. क्षेत्र में जहां कहीं से भी इन्हें लावारिश लाश मिलने की सूचना मिलती है. टीम का कोई न कोई सदस्य वहां पहुंच जाता है. अब तक 40 लाशों को मॉर्चरी भिजवाने और अज्ञात शवों का दाह संस्कार के लिए भी नकद रुपये देकर यह स्थानीय पुलिस की मदद कर चुके हैं. उनके इस कार्य को समाज और पुलिस से सराहना भी मिलती है.

वहीं, बस्ती मंडल में मिली लावारिश डेड बॉडी की बात करें, तो महाराजगंज में सबसे कम 8 और बस्ती में 86, कुशीनगर में 12, संत कबीर नगर में 14, सिद्धार्थनगर में 22, देवरिया में 31 और गोरखपुर में 240 का आंकड़ा रहा है. अकेले गोरखपुर की बात करें तो यहां वर्ष 2022 में सबसे अधिक बॉडी जून और जुलाई माह में मिली, जिनकी संख्या 32-32 थी. मार्च में 17 अप्रैल में 16 तो, मई में 26 लाशे मिली थी. फरवरी में इसकी संख्या 20, जनवरी में 14 थी. नवंबर और दिसंबर माह में कुल संख्या करीब 9 थी. वर्ष 2023 के अब तक के आंकड़े भी सैकड़ों में पहुंच रहे हैं, लेकिन प्रश्न वहीं खड़े हैं जो पहले भी थे. आखिर में यह लाशें गोरखपुर में विभिन्न स्थानों पर कैसे आ जाती है. इन्हे कौन यहां फेंक गेता है. इनकी मौत की वजह क्या रही, हत्या हुई तो क्यों हुई. यह सब सवाल अनछुए रह जाते हैं. क्योंकि बॉडी की पहचान नहीं हो पाती.

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