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गाजीपुर: प्रशासन के बीच फंसा पेंच, झोपड़ी में जिंदगी बसर कर रहे कटान पीड़ित - गाजीपुर का सेमरा गांव

उत्तर प्रदेश में गाजीपुर का मुहम्मादाबाद तहसील स्थित सेमरा गांव कटान के दंश से अभी भी पीड़ित है. कटान शुरू हो जाने से काश्तकारों के साथ ही अगल-बगल आशियाना बनाकर रह रहे लोगों की मुश्किलें बढ़ जाती हैं. प्राथमिक विद्यालय का कायाकल्प होने की वजह से 8 सालों से प्राथमिक विद्यालय में जिंदगी बसर करने वाले लोग अब सड़कों पर आशियाना बनाकर रह रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर...

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झोपड़ी में जिंदगी बसर कर रहे कटान पीड़ित
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Published : Sep 12, 2020, 9:42 PM IST

गाजीपुर: मुहम्मदाबाद तहसील का सेमरा गांव कटान के दंश से उबर नहीं पा रहा है. प्राथमिक विद्यालय सेमरा प्रथम के ठीक बगल की भूमि पर कटान प्रभावित लोग झोपड़ी डालकर अपनी जिंदगी बिता रहे हैं. कटान प्रभावित लोग 8 साल से प्राथमिक विद्यालय में ही अपनी जिंदगी बसर कर रहे थे. अब स्कूल का कायाकल्प किया जा रहा है. स्कूल से इन कटान प्रभावित लोगों को हटा दिया गया है. अब वह स्कूल के पास की भूमि पर झोपड़ी डालकर जिंदगी बसर कर रहे हैं. जिला प्रशासन द्वारा पुनर्वास के लिए आवंटित भूमि पर कटान प्रभावित लोग जाने को तैयार नहीं हैं. उनका कहना है कि वह इलाका शेख राय के ताल के नाम से प्रसिद्ध है और बाढ़ प्रभावित ऐसे में वहां कैसे बसें.

देखें स्पेशल रिपोर्ट.

'प्रशासन द्वारा लोलैंड भूमि को किया गया चिह्नित'
स्थानीय बब्बन राय ने बताया कि सपा सरकार में कटान प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए 15 लाख बीघे की भूमि खरीदने के लिए पैसे आए थे, लेकिन जिस जमीन को चिह्नित कर खरीदारी की गई वह असिंचित थी, जिसका मूल्य तीन से चार लाख रुपये बीघा था. प्रशासन को प्रभावित लोगों से बातकर बेहतर भूमि का चयन करना चाहिए था, जहां कटान प्रभावित लोगों को बसाया जा सके. प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से लोलैंड भूमि को चिह्नित किया गया. इस प्रकरण में कुछ अधिकारियों को जेल भी जाना पड़ा था. बाढ़ प्रभावित शेख सराय का ताल नाम से प्रचलित इलाके में कम दाम पर जमीन चिह्नित कर ली गई, जिससे कटान प्रभावित लोग वहां जाने को तैयार नहीं है.

'लोलैंड जमीन की वजह से वहां नहीं रहना चाहते कटान पीड़ित'
कटान पीड़ित प्रेम नाथ गुप्ता ने बताया कि यह गांव सूखा पड़ने पर जश्न मनाता है, लेकिन जब यहां बाढ़ आती है तो गम का पहाड़ टूट जाता है. बाढ़ का पानी उतरने के कम से कम 6 महीने तक पशुओं के लिए चारा तक उपलब्ध नहीं हो पाता. घर में खाने को भी कुछ नहीं रह जाता. इसलिए यहां का किसान हमेशा यही मनाता है कि यहां कभी बाढ़ न आए. उन्होंने बताया कि यदि इस गांव में बाढ़ नहीं आती तो अब तक काफी विकास होता. जब-जब बाढ़ आती है, तब-तब यह गांव 10 वर्ष पीछे हो जाता है. 2012-13 में बाढ़ आई थी, वह लोग अभी भी विस्थापित हैं. 2016 में भी बाढ़ की विभीषिका आई, जिसकी क्षतिपूर्ति भी अब तक नहीं मिल पाई. कटान प्रभावित लोगों को जो राहत मिलनी थी वह अब तक नहीं मिली.

