फिरोजाबाद: हरियाणा प्रान्त के हथिनी कुंड से पानी छोड़े जाने के बाद यमुना नदी में जो उफान आया था वह तो शांत हो गया और पानी भी उतर गया है, लेकिन इस नदी ने किसानों को काफी दर्द दिया है. यमुना नदी के किनारे जो खेती होती थी उसमें नुकसान से किसानों की चिंता बढ़ गयी है. किसानों ने यमुना नदी के किनारे स्थित खेतों में जो फसल बोई थी उसमें 50 फीसदी तक नुकसान के आशंका जतायी जा रही है.
बताते चलें कि यमुना नदी फिरोजाबाद जिले की सीमा में भी बहती है, जो जिले को आगरा से अलग करती है. आगरा से निकलकर यह नदी जिले की सीमा में टूण्डला से प्रवेश करती है और सदर तहसील, सिरसागंज होती हुई इटावा जिले में प्रवेश कर जाती है. इस नदी में जब जब भी उफान आता है तो टूण्डला तहसील के गांव के लोगों की धड़कनें बढ़ जाती हैं, क्योंकि यहां यमुना नदी जरा से उफान पर खेतों को अपनी चपेट में ले लेती है. गांवों में भी पानी घुसने का खतरा मंडराता रहता है. हालांकि बीते कई सालों से गांवों में तो पानी नहीं घुस सका है लेकिन किसानों की फसलें जरूर खराब हुई हैं.
यमुना नदी में कम हुआ जल स्तर तो सामने आया फसलों की बर्बादी का मंजर
यमुना नदी फिरोजाबाद जिले की सीमा में भी बहती है, जो जिले को आगरा से अलग करती है. हरियाणा प्रान्त के हथिनी कुंड से पानी छोड़े जाने के बाद यमुना नदी में जो उफान आया था जो अब शांत हो गया है. खेतों से अब पानी उतर गया है. वहीं, किसानों ने यमुना नदी के किनारे स्थित खेतों में जो फसल बोई थी उसमें 50 फीसदी तक नुकसान के आशंका जताई जा रही है.
फिरोजाबाद: हरियाणा प्रान्त के हथिनी कुंड से पानी छोड़े जाने के बाद यमुना नदी में जो उफान आया था वह तो शांत हो गया और पानी भी उतर गया है, लेकिन इस नदी ने किसानों को काफी दर्द दिया है. यमुना नदी के किनारे जो खेती होती थी उसमें नुकसान से किसानों की चिंता बढ़ गयी है. किसानों ने यमुना नदी के किनारे स्थित खेतों में जो फसल बोई थी उसमें 50 फीसदी तक नुकसान के आशंका जतायी जा रही है.
बताते चलें कि यमुना नदी फिरोजाबाद जिले की सीमा में भी बहती है, जो जिले को आगरा से अलग करती है. आगरा से निकलकर यह नदी जिले की सीमा में टूण्डला से प्रवेश करती है और सदर तहसील, सिरसागंज होती हुई इटावा जिले में प्रवेश कर जाती है. इस नदी में जब जब भी उफान आता है तो टूण्डला तहसील के गांव के लोगों की धड़कनें बढ़ जाती हैं, क्योंकि यहां यमुना नदी जरा से उफान पर खेतों को अपनी चपेट में ले लेती है. गांवों में भी पानी घुसने का खतरा मंडराता रहता है. हालांकि बीते कई सालों से गांवों में तो पानी नहीं घुस सका है लेकिन किसानों की फसलें जरूर खराब हुई हैं.