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नोएडा: अस्पताल सरकारी लेकिन डॉक्टर प्राइवेट! डूब रहा है मायावती का डीम प्रोजेक्ट

नोएडा का जिला अस्पताल इन दिनों परेशानियों से जूझ रहा है. बता दें कि इस अस्पताल को यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जाता है. आइये जानते हैं कि अस्पताल की सीएमएस ने इस पर क्या कहा.

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Published : Sep 21, 2019, 7:30 AM IST

नोएडा जिला अस्पताल में प्राइवेट डॉक्टर कर रहे इलाज.

नई दिल्ली/नोएडा: उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जाने वाला नोएडा का जिला अस्पताल 600 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया था, लेकिन इस अस्पताल का हाल ये है कि आए दिन किसी न किसी समस्या से घिरा ही रहता है. अस्पताल में फिलहाल सबसे बड़ी समस्या डॉक्टरों के अभाव की है, जिसके चलते यहां पर संविदा पर बाहर से डॉक्टर बुलाकर मरीज दिखाए जाते हैं. अस्पताल भले ही सरकारी है पर वहां तैनात ज्यादातर डॉक्टर और कर्मचारी प्राइवेट हैं, जिसके चलते मरीजों को बेहतर सुविधा नहीं मिल पाती है. मरीज अन्य अस्पतालों में जाकर महंगे इलाज कराने के लिए मजबूर होते हैं.

नोएडा जिला अस्पताल में प्राइवेट डॉक्टर कर रहे इलाज.

पूर्व सीएम मायावती का है ड्रीम प्रोजेक्ट
नोएडा का राजकीय जिला संयुक्त चिकित्सालय सेक्टर 30 में बना है. इस अस्पताल को उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जाता है. इस अस्पताल को अगर देखा जाए तो ये सिर्फ नाम का जिला अस्पताल एक बिल्डिंग के रूप में खड़ा है. अस्पताल में दो साल से वेंटिलेटर मशीन एक कोने में धूल फांक रही है तो वहीं अस्पताल में मरीजों को देखने के लिए जो सरकारी डॉक्टर होने चाहिए वे नहीं हैं. उनकी जगह पर संविदा के डॉक्टर रखे गए हैं. मतलब ये कि अस्पताल तो सरकारी है पर वहां काम करने वाले डॉक्टर प्राइवेट हैं.

अस्पताल की है खस्ता हालत
इसके चलते मरीजों को बेहतर सुविधा नहीं मिल पाती, वहीं इस अस्पताल में 100 बेड की व्यवस्था है, लेकिन मरीजों की संख्या ज्यादा हो जाने पर अस्थाई बेड डालकर उन्हें भर्ती किया जाता है. इस समय जिला अस्पताल में सीएमएस के अनुसार 70 बेड अलग से डाले गए हैं, जिन पर वार्ड से बाहर मरीज गैलरी में सोने के लिए मजबूर हैं.

इसके साथ ही जिला अस्पताल में जो सरकारी डॉक्टर तैनात हैं वो वीआईपी ड्यूटी करने में लगे रहते हैं, जिसके चलते मरीजों का समय से ऑपरेशन नहीं हो पाता है. जिला अस्पताल में कोई ऐसा दिन नहीं जिस दिन करीब दर्जन भर मरीज सुविधाओं के अभाव के चलते हायर सेंटर के लिए रेफर किए जाते हैं.

'अस्पताल में है डॉक्टरों की कमी'
अस्पताल में डॉक्टर और सुविधाओं की कमी के चलते अस्पताल सरकारी नाम का रह गया है. इस बात को जिला अस्पताल की सीएमएस वंदना शर्मा भी मानती हैं. उनका कहना है कि अस्पताल में डॉक्टरों की कमी के चलते मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है और अस्पताल में संसाधनों की भी काफी कमी है.

नोएडा के जिला अस्पताल की सीएमएस डॉक्टर वंदना शर्मा का कहना है कि अस्पताल में डॉक्टरों की कमी और संसाधनों का अभाव दोनों हैं. जिस के संबंध में उच्चाधिकारियों को लिखित जानकारी दी गई है लेकिन आज तक उन कमियों को पूरा करने का काम किसी भी सरकार और अधिकारी ने नहीं किया.