प्रेम नाथ गुप्ता ने बताया कि जिला प्रशासन के द्वारा कटान प्रभावित परिवारों के पुनर्वास के लिए सरकार ने पैसे भी भेजें और जमीन भी आवंटित की गई. यह कटान प्रभावित परिवार झोपड़ी में जिंदगी बसर करने को तैयार हैं, लेकिन जिला प्रशासन द्वारा चिह्नित जमीन पर जाने को तैयार नहीं हैं. इसीलिए उनके आवास बनाने के लिए आया पैसा भी उन्हें नहीं मिल सका. अब हर साल वह बाढ़ आने पर मातम और सूखा पड़ने पर खुशी मनाते हैं. कुल विस्थापित 558 लोगों में से 378 लोग पिछले कई सालों से आसपास के प्राइमरी और मिडिल स्कूल में आसरा लिए हुए थे. अब प्राइमरी स्कूल से उन्हें निकाल दिया गया है.

'भर जाता है पानी'
कटान पीड़ित सुनीता देवी बताती हैं कि वहां काफी दिक्कत में हैं. वह पूरा इलाका गड्ढे में है थोड़ी सी बारिश के बाद वहां पानी भर जाता है. कोई भी आधारभूत साधन तक नहीं है. उनकी मांग है कि शासन द्वारा चिह्नित उस जमीन को बेचकर उन्हें कहीं और भूमि आवंटित की जाए. 8 साल से वह यहां भी झेल रहे हैं, इससे दोगुना उन्हें वहां झेलना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि हम गरीब कहीं भी कमा खा लेंगे, लेकिन वहां नहीं जाएंगे.

'वहां नहीं है कोई सुविधा'
कटान पीड़ित संपाती पटेल ने बताया कि जिला प्रशासन द्वारा चिह्नित जमीन पर बाढ़ के वक्त कमर तक पानी भर जाता है. हम बाल-बच्चे लेकर वहां क्यों रहेंगे, वहां न आने-जाने के लिए सड़क है, न ही कोई सुविधा. बाल बच्चों के बीमार पड़ जाने पर मोहम्दाबाद स्वास्थ्य केंद्र पर ले जाने में भी काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है. बच्चों के लिए ही मां-बाप कमाते हैं. जब बच्चे ही नहीं रहेंगे तो हम लोगों के रहने का क्या फायदा.

खानाबदोशी का जीवन जी रहे कटान पीड़ित
बता दें 2012- 13 में आई बाढ़ की विभीषिका ने सैकड़ों परिवारों को बर्बाद कर दिया. घर-द्वार और खेत सब गंगा के आगोश में समा गए, लेकिन उन कटान पीड़ित परिवारों को 8 साल होने को हैं, अब तक उन्हें पुनर्वासित नहीं किया जा सका है. तब से वह प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में अपनी जिंदगी गुजर-बसर कर रहे थे, लेकिन अब वहां से भी उन्हें बाहर निकाल दिया गया है. अब वह स्कूल के आसपास अपनी झोपड़ी डालकर जिंदगी जी रहे हैं. हालांकि इस वर्ष गंगा का जलस्तर बढ़ा, लेकिन खतरे के निशान को छूकर वापस लौट गया. इस बार बाढ़ की तबाही नहीं हुई. गंगा कटान प्रभावित इलाके में शिवराय का पुरा गांव का करीब 90 प्रतिशत और सेमरा गांव का करीब 50 प्रतिशत हिस्सा आता है. कटान पीड़ित परिवार आज भी खानाबदोशी का जीवन जी रहे हैं.

'जमीन की होगी जांच'
इस मामले पर जिलाधिकारी ओम प्रकाश आर्य ने बताया कि सिमरा गांव का कुछ इलाका कटान से प्रभावित हुआ था. कटान प्रभावित लोगों के लिए तत्कालीन जिलाधिकारी ने भूमि चिह्नित कर पुनर्वास के लिए आवंटित की. कटान पीड़ितों से कहा गया है कि वह वहां जाकर पुनर्वासित हो, लेकिन इनके ठीक बगल में मोहम्दाबाद का शहरी क्षेत्र है, वहां कुछ लोग मंडी की जमीन पर, कुछ सड़क के किनारे रहना शुरू कर दिए हैं. वह लोग वहां नहीं जाना चाहते हैं. इस मामले में उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि वह जमीन फिर कटान में कट सकती है. डीएम ने जानकारी देते हुए बताया कि वह भूमि अब कट नहीं सकती, क्योंकि सेमरा गांव की कटान को रोकने के लिए कटर लगा दिए गए हैं. गंगा भी अब वहां से दूर जा रही है, वह भूमि अब कटने वाली नहीं है. उन्होंने स्थानीय एसडीएम को जमीन की जांच के लिए निर्देशित किया है कि यदि वह वाकई लोलैंड है, तो उस जमीन को आवासीय विकसित करने के लिए जो किया जा सके उस बारे में योजना बना कर दें. यदि कटान पीड़ित जान-बूझकर शहरी क्षेत्र के आसपास रहना चाहते हैं तो उस पर हम विचार करेंगे.

