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गोरखपुर एम्स प्राकृतिक चिकित्सा शुरू, लाइफस्टाइल और क्रॉनिक बीमारियों का होगा कारगर इलाज

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Published : Jul 11, 2023, 10:37 PM IST

गोरखपुर एम्स की डायरेक्टर डॉक्टर सुरेखा किशोर ने कहा कि प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्र में गोरखपुर के विश्व प्रसिद्ध केंद्र आरोग्य मंदिर के साथ एक एमओयू साइन हुआ है. जो आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा से रोगों के निदान के लिए बड़ी पहल साबित होगी.

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी
जानकारी देती गोरखपुर एम्स की डायरेक्टर डॉक्टर सुरेखा किशोर

गोरखपुरः एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी) चिकित्सा और चिकित्सा शोध के क्षेत्र का भारत का सबसे बड़ा संस्थान है. इसकी गोरखपुर इकाई देश की ऐसी पहली इकाई बन गई है, जहां पर आयुर्वेद विधि से उपचार शुरू कर दिया गया है. इसके साथ ही इसे प्राकृतिक चिकित्सा के साथ भी जोड़ा गया है. यहां अब यह भी जानने की कोशिश की जाएगी कि एलोपैथी के साथ-साथ आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा विधि का प्रयोग कितना कारगर है.

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ने आरोग्य मंदिर के साथ एमओयू साइन किया.

गौरतलब है कि एम्स में एलोपैथी से उपचार तो जारी है, लेकिन अब आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा से भी रोगों के निदान की बड़ी पहल होगी. एम्स की कार्यकारी निदेशक डॉक्टर सुरेखा किशोर ने कहा, 'प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्र में गोरखपुर के विश्व प्रसिद्ध केंद्र, आरोग्य मंदिर के साथ एक एमओयू साइन हुआ है. यह चिकित्सा मानव जीवन को निरोगी काया तो देती ही है, जीवन में कई तरह के और भी बदलाव का एहसास कराती है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी प्राकृतिक चिकित्सा को अपनाने पर जोर देते हैं. गोरखपुर एम्स इस विधा में बड़े शोध परिणाम लाकर लोगों को इससे जोड़ने की कोशिश करेगा. इसमें धूप, मिट्टी, पानी, हवा और योग उपचार आधार बनेगा. यहां पंचकर्म कक्ष की स्थापना हो गई है, जो शरीर के विषाक्त पदार्थ को बाहर निकालने की आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति है.'

उन्होंने आगे कहा कि नेचुरोपैथी को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा मिले, इसके लिए एम्स गोरखपुर, एकेडमिक कोर्सेज, पेशेंट केयर और मैनेजमेंट, रिसर्च पर काम होगा. इससे सिर्फ मरीज ही नहीं नॉर्मल लोग भी अपनी बीमारियों की रोकथाम कर सकते हैं. अगर बीमारियां हो गई है तो किस तरीके से उनको दूर किया जा सके, इसका लोगों को ज्ञान कराया जाएगा.

डॉक्टर सुरेखा किशोर ने बताया कि एक एक्यूट कंडीशन और सर्जिकल मामले तो नहीं लेकिन जहां पर लाइफ स्टाइल ऑफ क्रॉनिक बीमारियां होती हैं वहां पर प्राकृतिक चिकित्सा बड़ी कारगर सिद्ध होगी. उदाहरण के तौर पर जैसे हल्दी के बारे में तो सभी जानते हैं. लेकिन, रिसर्च के बाद उसके जो परिणाम सामने आए वह लोगों के जीवन में कई तरह से बदलाव लाएं. इसी प्रकार एलोवेरा आदि हैं. ऐसे में अगर हम प्राकृतिक चिकित्सा के शोध को आगे बढ़ाएंगे तो दुनिया में हमारी इस धरोहर को बाकी लोग भी जानेंगे.

एम्स की कार्यकारी निदेशक के अनुसार, एम्स में प्राकृतिक चिकित्सा में एक्यूप्रेशर की ओपीडी संचालित हो गई है. बाकी अन्य पद्धति के लिए आरोग्य मंदिर से करार इसे आगे बढ़ाएगा. नए प्रयोगों से तीनों पद्धतियों के सम्मिलित उपचार से रोगियों को कितना लाभ होगा देखा जाएगा। जिसके आधार पर भविष्य में उपचार की नई पद्धति विकसित होगी. उन्होंने बताया कि पंचकर्म से वमन यानी कि रोगी को उल्टी कराई जाती है, तो विरेचन, मल त्याग की प्रक्रिया है. नाक के माध्यम से औषधि दी जाने की प्रक्रिया नस्य कही जाती है. तो, अनुवासनावस्ती से तेल-घी आदि तरल पदार्थों को मलाशाय तक पहुंचाया जाता है. इसी प्रकार रक्तमोक्षण प्रकिया से शरीर के खून को साफ किया जाता है.

