गोरखपुर: शहर की ऐतिहासिक और 158 वर्षों से लगातार होती चली आ रही बर्डघाट की रामलीला का आयोजन कोरोना की इस महामारी में भी होगा. यह आयोजन इस बार रामलीला मैदान में न होकर सराफा भवन में होगा. कार्यक्रम का भव्य स्वरूप भी इस बार नहीं होगा. अयोध्या, मथुरा और दरभंगा के कलाकारों की बजाय इस बार स्थानीय कलाकारों को मौका देकर वर्षों से चली आ रही परंपरा का निर्वाह रामलीला आयोजन समिति करेगी.
यूपी सरकार के निर्देशों का पालन करते हुए इस रामलीला का आयोजन 12 अक्टूबर को भूमि पूजन के साथ शुरू होगा. रामलीला 31 अक्टूबर तक चलेगी. करीब 18 दिनों तक चलने वाली इस रामलीला का खर्च भी लाखों में होता है. इसमें आयोजन समिति और सराफा समेत समाज का सहयोग रहता है.
158 साल से चली आ रही है परंपरा
इस रामलीला के महत्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि यह एक स्थान पर 158 साल से होती चली आ रही है. इस बीच आयोजन साल दर साल बेहतर होता गया. यही वजह है कि पिछले वर्षों का जो भव्य आयोजन होता रहा है, उसकी प्रशंसा करने से देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री समेत तमाम गणमान्य नागरिक नहीं चूकते. इन विशिष्ट जनों की प्रेरणा से आयोजन समिति को और ताकत मिली है.
सराफा भवन के भव्य हाल में होगा आयोजन
समिति के अध्यक्ष पंकज गोयल का कहना है कि रामलीला का आयोजन पूरी सादगी के साथ किया जाएगा. कोविड को देखते हुए सराफा भवन में आयोजित होगा. यहां अधिकतम 100 लोगों को मंचन देखने का मौका मिलेगा. उन्होंने कहा कि जिस भूमि पर रामलीला आयोजित होती रही है, वहां पर रामलीला मंच से जुड़े कई तरह के निर्माण कार्य चल रहे हैं और साथ ही करोना काल भी है. इसलिए आयोजन सराफा भवन के भव्य हाल में होगा, जिससे वर्षों पुरानी परंपरा न टूटने पाए.
14 अक्टूबर से होगी रामलीला मंचन की शुरुआत
इस आयोजन की भव्यता में प्रतिवर्ष राम बारात, वन यात्रा, विजय यात्रा, भरत मिलाप, जुलूस और राघव शक्ति की पूजा लोगों के आकर्षण का केंद्र होती थी. जो इस बार देखने को नहीं मिलेगी. रामलीला मंचन की शुरुआत जहां 14 अक्टूबर से होगी, वहीं 12 अक्टूबर को भूमि पूजन होगा. यहां की रामलीला को देखने के लिए सिर्फ स्थानीय ही नहीं बिहार, नेपाल के लोग भी आते हैं, जिनकी शायद ही इस बार उपस्थिति हो. इसके खर्च का बजट भी 15 लाख रुपये तक जाता था, लेकिन इस बार हर चीज की कटौती करते हुए आयोजन को किया जाएगा. खास बात यह है कि परंपरा को निभाने के साथ यह आयोजन कई तरह से सामाजिक सौहार्द को भी कायम करता है. इसके घोड़े, बैंड बाजा, साउंड एन्ड लाइट, रथ और चालक विभिन्न धर्मों के लोगों के द्वारा संचालित होते हैं.