उन्होंने बताया कि अस्पताल में महिला और पुरुष डॉक्टर मिलाकर 32 लोग हैं और शेष डॉक्टरों की कमी संविदा पर डॉक्टरों को रखकर पूरी की जाती है और कहीं वो हड़ताल पर चले गए तो अस्पताल पर एक बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है.

नई दिल्ली/नोएडा: उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जाने वाला नोएडा का जिला अस्पताल 600 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया था, लेकिन इस अस्पताल का हाल ये है कि आए दिन किसी न किसी समस्या से घिरा ही रहता है. अस्पताल में फिलहाल सबसे बड़ी समस्या डॉक्टरों के अभाव की है, जिसके चलते यहां पर संविदा पर बाहर से डॉक्टर बुलाकर मरीज दिखाए जाते हैं. अस्पताल भले ही सरकारी है पर वहां तैनात ज्यादातर डॉक्टर और कर्मचारी प्राइवेट हैं, जिसके चलते मरीजों को बेहतर सुविधा नहीं मिल पाती है. मरीज अन्य अस्पतालों में जाकर महंगे इलाज कराने के लिए मजबूर होते हैं.

नोएडा जिला अस्पताल में प्राइवेट डॉक्टर कर रहे इलाज.

पूर्व सीएम मायावती का है ड्रीम प्रोजेक्ट
नोएडा का राजकीय जिला संयुक्त चिकित्सालय सेक्टर 30 में बना है. इस अस्पताल को उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जाता है. इस अस्पताल को अगर देखा जाए तो ये सिर्फ नाम का जिला अस्पताल एक बिल्डिंग के रूप में खड़ा है. अस्पताल में दो साल से वेंटिलेटर मशीन एक कोने में धूल फांक रही है तो वहीं अस्पताल में मरीजों को देखने के लिए जो सरकारी डॉक्टर होने चाहिए वे नहीं हैं. उनकी जगह पर संविदा के डॉक्टर रखे गए हैं. मतलब ये कि अस्पताल तो सरकारी है पर वहां काम करने वाले डॉक्टर प्राइवेट हैं.

अस्पताल की है खस्ता हालत
इसके चलते मरीजों को बेहतर सुविधा नहीं मिल पाती, वहीं इस अस्पताल में 100 बेड की व्यवस्था है, लेकिन मरीजों की संख्या ज्यादा हो जाने पर अस्थाई बेड डालकर उन्हें भर्ती किया जाता है. इस समय जिला अस्पताल में सीएमएस के अनुसार 70 बेड अलग से डाले गए हैं, जिन पर वार्ड से बाहर मरीज गैलरी में सोने के लिए मजबूर हैं.

इसके साथ ही जिला अस्पताल में जो सरकारी डॉक्टर तैनात हैं वो वीआईपी ड्यूटी करने में लगे रहते हैं, जिसके चलते मरीजों का समय से ऑपरेशन नहीं हो पाता है. जिला अस्पताल में कोई ऐसा दिन नहीं जिस दिन करीब दर्जन भर मरीज सुविधाओं के अभाव के चलते हायर सेंटर के लिए रेफर किए जाते हैं.

'अस्पताल में है डॉक्टरों की कमी'
अस्पताल में डॉक्टर और सुविधाओं की कमी के चलते अस्पताल सरकारी नाम का रह गया है. इस बात को जिला अस्पताल की सीएमएस वंदना शर्मा भी मानती हैं. उनका कहना है कि अस्पताल में डॉक्टरों की कमी के चलते मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है और अस्पताल में संसाधनों की भी काफी कमी है.

नोएडा के जिला अस्पताल की सीएमएस डॉक्टर वंदना शर्मा का कहना है कि अस्पताल में डॉक्टरों की कमी और संसाधनों का अभाव दोनों हैं. जिस के संबंध में उच्चाधिकारियों को लिखित जानकारी दी गई है लेकिन आज तक उन कमियों को पूरा करने का काम किसी भी सरकार और अधिकारी ने नहीं किया.

