ETV Bharat / state

70 करोड़ से अधिक धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन कर चुकी है 'गीता प्रेस' - geeta press published many religious books

यूपी के गोरखपुर जिले में 23 अप्रैल 1923 को गीता प्रेस की स्थापना हुई थी. आज भी यह मशीन गीता प्रेस परिसर में संरक्षित कर रखी गई है. गीता प्रेस की वजह से गोरखपुर को एक अलग पहचान मिली है.

etv bharat
गीता प्रेस की वजह से गोरखपुर को मिली पहचान
author img

By

Published : Mar 1, 2021, 4:59 PM IST

गोरखपुर: जिले के उर्दू बाजार स्थित गीता प्रेस की स्थापना 23 अप्रैल 1923 को हुई थी. इसकी स्थापना 10 रुपये प्रतिमाह के किराए के मकान में की गई थी. उसी दौरान कुछ टाइपिंग मशीन और पहली छपाई की मशीन बोस्टन से मंगाई गई थी, जिसने पहली श्रीमद्भागवत गीता की छपाई की थी. तभी से गीता प्रेस में प्रकाशन का कार्य प्रारंभ हुआ था. गीता प्रेस परिवार हमेशा ही अपने कार्यों के माध्यम से लोगों को संदेश देने का कार्य करता है.

गीता प्रेस की वजह से गोरखपुर को मिली पहचान

इसे भी पढ़े- नीता सिंह की 'काव्यस्पंदन' और 'काव्यमाला' किताब का विमोचन


'कार्य करने के पीछे दृढ़ इच्छाशक्ति होनी चाहिए'

गीता प्रेस के संस्थापक जयदयाल गोयंका ने गीता प्रेस की एक अलग पहचान स्थापित की. समाज में धर्म और संस्कृति के प्रचार-प्रसार को ध्यान में रखते हुए गीता प्रेस की स्थापना हुई थी. गीता प्रेस परिवार इस पहली छपाई मशीन को संरक्षित कर आमजन को यह संदेश देना चाहता है कि कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता. कार्य करने के पीछे दृढ़ इच्छाशक्ति होनी चाहिए. अगर दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ कार्य को प्रारंभ किया जाए तो समूचे विश्व में उसका नाम होता है. आज पूरे विश्व में गीता प्रेस अपने विभिन्न पुस्तकों के माध्यम से लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान कर रहा है.

गीता प्रेस की वजह से गोरखपुर को मिली पहचान

साल 1921 के आसपास गीता प्रेस के संस्थापक जयदयाल गोयंका ने कोलकाता में गोविंद भवन ट्रस्ट की स्थापना की थी. इसी ट्रस्ट के तहत वहीं से वह गीता का प्रकाशन कराते थे. पुस्तक में कोई गलती न हो इसके लिए पुस्तक को कई-कई बार संशोधन करना पड़ता था. प्रेस मालिक ने एक दिन कहा कि इतनी शुद्ध गीता प्रकाशित करनी है तो अपना प्रेस लगा लीजिए. यह बात गीता प्रेस के संस्थापक जयदयाल गोयंका को घर कर गई. उन्होंने इस कार्य के लिए गोरखपुर को चुना. 1923 में उर्दू बाजार में 10 रुपये महीने के किराए पर एक कमरा लिया गया. इसके बाद वहीं से गीता प्रकाशन को शुरू किया. धीरे-धीरे गीता प्रेस का निर्माण हुआ और इसकी वजह से पूरे विश्व में गोरखपुर को एक अलग पहचान मिली.

70 करोड़ से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन
दुनियाभर में धार्मिक पुस्तकों के लिए गीता प्रेस से अब तक 70 करोड़ से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है. इन पुस्तकों में सर्वाधिक संख्या 15.5 करोड़ श्रीमद्भागवत गीता की है. इसके अलावा रामचरितमानस, हनुमान चालीसा, दुर्गा सप्तशती, सुंदरकांड की पुस्तकों की संख्या भी करोड़ों में है.

23 अप्रैल 1923 को गीता प्रेस प्रकाशन की पुस्तकों को छापने के लिए पहली मशीन बोस्टन से मंगाई गई थी. आज भी यह मशीन गीता प्रेस परिसर में संरक्षित कर रखी गई है. मशीन यह संदेश देती है कि गीता प्रेस के क्या उद्देश्य थे. छोटी सी मशीन के साथ शुरूआत करने वाली गीता प्रेस आज करोड़ों पुस्तकों का प्रकाशन करती है.
-लाल मणि तिवारी, उत्पाद प्रबंधक, गीता प्रेस

