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महाशिवरात्रि पर मंदिरों में उमडे़ भक्त, 117 साल बाद बन रहा 'सर्वार्थसिद्धि' योग

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Published : Feb 21, 2020, 6:41 AM IST

यूपी के गोरखपुर में शिवरात्रि के अवसर पर सुबह से ही भक्त मंदिरों में उमड़ पडे़ हैं. इस बार शिवरात्रि के मौके पर 117 साल बाद 'सर्वार्थ सिद्धि' योग बन रहा है. इस मौके पर मंदिर में शिवलिंग पर बेलपत्र और सूखा नारियल चढ़ाने से सभी मनोरथ पूरे होंगे.

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117 साल बाद बन रहा 'सर्वार्थसिद्धि' योग.

गोरखपुर: महाशिवरात्रि के इस पावन पर्व पर इस बार 'सर्वार्थ सिद्धि' योग बन रहा है. 117 साल बाद बन रहा यह संयोग संतान प्राप्ति से लेकर धन की प्राप्ति के लिए काफी अच्छा माना जा रहा है. 1903 में इस तरह का योग शिवरात्रि पर बना था. इस पर्व पर दूध और गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करने से लोगों को पुण्य लाभ प्राप्त होगा. यही नहीं इस बार महाशिवरात्रि पर त्रयोदशी और चतुर्दशी का संगम भी बन रहा है, जिसका समय 5:23 से 6:23 बजे तक होगा.

117 साल बाद बन रहा 'सर्वार्थसिद्धि' योग.

इस अवधि में मंदिर में शिवलिंग पर बेलपत्र और सूखा नारियल चढ़ाने से सभी मनोरथ पूरे होंगे. ज्योतिष पंडित आलोक मिश्रा का कहना है कि जिन कन्याओं के विवाह में देरी हो रही हो वह शाम 5:00 बजे के बाद मंदिर जाएं और शिवलिंग पर तीन उल्टा बेलपत्र चढ़ाने के साथ ही घी का दीपक जलाएं. संभव हो तो काले और सफेद तिल से शिव का अभिषेक करें इससे विवाह बाधा दूर होगी.

रात्रि के चारों प्रहरों में पूजा करने से प्राप्त होता है शिव सायुज्य
उन्होंने बताया कि ईशान संहिता के अनुसार शिवरात्रि को निर्जला व्रत रहकर जो रात जागरण कर रात्रि के चारों प्रहर में, चार बार पूजा करता है उसे शिव सायुज्य प्राप्त होता है. शिवरात्रि महात्म्य में लिखा है कि महाशिवरात्रि से बढ़कर कोई दूसरा व्रत नहीं होता. इस दौरान किए जाने वाले व्रत के महत्व के बारे में शिवपुराण की कोटि रूद्र संहिता में बताया गया है कि शिवरात्रि व्रत करने से व्यक्ति को भोग एवं मोक्ष दोनों ही प्राप्त होते हैं.

मोक्षार्थी को मोक्ष की प्राप्ति के लिए चार व्रतों का नियम पूर्वक पालन करना चाहिए. यह चार व्रत- भगवान शिव की पूजा, रूद्र मंत्रों का जप, शिव मंदिर के सानिध्य में उपवास, मुक्त क्षेत्रों में शिव का चिंतन करते हुए महाप्रयाण शामिल है.

क्यों कहते हैं महाशिवरात्रि
पंडित आलोक मिश्रा ने शिवरात्रि व्रत के बारे में बताते हुए कहा कि इसका एक महात्म्य है. इस जिज्ञासा का समाधान यह है कि भगवान शंकर संहार शक्ति और तमोगुण के अधिष्ठाता हैं. रात्रि संहार काल की प्रतिनिधि है. रात्रि का आगमन होते ही सर्वप्रथम प्रकाश का संहार, जीवों की दैनिक चेष्टाओं का संघार और अंत में निद्रा द्वारा चेतनता का संहार होकर संपूर्ण विश्व संहारिणी रात्रि की गोद में गिर जाता है.

