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गोरखपुर: लाखों की लागत से लगे डस्टबिन की सुध लेने वाला कोई नहीं - सीएम योगी

गोरखपुर को स्वच्छता सर्वेक्षण में अव्वल नंबर दिलाने के लिए लाखों रुपये खर्च कर सैकड़ों डस्टबिन लगवार गए थे, लेकिन अब इन डस्टबिन की सुध लेने वाला कोई नहीं है. वहीं महापौर का कहना है कि डस्टबिनों के रखरखाव और मरम्मत के लिए दिशा निर्देशित किया गया है.

डस्टबिन की सुध लेने वाला कोई नहीं
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Published : Apr 7, 2019, 2:40 PM IST

गोरखपुर: स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत अभियान को सफल बनाने में अधिकारी कितने जिम्मेदार हैं, उसकी पोल मुख्यमंत्री के शहर में खुलती नजर आ रही है. शहर को स्वच्छता सर्वेक्षण में शहर को अव्वल नंबर दिलाने के लिए लाखों रुपये खर्च कर सैकड़ों डस्टबिन लगवार गए थे, लेकिन अब इन डस्टबिन की सुध लेने वाला कोई नहीं है.

डस्टबिन की सुध लेने वाला कोई नहीं


नगर निगम द्वारा स्वच्छ सर्वेक्षण को देखते हुए महानगर के प्रमुख हिस्सों में लगाए गए अधिकतर डस्टबिन या तो लापता हैं या टूट चुके हैं. निगम के अधिकारियों ने दावा किया था कि प्रतिदिन सफाई सुनिश्चित की जाएगी, लेकिन इन डस्टबिनों में भरे कूड़े लोगों के लिए मुसीबत बन रहे हैं. जनवरी में हुए स्वच्छ सर्वेक्षण को देखते हुए नगर निगम पूरे महानगर में डस्टबिन लगाने वाला था. इसके लिए 2000 डस्टबिन खरीदना था. पहले चरण में 1000 डस्टबिनों की खरीदारी भी हो चुकी थी. जल्दी के चक्कर में बहुत से डस्टबिन ऐसे स्थानों पर लगा दिए गए, जहां उनकी जरूरत ही नहीं थी.


जिम्मेदार अधिकारियों के मुताबिक शहर में जगह-जगह 950 डस्टबिन अलग-अलग स्थानों पर लगाए गए हैं. इनमें से अधिकतर गायब हैं या टूट चुके हैं. वहीं जिम्मेदार अधिकारी आचार संहिता का हवाला देकर कैमरे पर कुछ भी बोलने से मना कर रहे हैं.


इस संबंध में महापौर सीताराम जायसवाल ने बताया कि डस्टबिनों के रखरखाव और टूटे-फूटे होने की सूचना उन्हें मिली है. उन्होंने अधिकारियों को डस्टबिनों के रखरखाव और मरम्मत के लिए दिशा निर्देशित भी किया है. चुनाव खत्म होने के बाद इस संबंध में लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई करने की बात नगर महापौर ने कही है.

गोरखपुर: स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत अभियान को सफल बनाने में अधिकारी कितने जिम्मेदार हैं, उसकी पोल मुख्यमंत्री के शहर में खुलती नजर आ रही है. शहर को स्वच्छता सर्वेक्षण में शहर को अव्वल नंबर दिलाने के लिए लाखों रुपये खर्च कर सैकड़ों डस्टबिन लगवार गए थे, लेकिन अब इन डस्टबिन की सुध लेने वाला कोई नहीं है.

डस्टबिन की सुध लेने वाला कोई नहीं


नगर निगम द्वारा स्वच्छ सर्वेक्षण को देखते हुए महानगर के प्रमुख हिस्सों में लगाए गए अधिकतर डस्टबिन या तो लापता हैं या टूट चुके हैं. निगम के अधिकारियों ने दावा किया था कि प्रतिदिन सफाई सुनिश्चित की जाएगी, लेकिन इन डस्टबिनों में भरे कूड़े लोगों के लिए मुसीबत बन रहे हैं. जनवरी में हुए स्वच्छ सर्वेक्षण को देखते हुए नगर निगम पूरे महानगर में डस्टबिन लगाने वाला था. इसके लिए 2000 डस्टबिन खरीदना था. पहले चरण में 1000 डस्टबिनों की खरीदारी भी हो चुकी थी. जल्दी के चक्कर में बहुत से डस्टबिन ऐसे स्थानों पर लगा दिए गए, जहां उनकी जरूरत ही नहीं थी.