उन्होंने बताया कि अस्पताल में महिला और पुरुष डॉक्टर मिलाकर 32 लोग हैं और शेष डॉक्टरों की कमी संविदा पर डॉक्टरों को रखकर पूरी की जाती है और कहीं वो हड़ताल पर चले गए तो अस्पताल पर एक बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है.

Intro:नोएडा---
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का ड्रीम प्रोजेक्ट कहां जाने वाला नोएडा का जिला अस्पताल 600 करोड़ की लागत से बनाया गया पर इस अस्पताल का हाल यह है कि आए दिन किसी न किसी समस्या से घिरा ही रहता है अस्पताल में देखा जाए तो फिलहाल सबसे बड़ी समस्या यह है कि डॉक्टरों का अभाव है, जिसके चलते वहां पर संविदा पर बाहर से डॉक्टर बुलाकर मरीज दिखाए जाते हैं अस्पताल भले ही सरकारी है पर वहां तैनात ज्यादातर डॉक्टर और कर्मचारी प्राइवेट है जिसके चलते मरीजों को बेहतर सुविधा नहीं मिल पाती है और मरीज अन्य अस्पतालों में जाकर महंगे इलाज कराने के लिए मजबूर होते हैं।


Body:नोएडा का राजकीय जिला संयुक्त चिकित्सालय सेक्टर 30 में बना है यह अस्पताल उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जाता है पर इस अस्पताल को अगर देखा जाए यह सिर्फ एक नाम का जिला अस्पताल एक बिल्डिंग के रूप में खड़ा है 2 साल से वेंटिलेटर मशीन एक कोने में धूल फांक रही है तो वही अस्पताल में मरीजों को देखने के लिए जो सरकारी डॉक्टर होने चाहिए वह नहीं है उनकी जगह पर संविदा के डॉक्टर रखे गए हैं मतलब यह कि अस्पताल तो सरकारी है पर वहां काम करने वाले डॉक्टर प्राइवेट हैं जिसके चलते मरीजों को बेहतर सुविधा नहीं मिल पाती , वही इस अस्पताल में 100 बेड की व्यवस्था है पर मरीजों की संख्या ज्यादा हो जाने पर गैलरीओं में अस्थाई बेड डालकर उन्हें भर्ती किया जाता है इस समय जिला अस्पताल में सीएमएस के अनुसार 70 बेड अलग से डाले गए हैं जिन पर वार्ड से बाहर मरीज गैलरीओं में सोने के लिए मशहूर हैं इसके साथ ही जिला अस्पताल में जो सरकारी डॉक्टर तैनात है वह वीआईपी ड्यूटी करने में लगे रहते हैं जिसके चलते मरीजों का समय से ऑपरेशन नहीं हो पाता है, जिला अस्पताल में कोई ऐसा दिन नहीं जिस दिन करीब दर्जन भर मरीज सुविधाओं के अभाव के चलते हायर सेंटर के लिए रेफर किए जाते हैं , अस्पताल में डॉक्टर और सुविधाओं की कमी के चलते अस्पताल सरकारी नाम का रह गया है इस बात को जिला अस्पताल की सीएमएस वंदना शर्मा भी मानती है उनका कहना है कि अस्पताल में डॉक्टरों की कमी के चलते मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है और अस्पताल में संसाधनों की भी काफी कमी है।


Conclusion:नोएडा के जिला अस्पताल की सीएमएस डॉक्टर वंदना शर्मा का कहना है कि अस्पताल में डॉक्टरों की कमी और संसाधनों का अभाव दोनों है जिस के संबंध में उच्चाधिकारियों को लिखित जानकारी दी गई है पर आज तक उन कमियों को पूरा करने का काम किसी भी सरकार और अधिकारी ने नहीं किया, जिसके चलते आम जनता परेशानी का सामना करती हैं। उन्होंने बताया कि अस्पताल में महिला और पुरुष डॉक्टर मिलाकर 32 लोग हैं और शेष डॉक्टरों की कमी संविदा पर डॉक्टरों को रखकर पूरी की जाती है और कहीं वो हड़ताल पर चले गए तो अस्पताल पर एक बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है।

बाईट---डॉक्टर वंदना शर्मा (सीएमएस जिला अस्पताल)
पीटीसी--- संजीव उपाध्याय नोएडा
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