ऐसी स्थिति में प्राकृतिक दृष्टि से शिव का रात्रि प्रिय होना सहज ही हृदयंगम हो जाता है. यही कारण है कि भगवान शिव की आराधना न केवल इस रात्रि में बल्कि रात्रि के प्रारंभ होने के समय की जाती है. यही वजह है कि फाल्गुन मास की शिवरात्रि महाशिवरात्रि के नाम से जानी जाती है.

इसे भी पढ़ें- जौनपुर: हर साल बढ़ता है मंदिर में स्थापित शिव धड़ का आकार

गोरखपुर: महाशिवरात्रि के इस पावन पर्व पर इस बार 'सर्वार्थ सिद्धि' योग बन रहा है. 117 साल बाद बन रहा यह संयोग संतान प्राप्ति से लेकर धन की प्राप्ति के लिए काफी अच्छा माना जा रहा है. 1903 में इस तरह का योग शिवरात्रि पर बना था. इस पर्व पर दूध और गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करने से लोगों को पुण्य लाभ प्राप्त होगा. यही नहीं इस बार महाशिवरात्रि पर त्रयोदशी और चतुर्दशी का संगम भी बन रहा है, जिसका समय 5:23 से 6:23 बजे तक होगा.

117 साल बाद बन रहा 'सर्वार्थसिद्धि' योग.

इस अवधि में मंदिर में शिवलिंग पर बेलपत्र और सूखा नारियल चढ़ाने से सभी मनोरथ पूरे होंगे. ज्योतिष पंडित आलोक मिश्रा का कहना है कि जिन कन्याओं के विवाह में देरी हो रही हो वह शाम 5:00 बजे के बाद मंदिर जाएं और शिवलिंग पर तीन उल्टा बेलपत्र चढ़ाने के साथ ही घी का दीपक जलाएं. संभव हो तो काले और सफेद तिल से शिव का अभिषेक करें इससे विवाह बाधा दूर होगी.

रात्रि के चारों प्रहरों में पूजा करने से प्राप्त होता है शिव सायुज्य
उन्होंने बताया कि ईशान संहिता के अनुसार शिवरात्रि को निर्जला व्रत रहकर जो रात जागरण कर रात्रि के चारों प्रहर में, चार बार पूजा करता है उसे शिव सायुज्य प्राप्त होता है. शिवरात्रि महात्म्य में लिखा है कि महाशिवरात्रि से बढ़कर कोई दूसरा व्रत नहीं होता. इस दौरान किए जाने वाले व्रत के महत्व के बारे में शिवपुराण की कोटि रूद्र संहिता में बताया गया है कि शिवरात्रि व्रत करने से व्यक्ति को भोग एवं मोक्ष दोनों ही प्राप्त होते हैं.

मोक्षार्थी को मोक्ष की प्राप्ति के लिए चार व्रतों का नियम पूर्वक पालन करना चाहिए. यह चार व्रत- भगवान शिव की पूजा, रूद्र मंत्रों का जप, शिव मंदिर के सानिध्य में उपवास, मुक्त क्षेत्रों में शिव का चिंतन करते हुए महाप्रयाण शामिल है.

क्यों कहते हैं महाशिवरात्रि
पंडित आलोक मिश्रा ने शिवरात्रि व्रत के बारे में बताते हुए कहा कि इसका एक महात्म्य है. इस जिज्ञासा का समाधान यह है कि भगवान शंकर संहार शक्ति और तमोगुण के अधिष्ठाता हैं. रात्रि संहार काल की प्रतिनिधि है. रात्रि का आगमन होते ही सर्वप्रथम प्रकाश का संहार, जीवों की दैनिक चेष्टाओं का संघार और अंत में निद्रा द्वारा चेतनता का संहार होकर संपूर्ण विश्व संहारिणी रात्रि की गोद में गिर जाता है.

ऐसी स्थिति में प्राकृतिक दृष्टि से शिव का रात्रि प्रिय होना सहज ही हृदयंगम हो जाता है. यही कारण है कि भगवान शिव की आराधना न केवल इस रात्रि में बल्कि रात्रि के प्रारंभ होने के समय की जाती है. यही वजह है कि फाल्गुन मास की शिवरात्रि महाशिवरात्रि के नाम से जानी जाती है.

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