गाजीपुर: मुहम्मदाबाद तहसील का सेमरा गांव कटान के दंश से उबर नहीं पा रहा है. प्राथमिक विद्यालय सेमरा प्रथम के ठीक बगल की भूमि पर कटान प्रभावित लोग झोपड़ी डालकर अपनी जिंदगी बिता रहे हैं. कटान प्रभावित लोग 8 साल से प्राथमिक विद्यालय में ही अपनी जिंदगी बसर कर रहे थे. अब स्कूल का कायाकल्प किया जा रहा है. स्कूल से इन कटान प्रभावित लोगों को हटा दिया गया है. अब वह स्कूल के पास की भूमि पर झोपड़ी डालकर जिंदगी बसर कर रहे हैं. जिला प्रशासन द्वारा पुनर्वास के लिए आवंटित भूमि पर कटान प्रभावित लोग जाने को तैयार नहीं हैं. उनका कहना है कि वह इलाका शेख राय के ताल के नाम से प्रसिद्ध है और बाढ़ प्रभावित ऐसे में वहां कैसे बसें.

देखें स्पेशल रिपोर्ट.

'प्रशासन द्वारा लोलैंड भूमि को किया गया चिह्नित'
स्थानीय बब्बन राय ने बताया कि सपा सरकार में कटान प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए 15 लाख बीघे की भूमि खरीदने के लिए पैसे आए थे, लेकिन जिस जमीन को चिह्नित कर खरीदारी की गई वह असिंचित थी, जिसका मूल्य तीन से चार लाख रुपये बीघा था. प्रशासन को प्रभावित लोगों से बातकर बेहतर भूमि का चयन करना चाहिए था, जहां कटान प्रभावित लोगों को बसाया जा सके. प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से लोलैंड भूमि को चिह्नित किया गया. इस प्रकरण में कुछ अधिकारियों को जेल भी जाना पड़ा था. बाढ़ प्रभावित शेख सराय का ताल नाम से प्रचलित इलाके में कम दाम पर जमीन चिह्नित कर ली गई, जिससे कटान प्रभावित लोग वहां जाने को तैयार नहीं है.

'लोलैंड जमीन की वजह से वहां नहीं रहना चाहते कटान पीड़ित'
कटान पीड़ित प्रेम नाथ गुप्ता ने बताया कि यह गांव सूखा पड़ने पर जश्न मनाता है, लेकिन जब यहां बाढ़ आती है तो गम का पहाड़ टूट जाता है. बाढ़ का पानी उतरने के कम से कम 6 महीने तक पशुओं के लिए चारा तक उपलब्ध नहीं हो पाता. घर में खाने को भी कुछ नहीं रह जाता. इसलिए यहां का किसान हमेशा यही मनाता है कि यहां कभी बाढ़ न आए. उन्होंने बताया कि यदि इस गांव में बाढ़ नहीं आती तो अब तक काफी विकास होता. जब-जब बाढ़ आती है, तब-तब यह गांव 10 वर्ष पीछे हो जाता है. 2012-13 में बाढ़ आई थी, वह लोग अभी भी विस्थापित हैं. 2016 में भी बाढ़ की विभीषिका आई, जिसकी क्षतिपूर्ति भी अब तक नहीं मिल पाई. कटान प्रभावित लोगों को जो राहत मिलनी थी वह अब तक नहीं मिली.

प्रेम नाथ गुप्ता ने बताया कि जिला प्रशासन के द्वारा कटान प्रभावित परिवारों के पुनर्वास के लिए सरकार ने पैसे भी भेजें और जमीन भी आवंटित की गई. यह कटान प्रभावित परिवार झोपड़ी में जिंदगी बसर करने को तैयार हैं, लेकिन जिला प्रशासन द्वारा चिह्नित जमीन पर जाने को तैयार नहीं हैं. इसीलिए उनके आवास बनाने के लिए आया पैसा भी उन्हें नहीं मिल सका. अब हर साल वह बाढ़ आने पर मातम और सूखा पड़ने पर खुशी मनाते हैं. कुल विस्थापित 558 लोगों में से 378 लोग पिछले कई सालों से आसपास के प्राइमरी और मिडिल स्कूल में आसरा लिए हुए थे. अब प्राइमरी स्कूल से उन्हें निकाल दिया गया है.