ये भी पढ़ेंः योग थैरेपी से स्तन कैंसर से पीड़ित महिलाओं को मिला आराम, विशेषज्ञ अब इस पद्धति पर कर रहे काम

जानकारी देती गोरखपुर एम्स की डायरेक्टर डॉक्टर सुरेखा किशोर

गोरखपुरः एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी) चिकित्सा और चिकित्सा शोध के क्षेत्र का भारत का सबसे बड़ा संस्थान है. इसकी गोरखपुर इकाई देश की ऐसी पहली इकाई बन गई है, जहां पर आयुर्वेद विधि से उपचार शुरू कर दिया गया है. इसके साथ ही इसे प्राकृतिक चिकित्सा के साथ भी जोड़ा गया है. यहां अब यह भी जानने की कोशिश की जाएगी कि एलोपैथी के साथ-साथ आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा विधि का प्रयोग कितना कारगर है.

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ने आरोग्य मंदिर के साथ एमओयू साइन किया.

गौरतलब है कि एम्स में एलोपैथी से उपचार तो जारी है, लेकिन अब आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा से भी रोगों के निदान की बड़ी पहल होगी. एम्स की कार्यकारी निदेशक डॉक्टर सुरेखा किशोर ने कहा, 'प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्र में गोरखपुर के विश्व प्रसिद्ध केंद्र, आरोग्य मंदिर के साथ एक एमओयू साइन हुआ है. यह चिकित्सा मानव जीवन को निरोगी काया तो देती ही है, जीवन में कई तरह के और भी बदलाव का एहसास कराती है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी प्राकृतिक चिकित्सा को अपनाने पर जोर देते हैं. गोरखपुर एम्स इस विधा में बड़े शोध परिणाम लाकर लोगों को इससे जोड़ने की कोशिश करेगा. इसमें धूप, मिट्टी, पानी, हवा और योग उपचार आधार बनेगा. यहां पंचकर्म कक्ष की स्थापना हो गई है, जो शरीर के विषाक्त पदार्थ को बाहर निकालने की आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति है.'

उन्होंने आगे कहा कि नेचुरोपैथी को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा मिले, इसके लिए एम्स गोरखपुर, एकेडमिक कोर्सेज, पेशेंट केयर और मैनेजमेंट, रिसर्च पर काम होगा. इससे सिर्फ मरीज ही नहीं नॉर्मल लोग भी अपनी बीमारियों की रोकथाम कर सकते हैं. अगर बीमारियां हो गई है तो किस तरीके से उनको दूर किया जा सके, इसका लोगों को ज्ञान कराया जाएगा.

डॉक्टर सुरेखा किशोर ने बताया कि एक एक्यूट कंडीशन और सर्जिकल मामले तो नहीं लेकिन जहां पर लाइफ स्टाइल ऑफ क्रॉनिक बीमारियां होती हैं वहां पर प्राकृतिक चिकित्सा बड़ी कारगर सिद्ध होगी. उदाहरण के तौर पर जैसे हल्दी के बारे में तो सभी जानते हैं. लेकिन, रिसर्च के बाद उसके जो परिणाम सामने आए वह लोगों के जीवन में कई तरह से बदलाव लाएं. इसी प्रकार एलोवेरा आदि हैं. ऐसे में अगर हम प्राकृतिक चिकित्सा के शोध को आगे बढ़ाएंगे तो दुनिया में हमारी इस धरोहर को बाकी लोग भी जानेंगे.

एम्स की कार्यकारी निदेशक के अनुसार, एम्स में प्राकृतिक चिकित्सा में एक्यूप्रेशर की ओपीडी संचालित हो गई है. बाकी अन्य पद्धति के लिए आरोग्य मंदिर से करार इसे आगे बढ़ाएगा. नए प्रयोगों से तीनों पद्धतियों के सम्मिलित उपचार से रोगियों को कितना लाभ होगा देखा जाएगा। जिसके आधार पर भविष्य में उपचार की नई पद्धति विकसित होगी. उन्होंने बताया कि पंचकर्म से वमन यानी कि रोगी को उल्टी कराई जाती है, तो विरेचन, मल त्याग की प्रक्रिया है. नाक के माध्यम से औषधि दी जाने की प्रक्रिया नस्य कही जाती है. तो, अनुवासनावस्ती से तेल-घी आदि तरल पदार्थों को मलाशाय तक पहुंचाया जाता है. इसी प्रकार रक्तमोक्षण प्रकिया से शरीर के खून को साफ किया जाता है.

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