गोरखपुर: जनपद के पिपराइच अन्तर्गत ग्रामीण अंचल में खरीफ की प्रमुख फसल धान की कटाई के साथ रबी फसलों की बुआई का कार्य जोर-शोर से चल रहा है. एक तरफ पराली जलाने पर लगी प्रशासनिक रोक से किसानों की परेशानी बढ़ गई है. धान की कटाई मढ़ाई के बाद खेतों में बचे फसल के अवशेष के कारण किसानों को खेतों की जोताई-बुआई करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
दूसरी तरफ, रबि की बुआई पिछड़ती जा रही है. ऐसे में किसानों में पैदावार प्रभावित होने की आशंका बनी हुई है. पराली को खेतों से बाहर निकाल कर उसको ठिकाने लगाने तक किसानों के कार्यों में बेतहाशा वृद्धि होने से लागत खर्च बढ़ गया है.
किसानों के लिए बना संकट
किसान बताते हैं कि पहले थ्रेसर और कम्बाईन मशीन से धान फसलों की कटाई-मढ़ाई के बाद पराली को खेतों में ही समाप्त कर दिया जाता था. सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद खेतों में पराली जलाना कानूनी अपराध हो गया है. खेतों की कटाई कम्बाईन मशीन और मजदूरों द्वारा जैसे-तैसे की जा रहा है. मढ़ाई के बाद खेतों में बचे फसल के अवशेष से संकट खड़ा हो गया है.
पराली जमा कर उसको खेतों से बाहर निकालने का काम जी का जंजाल बन गया है. ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूर के लाले पड़े हैं. छोटे किसान तो स्वतः किसी तरह से खेत खाली करके रबि की बुआई कर रहे हैं. मध्यम और बड़े किसान पराली को खेत में इकट्ठा करने लिए मजदूरों की तलाश में भटक रहे हैं. मजदूरी खर्च बढ़ने लगा है और इसके साथ ही रबि की बुआई पिछड़ती जा रही है.
संसाधन के आभाव में बढ़ते लागत पर लगाम लगाने की जरूरत
जागरूक किसान बताते हैं कि बढ़ती महंगाई के दौर में संसाधन का आभाव है. इस आधुनिक युग में जो भी कृषि कार्य हो रहे हैं, सिर्फ ट्रैक्टर के भरोसे ही होना है. ट्रैक्टर में डीजल खर्च बढ़ाने पर लागत दरों में वृद्धि हो रही है और इसका असर आम जनता पर पड़ेगा. शासन-प्रशासन को इस पर लगाम लगाने की आवश्यकता है. किसानों को कम खर्च वाले कृषि यंत्र और समय-समय पर जागरूक करने की आवश्यकता है.
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फुटपाथ पर पराली से अतिक्रमण और हादसे होने की आशंका
बढ़ती आबादी ने खेत-खलिहान पर इस तरह पांव पसार रखा है कि वहां पर पराली रखने की कोई गुन्जाइश नहीं है. किसान खेतों की पराली निकाल कर चकमार्ग, खड़ंजा रो एवं सड़क के किनारे फुटपाथ पर ढेर लगा दे रहा है. इससे फुटपाथ पर अतिक्रमण जैसी स्थिति देखने को मिल रही है और राहगीरों के लिए आवागमन में बाधाएं उत्पन्न और दुर्घटना की संभावना बढ़ रही है.
जानिए क्या कहते हैं जानकार
वरिष्ठ पर्यावरण विद एवं वार्ताकार गोरखपुर के भुनेश्वर नाथ पाण्डेय ने बताया कि पराली जलाने से सबसे ज्यादा नुकशान हमारे पर्यावरण को हो रहा है. हवा दूषित हो रही है और वायुमंडल में कार्बन-डाई-ऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस की मात्रा बढ़ रही है. यह श्वशन क्रिया में सबसे ज्यादा बाधक और मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. मिट्टी के स्वास्थ्य रक्षा के लिए उसकी गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए फसल अवशेष का प्रबंधन करना अतिआवश्यक है. इसके लिए हमारा सुझाव है कि किसान फसल अवशेष को न जलायें, बल्कि उसको सड़ा कर खाद बनाए. खाद बनाकर जब हम मिट्टी में मिलाएंगे तो मृदा में कार्बन का प्रतिशत बढ़ जायेगा. इसका मानक यह है कि मृदा में इसकी 1.8% होना चाहिए और फसल अवशेष जलाने से जीवाश्म की कमी भी होगी.