'भर जाता है पानी'
कटान पीड़ित सुनीता देवी बताती हैं कि वहां काफी दिक्कत में हैं. वह पूरा इलाका गड्ढे में है थोड़ी सी बारिश के बाद वहां पानी भर जाता है. कोई भी आधारभूत साधन तक नहीं है. उनकी मांग है कि शासन द्वारा चिह्नित उस जमीन को बेचकर उन्हें कहीं और भूमि आवंटित की जाए. 8 साल से वह यहां भी झेल रहे हैं, इससे दोगुना उन्हें वहां झेलना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि हम गरीब कहीं भी कमा खा लेंगे, लेकिन वहां नहीं जाएंगे.

'वहां नहीं है कोई सुविधा'
कटान पीड़ित संपाती पटेल ने बताया कि जिला प्रशासन द्वारा चिह्नित जमीन पर बाढ़ के वक्त कमर तक पानी भर जाता है. हम बाल-बच्चे लेकर वहां क्यों रहेंगे, वहां न आने-जाने के लिए सड़क है, न ही कोई सुविधा. बाल बच्चों के बीमार पड़ जाने पर मोहम्दाबाद स्वास्थ्य केंद्र पर ले जाने में भी काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है. बच्चों के लिए ही मां-बाप कमाते हैं. जब बच्चे ही नहीं रहेंगे तो हम लोगों के रहने का क्या फायदा.

खानाबदोशी का जीवन जी रहे कटान पीड़ित
बता दें 2012- 13 में आई बाढ़ की विभीषिका ने सैकड़ों परिवारों को बर्बाद कर दिया. घर-द्वार और खेत सब गंगा के आगोश में समा गए, लेकिन उन कटान पीड़ित परिवारों को 8 साल होने को हैं, अब तक उन्हें पुनर्वासित नहीं किया जा सका है. तब से वह प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में अपनी जिंदगी गुजर-बसर कर रहे थे, लेकिन अब वहां से भी उन्हें बाहर निकाल दिया गया है. अब वह स्कूल के आसपास अपनी झोपड़ी डालकर जिंदगी जी रहे हैं. हालांकि इस वर्ष गंगा का जलस्तर बढ़ा, लेकिन खतरे के निशान को छूकर वापस लौट गया. इस बार बाढ़ की तबाही नहीं हुई. गंगा कटान प्रभावित इलाके में शिवराय का पुरा गांव का करीब 90 प्रतिशत और सेमरा गांव का करीब 50 प्रतिशत हिस्सा आता है. कटान पीड़ित परिवार आज भी खानाबदोशी का जीवन जी रहे हैं.

'जमीन की होगी जांच'
इस मामले पर जिलाधिकारी ओम प्रकाश आर्य ने बताया कि सिमरा गांव का कुछ इलाका कटान से प्रभावित हुआ था. कटान प्रभावित लोगों के लिए तत्कालीन जिलाधिकारी ने भूमि चिह्नित कर पुनर्वास के लिए आवंटित की. कटान पीड़ितों से कहा गया है कि वह वहां जाकर पुनर्वासित हो, लेकिन इनके ठीक बगल में मोहम्दाबाद का शहरी क्षेत्र है, वहां कुछ लोग मंडी की जमीन पर, कुछ सड़क के किनारे रहना शुरू कर दिए हैं. वह लोग वहां नहीं जाना चाहते हैं. इस मामले में उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि वह जमीन फिर कटान में कट सकती है. डीएम ने जानकारी देते हुए बताया कि वह भूमि अब कट नहीं सकती, क्योंकि सेमरा गांव की कटान को रोकने के लिए कटर लगा दिए गए हैं. गंगा भी अब वहां से दूर जा रही है, वह भूमि अब कटने वाली नहीं है. उन्होंने स्थानीय एसडीएम को जमीन की जांच के लिए निर्देशित किया है कि यदि वह वाकई लोलैंड है, तो उस जमीन को आवासीय विकसित करने के लिए जो किया जा सके उस बारे में योजना बना कर दें. यदि कटान पीड़ित जान-बूझकर शहरी क्षेत्र के आसपास रहना चाहते हैं तो उस पर हम विचार करेंगे.

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