इस मशीन के माध्यम से गीता प्रेस परिवार यह संदेश देना चाहता है कि इंसान के पास जितनी ज्यादा धन दौलत क्यों न हो, उसे अपने बीते दिनों को हमेशा याद रखना चाहिए. यही कार्य गीता प्रेस परिवार ने किया है,. इस मशीन को यहां पर आम दर्शकों के लिए रखा गया है.
-अनिरुद्ध यादव, कर्मचारी, गीता प्रेस

गोरखपुर: जिले के उर्दू बाजार स्थित गीता प्रेस की स्थापना 23 अप्रैल 1923 को हुई थी. इसकी स्थापना 10 रुपये प्रतिमाह के किराए के मकान में की गई थी. उसी दौरान कुछ टाइपिंग मशीन और पहली छपाई की मशीन बोस्टन से मंगाई गई थी, जिसने पहली श्रीमद्भागवत गीता की छपाई की थी. तभी से गीता प्रेस में प्रकाशन का कार्य प्रारंभ हुआ था. गीता प्रेस परिवार हमेशा ही अपने कार्यों के माध्यम से लोगों को संदेश देने का कार्य करता है.

गीता प्रेस की वजह से गोरखपुर को मिली पहचान

इसे भी पढ़े- नीता सिंह की 'काव्यस्पंदन' और 'काव्यमाला' किताब का विमोचन


'कार्य करने के पीछे दृढ़ इच्छाशक्ति होनी चाहिए'

गीता प्रेस के संस्थापक जयदयाल गोयंका ने गीता प्रेस की एक अलग पहचान स्थापित की. समाज में धर्म और संस्कृति के प्रचार-प्रसार को ध्यान में रखते हुए गीता प्रेस की स्थापना हुई थी. गीता प्रेस परिवार इस पहली छपाई मशीन को संरक्षित कर आमजन को यह संदेश देना चाहता है कि कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता. कार्य करने के पीछे दृढ़ इच्छाशक्ति होनी चाहिए. अगर दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ कार्य को प्रारंभ किया जाए तो समूचे विश्व में उसका नाम होता है. आज पूरे विश्व में गीता प्रेस अपने विभिन्न पुस्तकों के माध्यम से लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान कर रहा है.

गीता प्रेस की वजह से गोरखपुर को मिली पहचान

साल 1921 के आसपास गीता प्रेस के संस्थापक जयदयाल गोयंका ने कोलकाता में गोविंद भवन ट्रस्ट की स्थापना की थी. इसी ट्रस्ट के तहत वहीं से वह गीता का प्रकाशन कराते थे. पुस्तक में कोई गलती न हो इसके लिए पुस्तक को कई-कई बार संशोधन करना पड़ता था. प्रेस मालिक ने एक दिन कहा कि इतनी शुद्ध गीता प्रकाशित करनी है तो अपना प्रेस लगा लीजिए. यह बात गीता प्रेस के संस्थापक जयदयाल गोयंका को घर कर गई. उन्होंने इस कार्य के लिए गोरखपुर को चुना. 1923 में उर्दू बाजार में 10 रुपये महीने के किराए पर एक कमरा लिया गया. इसके बाद वहीं से गीता प्रकाशन को शुरू किया. धीरे-धीरे गीता प्रेस का निर्माण हुआ और इसकी वजह से पूरे विश्व में गोरखपुर को एक अलग पहचान मिली.

70 करोड़ से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन
दुनियाभर में धार्मिक पुस्तकों के लिए गीता प्रेस से अब तक 70 करोड़ से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है. इन पुस्तकों में सर्वाधिक संख्या 15.5 करोड़ श्रीमद्भागवत गीता की है. इसके अलावा रामचरितमानस, हनुमान चालीसा, दुर्गा सप्तशती, सुंदरकांड की पुस्तकों की संख्या भी करोड़ों में है.

23 अप्रैल 1923 को गीता प्रेस प्रकाशन की पुस्तकों को छापने के लिए पहली मशीन बोस्टन से मंगाई गई थी. आज भी यह मशीन गीता प्रेस परिसर में संरक्षित कर रखी गई है. मशीन यह संदेश देती है कि गीता प्रेस के क्या उद्देश्य थे. छोटी सी मशीन के साथ शुरूआत करने वाली गीता प्रेस आज करोड़ों पुस्तकों का प्रकाशन करती है.
-लाल मणि तिवारी, उत्पाद प्रबंधक, गीता प्रेस

इस मशीन के माध्यम से गीता प्रेस परिवार यह संदेश देना चाहता है कि इंसान के पास जितनी ज्यादा धन दौलत क्यों न हो, उसे अपने बीते दिनों को हमेशा याद रखना चाहिए. यही कार्य गीता प्रेस परिवार ने किया है,. इस मशीन को यहां पर आम दर्शकों के लिए रखा गया है.
-अनिरुद्ध यादव, कर्मचारी, गीता प्रेस

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.