जिम्मेदार अधिकारियों के मुताबिक शहर में जगह-जगह 950 डस्टबिन अलग-अलग स्थानों पर लगाए गए हैं. इनमें से अधिकतर गायब हैं या टूट चुके हैं. वहीं जिम्मेदार अधिकारी आचार संहिता का हवाला देकर कैमरे पर कुछ भी बोलने से मना कर रहे हैं.


इस संबंध में महापौर सीताराम जायसवाल ने बताया कि डस्टबिनों के रखरखाव और टूटे-फूटे होने की सूचना उन्हें मिली है. उन्होंने अधिकारियों को डस्टबिनों के रखरखाव और मरम्मत के लिए दिशा निर्देशित भी किया है. चुनाव खत्म होने के बाद इस संबंध में लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई करने की बात नगर महापौर ने कही है.

Intro:गोरखपुर। स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत अभियान को सफल बनाने में अधिकारी कितने जिम्मेदार हैं, उसकी पोल मुख्यमंत्री के शहर गोरखपुर में खुलती नजर आ रही है। शहर को स्वच्छता सर्वेक्षण में शहर को अव्वल नंबर दिलाने के लिए अधिकारियों ने नेताओं को खुश करने के लिए लाखों रुपए खर्च कर सैकड़ों डस्टबिन शहर की सड़कों पर लगवा जरूर दिए, लेकिन अब इन डस्टबिन की सुध लेने वाला कोई नहीं।

ईटीवी भारत के संवादाता ने अधिकारियों की दावो की सच्चाई जानने के लिए जगह-जगह लगे डस्टबिनो का निरीक्षण किया, जिसमे ज्यादातर या तो गायब हो गया है या फिर टूट गए हैं या उनमें कूड़ा भरा पड़ा है। ऐसे में शहर को अव्वल दर्जा दिला पाना अधिकारियों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है, वही अधिकारी कैमरे पर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं।


Body:गोरखपुर नगर निगम ने स्वच्छ सर्वेक्षण को देखते हुए महानगर के प्रमुख हिस्सों में लगाए गए अधिकतर डस्टबिन या तो लापता है या टूट चुके हैं। दिसंबर और जनवरी में दो-दो की संख्या में हरा व नीला रंग में डस्टबिन पूरे महानगर में जगह जगह लगाए गए थे।

निगम के अधिकारियों ने दावा किया था कि प्रतिदिन इंडस्ट्री नो की सफाई सुनिश्चित की जाएगी, लेकिन इन डस्टबिनो में भरे कूड़े की बदबू लोगों के लिए मुसीबत बनती है। शहर को स्वच्छ रखने के लिए नगर निगम हर नए सिरे से डस्टबिन लगाएगा, जनवरी में हुए स्वच्छ सर्वेक्षण को देखते हुए नगर निगम पूरे महानगर में डस्टबिन लगाने वाला था। इसके लिए 2000 डस्टबिन खरीदना था, पहले चरण में 1000 डस्बिनो की खरीदारी भी हो चुकी थी। जल्दी जल्दी के चक्कर में बहुत से डस्टबिन ऐसे स्थानों पर लगा दिए गए जहां उनकी जरूरत ही नहीं थी। इस संबंध में कई पार्षदों ने इस पर सवाल भी उठाया लेकिन यह कहकर ने चुप करा दिया गया कि सर्वेक्षण की टीम आने वाली है। सर्वेक्षण करने वाली टीम शहर में आकर लौट भी गई लेकिन नगर निगम के अधिकारियों को भनक तक नहीं लगी, पिछले सर्वेक्षण का परिणाम भी आ चुका है।

निगम के जिम्मेदारों के मुताबिक शहर में जगह जगह साढ़े नौ सौ डस्टबिन अलग-अलग स्थानों पर लगाए गए हैं, जिनमें से अधिकतर लापता है या टूट चुके हैं। निगम के सामने अब बचे हुए डस्टबिन को सुरक्षित रखने की जाती है। वही जिम्मेदार अधिकारी आचार संहिता का हवाला देकर कैमरे पर कुछ भी बोलने से मना कर रहे हैं।


Conclusion:इस संबंध में शहर के प्रथम नागरिक महापौर सीताराम जायसवाल ने बताया कि डस्टबिनो के रखरखाव और टूटे-फूटे होने की सूचना उन्हें मिली है, इस बाबत उन्होंने अधिकारियों को डस्टबिनो के रखरखाव और मरम्मत के लिए दिशा निर्देशित भी किया है। लेकिन अधिकारी अपने ढुलमुल रवैया से बाज नहीं आ रहे, चुनाव खत्म होने के बाद इस संबंध में लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई करने की बात नगर महापौर ने कही है।

बाइट - सीताराम जायसवाल, महापौर

पीटीसी- निखिलेश प्रताप




निखिलेश प्रताप
गोरखपुर
9453623738
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